अर्थशास्त्र

भारत में हीनार्थ प्रबन्ध | Infertility Management in India in Hindi

भारत में हीनार्थ प्रबन्ध | Infertility Management in India in Hindi

भारत में हीनार्थ प्रबन्ध-

राजकोषीय घाटे की बिगड़ती स्थिति के लिए प्रमुख रूप राजस्व घाटा ही जिम्मेदार है। विभिन्न योजनाओं में हीनार्थ प्रबन्ध की स्थिति निम्न प्रकार रही है।

प्रथम योजना-

इस योजना में 290 करोड़ रुपये से हीनार्थ प्रबन्धन करने का प्रावधान रखा गया है, परन्तु वास्तव में 420 करोड़ रुपये में हीनार्थ प्रबन्ध किया गया जोकि कुल योजना के व्यय का लगभग 21% भाग था। इस काल में हीनार्थ प्रबन्धन होने पर भी वस्तुओं के मूल्यों में विशेष वृद्धि नहीं हुई। इस योजना काल में घाटे की वित्त-व्यवस्था अनुमान से अधिक ही रही, फिर भी देश की अर्थव्यवस्था पर सफीतिक प्रभाव नहीं पड़े, जिसके प्रमुख दो कारण थे- (1) स्टलिंग शेष के कारण आयात के बदले उतने ही मूल्य का निर्यात नहीं करना पड़ा और आयात का भुगतान शेष कर दिया गया। (2) जलवायु एवं मानसून अनुकूल होने से कृषि में पर्याप्त वृद्धि हुई।

द्वितीय योजना-

प्रथम योजना की सफलता को ध्यान में रखते हुए द्वितीय योजना का निर्माण विनियोग के ऊँचे लक्ष्यों को ध्यान में रखकर किया गया। इस योजना में 1,200 करोड़ रुपये से हीनार्थ प्रबन्धन करने का प्रावधान था, परन्तु वास्तव में 948 करोड़ रुपये से ही हीनार्थ प्रबन्धन किया गया जोकि कुल योजना व्यय का 21 % भाग था। फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति में 32% की वृद्धि हुई, जबकि प्रथम योजना में यह वृद्धि 10% थी। दूसरी ओर वास्तविक आय में 21% से अधिक वृद्धि न हो सकी। योजनाकाल में वस्तुओं के मूल्यों में अपार वृद्धि अनुभव की गयी। जिसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इस योजना में मुद्रा-प्रसार के भय से बचने हेतु योजना आयोग ने निम्न सुझाव दिये थे-

(1) सशनिंग की व्यवस्था करके उपभोग को नियन्त्रित किया जा सकता है।

(2) स्टॉक का निर्माण करके भोजन एवं कपड़े के मूल्य स्थिर रखना।

(3) भेदपूर्ण व कर की नीति को लागू किया जाना चाहिए। धनी वर्ग से अधिक ऊँची दर से कर लिया जाना चाहिए।

तृतीय योजना-

देश की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए तृतीय योजना में हीनार्थ प्रबन्धन की कम राशि रखी गयी। योजना में 550 करोड़ रुपये से हीनार्थ प्रबन्धन करने का लक्ष्य था जिसमें केन्द्र में 524 करोड़ रुपये की व्यवस्था थी जोकि कुल व्यय का 8% भाग था, परन्तु वास्तव में 1,150 करोड़ रुपये से हीनार्थ प्रबन्धन किया गया। इससे मुद्रा की वास्तविक कीमत में कमी हो गयी तथा वस्तुओं के मूल्य बढ़ गये, आवश्यक वस्तुओं का अभाव हो गया, सट्टाबाजी को प्रोत्साहन मिला तथा देश की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गयी।

वार्षिक योजनाएँ-

1966-68 की अवधि में केवल 28 करोड़ रुपये से हीनार्थ प्रबन्धन होना था जो वास्तव में बढ़कर 416 करोड़ रुपये हो गया। इसी प्रकार 1968-69 में 307 करोड़ रुपये घाटे की वित्त-व्यवस्था कर अनुमान था, परन्तु वास्तविक राशि 270 करोड़ रुपये थी। अतः द्वितीय योजना काल के बाद भारत में तीन वार्षिक योजनाएँ चलायी गयी, जिनका कार्यकाल 1966-67 से 1968-69 तक रहा। इस अवधि में 723 करोड़ रुपये के घाटे का प्रबन्ध किया गया था।

