बसंत का अग्रदूत सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या | सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्सायन ‘अज्ञेय’- बसंत का अग्रदूत
बसंत का अग्रदूत
- कह नहीं सकता…………….. बसन्त के अग्रदूत थे।
सन्दर्भः- प्रस्तुत गद्यावतरण निबन्ध को नयी दिशा प्रदान करने वाले सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के ‘वसन्त का अग्रदूत’ नाम संस्मरणात्मक निबन्ध से उद्धृत है। निराला के अन्तिम दिनों के भाव-विचार इस गद्यांश में प्रकट हुआ है।
व्याख्या – निराला के अन्तिम दिन नष्टमय रहे उक्त पंक्तियों से प्रतीत होता है। निराला जी के समान में जो दावते भी होती थीं वह उनको हिन्दी कवि समाज के सन्निकट न लाकर दूर ही कर दिया। गंगा जी के किनारे पर उस संसद बंगले को छोड़कर निराला जी अपनी पुरानी कोठरी को ही स्वीकार किया। यह कोठरी दारागंज में स्थित है। निराला के मन का अवसाद और अन्तिम दिनों में ईश्वर के प्रति समर्पण ये दोनों भावनाएँ साकार हो चुकी थी। इस कोठरी के मन्द प्रकाश में विचरण करते हुए निराला जी उस स्थिति को प्राप्त हो गये जहाँ वह कह सकते थे कौन निराला? निराला तो मर चुका है। दूसरी वह हिन्दी के प्रति अगाद श्रद्धा रखने वाले कवि हृदयों को सम्बोधित करते थे- एक आत्मविश्वास के साथ में ही वसन्त का अग्रदूत हूँ। निराला जी का जन्म वसन्त पंचमी के ही दिन हुआ। यह उनकी कविता में भी चरितार्थ है। निश्चित रूप में महाप्राण निराला वसन्त के अग्रदूत ही थे।
- उस समय का…………….क्या हो सकती है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश निबन्ध को नयी दिशा प्रदान करने वाले सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के ‘वसन्त का दूत’ नामक संस्मरणात्मक निबन्ध से उद्धृत है।
व्याख्या- ‘अज्ञेय जी उस समय नव-नवोदित कवि थे। उस समय छविधर कवि निराला ही थे जो उनको समझ रहे थे। ‘अज्ञेय’ की श्रद्धा भी निराला पर अपार थी। निराला से पाठक भी थे जो अज्ञेय जैसे कवि के काव्य को स्वर से स्वर मिलाकर पढ़ते थे। ऐसे ही आदर्श और सहदय पाठक निराला ऐसी स्थिति में कोई भी नया से नया कवि निराला को क्यों न सम्मान देगा। अतः ‘अज्ञेय’ जी निराला का बहुत सम्मान करते थे। इस सस्मरण से यह स्पष्ट हो जाता है। अज्ञेय जी स्वयं कहते हैं कि छविधर निराला एक पीढ़ी महाकवि हैं किन्तु उनमें किञ्चित् भी अहं भाव नहीं है वे बाद की पीढ़ी के काव्य को भी अच्छी तरह समझते हैं और महत्व देते हैं- ऐसा किसी भी बाद वाले कवि के लिए गौरव की बात होती है। अज्ञेय जी परवर्ती कवि है जिनको समय-समय महाकवि निराला से दिशा-निर्देश प्राप्त होता रहा है। निराला जी जब स्वयं के लिए यह कहते है कि “निराला इज डेड। आई एम नॉट निराला। तो यहाँ उनका अहं-भाव समाप्त दिखता है।
- लेकिन अब जब ………….. यह कवि कह गया है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण ‘सच्चिदानन्द’ हीरानन्द वात्स्यापन ‘अज्ञेय’ के प्रसिद्ध संस्मरणात्मक लेख ‘वसन्त का अग्रदूत’ से उद्धृत है। इसमें निराला जी के अन्तिम भाव-विचार व्यक्त हुए हैं।
