भारत के राष्ट्रपति की स्थिति | भारत के राष्ट्रपति के अधिकार | भारत के राष्ट्रपति के कार्य
भारत के राष्ट्रपति की स्थिति
भारत के राष्ट्रपति को संविधान द्वारा कार्यपालिका क्षेत्र में नहत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। वह कार्यपालिका का अध्यक्ष होता है। उसकी स्थिति भारतीय संविधान में वैसी ही है जैसी सम्राट् की ब्रिटिश संविधान में। वस्तुतः वह कार्यपालिका का प्रधान नहीं अपितु राज्य का प्रधान है। व्यवहार में उसकी समस्त कार्यपालिकीय शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिपरिषद् द्वारा किया जाता है। आपात्काल में भारत के राष्ट्रपति को अत्यन्त व्यापक अधिकार प्राप्त हो जाते हैं।
भारत के राष्ट्रपति के अधिकार (भारत के राष्ट्रपति के कार्य)
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव संसद और राज्यों के विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है। उसका कार्य-काल 5 वर्ष का होता है। संविधान द्वारा उसे अत्यन्त विस्तृत अधिकार दिये गये हैं। किन्तु वास्तव में उन अधिकारों का उपयोग मन्त्रिपरिषद् ही करती है। राष्ट्रपति के कार्यपालिकीय अधिकार अग्रलिखित हैं-
(अ) प्रशासकीय या शासन सम्बन्धी अधिकार- ये अधिकार निम्नलिखित हैं:-
(i) पदाधिकारियों की नियुक्ति– वह संसद के बहुमत दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। ये निम्नलिखित नियुक्तियाँ भी करता है-राज्य सभा के 12 सदस्य, राज्यों के राज्यपाल, सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, महान्यायवादी, महालेखा परीक्षक, केन्द्रीय प्रशासित राज्यों के मुख्य आयुक्त, लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष, जल, थल आर वायु सेना के सेनापति और विदेशों में राजदूत ।
(ii) राज्यों पर नियन्त्रण- राष्ट्रपति राज्यों के प्रशासन पर नियन्त्रण रखता है। यदि राष्ट्रपति समझता है कि किसी राज्य में शासन-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ रही है तो वह उस राज्य का शासन अपने अधिकार में ले लेता है।
(iii) वह विदेशों से सम्बन्ध स्थापित करता है तथा उनसे सन्धियाँ और राजनैतिक, सांस्कृतिक तथा व्यापारिक समझौते भी करता है। विदेशी राजदूतों के परिचयपत्र प्राप्त करता
(iii) सैनिकअधिकार- वह संसद के परामर्श पर युद्ध की घोषणा करता है।
(ब) विधायनी अधिकार- राष्ट्रपति संसद का अधिवेशन बुलाने तथा उसका अवसान करने का अधिकार रखता है। वह संसद को भंग कर सकता है। राष्ट्रपति विधेयकों पर स्वीकृति देता है। वह अध्यादेश भी जारी करता है।
(स) वित्तीय अधिकार- सैद्धान्तिक रूप से बजट प्रस्तुत करने का अधिकार राष्ट्रपति का है। वह नये करों को लगाने तथा पुराने करों को समाप्त करने की सिफारिश भी कर सकता है। देश की समस्त आय केन्द्रीय और राज्य सरकारों में वही वितरित करता है। वह वित्त- आयोग की नियुक्ति करता है।
(द) न्यायसम्बन्धी अधिकार- राष्ट्रपति को किसी अपराधी के दण्ड को क्षमा करने, कम करने, स्थगित करने तथा अन्य किसी दण्ड में बदल देने का अधिकार प्राप्त है। संसद के सिफारिश पर न्यायाधीशों को पदच्युत भी कर सकता है।
(य) विशेष अधिकार- वह अपने शासनसम्बन्धी और राजकीय कार्यों के लिये किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी न होगा। उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती और न ही उसके गिरफ्तारी के वारन्ट जारी किये जा सकते हैं।
(र) आपातकालीन अधिकार- आपातकालीन स्थिति में भारतीय संविधान का रूप एकात्मक हो जाता है तथा इस समय राष्ट्रपति ही देश का सर्वेसर्वा होता है। उसको वह अधिकार निम्नलिखित संकटों के समय प्राप्त होते हैं:-
(i) बाह्य आक्रमण अथवा आंतरिक अशांति के समय।
(ii) राज्यों में शासनिक अव्यवस्था के समय।
(iii) आर्थिक संकट के समय।
उपर्युक्त संकटों के समय उसे व्यापक अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। वह किसी भी कानून को बना सकता या रद्द कर सकता है। वह मौलिक अधिकारों को समाप्त कर सकता है। राज्यों में संकट के समय वह समस्त शासन-कार्य के अधिकार अपने हाथ में ले लेता है। आर्थिक संकट के समय सरकारी व्यय की मदों में कटौती भी कर सकता है।
44वें संवैधानिक संशोधन के पश्चात् राष्ट्रपति की स्थिति के महत्त्व में और कमी हुई है। इस संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल की सलाह मानना अनिवार्य कर दिया गया है। फिर भी राष्ट्रपति के आपातकालीन अधिकार काफी शक्तिशाली हैं। इनका दुरुपयोग भी किया जा सकता है। वह इनके अन्तर्गत राज्यों की स्वायत्तता समाप्त कर सकता है। सत्तारूढ़ दल अपने स्वार्थसिद्धि हेतु किसी राज्य की विपक्षी सरकार को भग करा सकता है। वह इन अधिकारों द्वारा नागरिकों की स्वतन्त्रता को समाप्त कर सकता है। इन अधिकारों के अन्तर्गत राष्ट्रपति तानाशाह बन सकता है। फिर भी राष्ट्रहित में उसे शक्तियां देना उचित है।
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