अर्थशास्त्र

भारत में आर्थिक शक्ति का केन्द्रीयकरण | भारत में आर्थिक सत्ता के केन्द्रीयकरण के कारण

भारत में आर्थिक शक्ति का केन्द्रीयकरण | भारत में आर्थिक सत्ता के केन्द्रीयकरण के कारण

भारत में आर्थिक शक्ति का केन्द्रीयकरण

(Concentration of Economic Power in India)

भारत में आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण की सीमा एवं प्रभाव का पता लगाने के लिए 16 अप्रैल, 1964 को उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश श्री0 के0 सी0 दास गुप्ता की अध्यक्षता में एकाधिकार जाँच आयोग (Monopolies Enquiry Commission) का गठन किया गया। इस आयोग के अन्य सदस्य थे। आर०सी०दत्त, जी0आर0 रामगोपाल, श्री आर०पी० आयंगर, डॉ० आई० जी० पटेल व बी0 सत्यमूर्ति। इस आयोग ने 2,259 कम्पनियों का अध्ययन किया जो 100 वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण का कार्य कर रही थी। आयोग ने अपने अध्ययनों को दो भागों में बाँटा था- (1) उत्पादानुसार केन्द्रीयकरण (Product-wise Concentration), (2) वर्गानुसार केन्द्रीयकरण (Group-wise Concentration)।

(1) उत्पादानुसार केन्द्रीयकरण (Product-wise Concentration)-

उत्पादानुसार केन्द्रीयकरण से अर्थ किसी वस्तु या विशेष के उत्पादन में किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के किसी समूह के सम्पूर्ण या महत्वपूर्ण नियन्त्रण से है। आयोग ने केन्द्रीयकरण अनुपातों को चार भागों में बाँटा था- उच्च केन्द्रीयकरण (High Concentration), मध्यम केन्द्रीयकरण (Medium Concentration), निम्न केन्द्रीयकरण (Low Concentration), व शून्य केन्द्रीकरण (Zero Concentration) | जिन वस्तुओं में सर्वोच्चट तीन उत्पादकों का भाग 75 प्रतिशत या इससे अधिक था उसे उच्च केन्द्रीयकरण माना गया। आयोग के अनुसार बच्चों का दूध, मिट्टी का तेल, ट्यूबलाइट, सिलाई मशीन, रेफ्रीजरेटर्स, टाइपराइटर्स, दीवार घड़ी, माचिस, साबुन जूते, दाँतों के पेस्ट, ब्लेड, सिगरेट, कारें,जीपें, स्कूटर्स आदि में उच्च केन्द्रीयकरण पाया गया है। जिन वस्तुओं में सर्वोच्च तीन उत्पादकों का भाग 60 प्रतिशत से अधिक लेकिन 75 प्रतिशत से कम था उनमें मध्य केन्द्रीयकरण पबाया गया। आयोग के अनुसार बिस्कुट, बिजली के पंखे, रेडियो, बाइसिकिल, सीमेण्ट, बिजली के बल्ब में मध्यम केन्द्रीयकरण था। जिन वस्तुओं में सर्वोच्च तीन उत्पादकों का प्रतिशत 50 प्रतिशत से अधिक लेकिन 60 से कम था निम्न केन्द्रीयकरण था। आयोग के अनुसार ऊनी कपड़े, लालटेन, कागज पेन्सिल आदि में निम्न केन्द्रीयकरण पाया गया। जिन वस्तुओं में तीन बड़े उत्पादकों का लाभ 10 प्रतिशत या इससे कम था उनमें केन्द्रीयकरण शूय केन्द्रीयकरण माना गया। इसमें चाय, कॉफी, चीनी, वनस्पति, तेल, धोती, साड़ी, कोयला, कम्बल आदि पाये गये।

आयोग ने 1,297 वस्तुओं का अध्ययन करके निष्कर्ष निकाला कि 437 वस्तुओं का उत्पादन केवल एक फर्म द्वारा ही किया जाता था। 229 वस्तुओं में से प्रत्येक का उत्पादन केवल दो फर्में ही करती थीं। 1,138 वस्तुओं के लिए 10 या 10 से कम उत्पादन करने वाली फर्में थी।

(2) वर्गानुसार केन्द्रीयकरण (Group-wise Concentration)- 

जब विभित्र वस्तुओं के उत्पादन एवं वितरण में लगे अधिकांश उपक्रमों का स्थायित्व एवं नियन्त्रण एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के हाथों में था तो इसे वर्गानुसार केन्द्रीयकरण कहा गया। इसको समूहवाद केन्द्रीयकरण (Group-wise Concentration) भी कहा जाता है।

भारत में आर्थिक सत्ता के केन्द्रीयकरण के कारण

(Causes of Concentration of Economic Power in India)