चतुर्थ योजना-

प्रथम तीन योजनाओं में 2,528 करोड़ रुपये का हीनार्थ प्रबन्ध किया जा चुका था, जिससे देश में काफी वृद्धि हो गयी और देश के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। तृतीय योजना के मध्य से देश की स्थिति बहुत खराब हो गयी थी। 1965 व 1971 के पाकिस्तानी आक्रमण के समय विदेशी सहायता बन्द हो गयी तथा खाद्यान्न का अभाव अनुभव किया गया। मूल्यों में निरन्तर वृद्धि हो रही थी। अत: 24,398 करोड़ रुपये की व्यय राशि में से 850 करोड़ से ही हीनार्थ प्रबन्ध करने का लक्ष्य रखा गया जोकि कुल व्यय का 3 1/2% भाग था। योजना में वास्तवित हीनार्थ प्रबन्ध राशि अपनी निर्धारित राशित से तीन गुना से भी अधिक थी। कुछ हीनार्थ प्रबन्ध राशि 3,750 करोड़ रुपये थी।

पाँचवी योजना-

पाँचवी योजना 53,411 करोड़ रुपये की बनायी गयी जिसमें से क्षेत्र 37,250 करोड़ रुपये लोक एवं 16,161 करोड़ रुपये निजी क्षेत्र में व्यय हुए। सरकारी क्षेत्र में कुल 2,000 करोड़ रुपये से हीनार्थ प्रबन्ध किया जाना था। 1980-81 बजट में 1,417 करोड़ रुपये का घाटा रहा तथा योजना के लिए 14,593 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी, केन्द्र में योजना आयोजन 7,340 करोड़ रुपये रहा। पाँचवी योजनाकाल में हीनार्थ प्रबन्ध की कुल राशि 2,784 करोड़ रुपये थी।

छठवीं योजना-

1980-85 अवधि की नवीन छठवीं योजना बनायी गयी जिसमें विकास दर 5% निर्धारित की गयी। योजना में हीनार्थ का प्रबन्ध पर कम निर्भर रहा गया। हीनार्थ प्रबन्धन की राशि इस योजना में 5,000 करोड़ रुपये रखी गयी।

सातवीं योजना-

1985-90 अवधि की सातवी योजना 1,80,000 करोड़ रुपये की बनायी गयी जिसमें विकास दर 5%, कृषि विकास दर 4%, औद्योगिक विकास दर 8% निर्धारित की गयी। हीनार्थ प्रबन्धन पर कम महत्व दिया गया।

आठवीं योजना-

आठवीं योजना 1992-97 का प्रारूप तैयार किया गया और इस योजना में हीनार्थ प्रबन्ध की मात्रा को सीमित रखा गया है।

नौवीं योजना-

नौवीं योजना 1997-2000 में हीनार्थ प्रबन्धन की राशि को सीमित करके 17,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

दसवीं योजना-

इस योजना में हीनार्थ प्रबन्धन पर कर्म खर्च गयी जिससे मूल्य वृद्धि को नियन्त्रित किया जा सके।

ग्यारहवीं योजना-

2007-12 के काल में हीनार्थ प्रबन्धन पर नियन्त्रण लगाने के प्रयास किए गए।

बारहवीं योजना (2012-17)-

इस काल में हीनार्थ प्रबन्धन पर नियन्त्रण लगाया जाएगा।

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 1980 के दशक के अन्त की ओर तथा 1990 के दशक प्रारम्भ में मुद्रास्फीति की दर के बढ़ने का प्रमुख कारण राजकोषीय घाटा में वृद्धि का होना था। योजनाकाल में हीनार्थ प्रबन्धन की राशि को निम्न प्रकार से रखा जा सकता है।

नौवीं योजना में यह तय किया गया था कि हीनार्थ प्रबन्धन पर कम से कम ध्यान दिया जाएगा और सभी व्ययों की पूर्ति उपलब्ध आय के स्रोतों से ही की जायेगी।

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Pankaja Singh

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