भारत में आर्थिक सत्ता केन्द्रीयकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(1) कम्पनियों का विकास (Development of Companies)-  भारत में आर्थिक सत्ता के केन्द्रीयकरण का सबसे प्रमुख कारण संयुक्त स्कन्ध कम्पनियों के विकास का है। संयुक्त स्कन्ध कम्पनियों के विकास से पूँजी-निर्माण में वृद्धि होती है और बड़े पैमाने का उत्पादन करने में सहायता मिलती है जिससे मितव्ययिताएँ प्राप्त होती हैं। यह मितव्ययिताएँ आर्थिक केन्द्रीयकरण का कारण होती हैं।

(2) अन्तर-कम्पनी विनियोग (Inter-Company Investment)-  आर्थिक सत्ता के केन्द्रीयकरण का दूसरा कारण अन्तर-कम्पनी विनियोग है। अन्तर कम्पनी विनियोग के अन्तर्गत एक कम्पनी दूसरी कम्पनी की अंश पूँजी में हिस्सेदार हो जाती है, जिससे एक कम्पनी के संचालक दूसरी कम्पनी के संचालक भी बन जाते हैं। परिणाम यह होता है कि कुछ व्यक्ति कई कम्पनियों के संचालक मण्डल में हो जाते हैं। इस प्रकार अनेक कम्पनियों के बारे में निर्णय लेने का अधिकार कुछ मुट्ठी भर व्यक्तियों के हाथ मे पहुँच जाता है जो आर्थिक शक्ति के केन्द्रित करने में सहायता पहुँचाता है।

(3) लाइसेंसिंग नीति (Licensing Policy)-  सरकार ने देश के तीव्र विकास एवं औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन देने के लिए लाइसेंसिंग नीति का अनुसरण किया उससे भी आर्थिक सत्ता के केन्द्रीयकरण हुआ है।

(4) विदेशी संयुक्त उपक्रम (Foreign Joint Ventures)- आर्थिक नियोजन की गति को तीव्र करने केलिए 1965 के बाद जो विदेशी उपक्रमों के समझौते किये गये उनसे भी आर्थिक सत्ता के केन्द्रीयकरण को बढ़ावा मिला है। इस प्रकार के जितने समझौते विदेशी संस्थाओं ने किये उनमें से अधिकांश भारत के बड़े उद्योगपतियों के साथ थे। इस प्रकार बड़े उद्योगपतियों के महत्व में वृद्धि हुई और आर्थिक शक्ति का केन्द्रीयकरण बढ़ा।

(5) प्रबन्ध अभिकर्ता प्रणाली (Managing Agency System)- यद्यपि अब भारत में प्रबन्ध अभिकर्ता प्रणाली समाप्त हो चुकी है, लेकिन इस प्रणाली ने आर्थिक सत्ता के केन्द्रीयकरण को बढ़ाने में अवश्य ही योगदान दिया है।

(6) बैंकों व वित्तीय संस्थाओं द्वारा पक्षपात (Favouritism by Bank and Financial Institutions)-  बैंकों व वित्तीय संस्थाओं द्वारा पक्षपात करने के कारण भी देश में आर्थिक सत्ता का केन्द्रीयकरण हुआ है। बैंकों के राष्ट्रीयकरण से पूर्व इन बैंकों पर बड़े उद्योगपतियों का ही नियन्त्रण था, अतः यह बैंक इनके व्यवसायों को वित्तीय सहायता देने में तरजीह देते थे। वित्तीय संस्थाओं ने अब तक जितने ऋण प्रदान किये हैं उनके आँकड़े यह बताते हैं कि उन्होंने अधिकांश ऋम बड़े उद्योगपतियों को ही प्रदान किये हैं। इससे स्पष्ट है कि वित्तीय संस्थाओ ने आर्थिक सत्ता के केन्द्रीयकरण को बढ़ाने में योगदान दिया।

(7) तीव्र औद्योगिक विकास की आवश्यकता (Need of Rapid Industrial Development)-  देश के तीव्र औद्योगिक विकास की आवश्यकता को देखते हुए औद्योगीकरण के कार्य को आगे बढ़ाने का असर उन्हीं उद्योगपतियों को दिया गया जो पहले ही शक्तिशाली थे। इसका परिणाम यह हुआ कि वे और शक्तिशाली हो गये और इस प्रकार यह नीति आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण में सहायक हो गयी।

(8) कठोर आयात नीति (Hard Import Policy)-  कठोर आयात नीति ने भी इस प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया है। सरकार ने आयात पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिये जिससे विदेशों से बहुत-सी वस्तुओं का आयात बन्द हो गया है जिससे विदेशी उद्योगपतियों ने एकाधिकार प्राप्त कर लिया है।

(9) उद्योगों की बिक्री (Sale of Industries)-  स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् देश में एक लहर भारतीयकरण की चली जिसका परिणाम यह हुआ कि ब्रिटिश उद्योगपतियों ने अपने व्यवसायों को बेचना प्रारम्भ कर दिया जिसको भारतीय उद्योगपतियों जैसे, बिरला, बांगड़, साहू, जैन आदि ने खरीद लिया। इनके हाथों में आर्थिक शक्ति आ गयी।

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Pankaja Singh

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