व्याख्या- अज्ञेय जी अपने संस्मरण में कहते हैं कि अब ब निराला जी नहीं है, उनकी कविताओं को पढ़ते है- मुझे एक विश्वास होता है। तुलसीदास की कुछ पंक्तियों पर भाव मुखरित हो उठता है। वह कवि निराला भविष्य दृष्टा के रूप में लक्षित होता है। आगे क्या होने वाला है वह समझ लेता है। यह खण्ड काव्य ‘तुलसीदास’ महाप्राण निराला द्वारा रचित है। जो लेखक द्वारा भविष्य द्रष्टा के रूप में चित्रित किये गये हैं। कवि निराला कहते हैं कि सम्पूर्ण सौन्दर्य धाम यह कवि जग गया है इसके स्वर को पाकर माँ सरस्वती उन्मुक्त हो जायेगी। अन्त में भरे अद्रान रूप अन्धकार छिन्न-छिन्न हो जायेगे। माँ भगवती सरस्वती का ज्ञान रूप प्रकाश प्राप्त होगा। सांसारिक मोह-माया को छोड़कर उससे बाहर निकलो। संसार दुःखमय है माँ के समक्ष होकर स्वयं को प्रकाशवान बना लो जन मानस को प्रकार को प्रकाश से पूर्ण कर देन वाला ऐसा गीता हो, तभी स्वयं को धन्य मानो। तत्पश्चात् उस माँ भारती से मुक्ति (जीवनमुक्ति) का दान मांगों। लेखक कहता है इस महाप्राण निराला ने कभी किसी से दान नहीं लिया- कविताओं के रूप में इस विश्व को अजस दान दिया। इस महादान के लिए भी कवि कभी रुकता नहीं है। अर्थात् वह असहाय नहीं होता है और यह कविता रूपी दान करते-करते ही माँ भगवती भारती के चरणों में सदा-सदा के लिए एकाकार हो गया। कवि के अन्तिम शब्द मैं अलक्षित हूँ वह व्यक्त कर गया है। क्योंकि यह आत्मा दिखायी नहीं देती, प्राण रूप में सभी उसका अनुभव करते हैं। वह अजर-अमर है। विद्यमान है। कवि मुक्ति हेतु अन्तिम चरण में प्रयास करता है।
- का अवसाद……………कौन न होगा।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण संस्मरणात्मक निबन्ध के लेखक सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के वसन्त के अग्रदूत नामक निबन्ध से उद्धृत है।
व्याख्या- कवि निराल को बन्धन असहज है। हे भाई सब आपकी मनोदशा पूछेगे। निराला जी के जीवन में यह अवसाद ग्रस्त दशा अब उनका स्थायी मनोभाव हो गया था। उनके पहले का स्वर एक तात्कालिक अवस्था को प्रकट करता है। उससे भी पहले की कविताएँ जैसे कि ‘सखि आया बसन्त’ या ‘सुमन भर न लिए’ ‘सुखि वसन्त गया’ उनकी भावदशा, मनोदशा को दर्शाती है। उक्त कविताएं निरषवाद रूप तत्कालीन भाव दशा एवम् प्रतिक्रिया को व्यक्त करती है। किन्तु निराल रचित ‘अर्चना’ तथा उनके बाद लिखी गयी कविताओं में हताशा, अवसाद का भाव छाया हुआ दीखता है जो हताशा, अवसाद का भाव छाया हुआ दिखता है जो उस समय की प्रतिक्रिया नहीं प्रतीत होता। अपितु उक्त कविताओं में उनके जीवन की दीर्घ प्रत्यानुभूति छिपी हुई। जहाँ कविताओं में वह भक्ति साधना करते दिखते हैं और स्वयं को अवसाद से उबरते पाते हैं। वह अपने भक्ति गीतों में लिखते उबरते पाते हैं। वह अपने भक्ति गीतो मे लिखते हैं- हे ईश्वर जब आप ही रक्षा करने वाले हो तो उसके सभी सहायक बन जाते है। तार नहार तो हे प्रभु आप ही हो।
- बाटी में कटहल.……….निराला जी आप।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्धांश संस्मरणात्मक निबन्धों के लेखक सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के ‘वसन्त का अग्रदूत’ नामक निबन्ध से उद्धृत है।
व्याख्या- इस गद्यांश में निराला जी का अतिशय सेवी भाव का दर्शन होता है। उनसे मिलने आये शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ तथा अज्ञेय जी का दिल खोलकर स्वागत करते हैं- ऐसा था उनका आतिथ्य भाव। उन दिनों निराला जी अपना भोजन स्वयं बनाते थे ‘बाटी’ अतिथियों को परोस दी। बाटी में कटहल की भुजिया थी। जिसके दो हिस्से बड़े सफाई से कर दिये गये थे। दोनों कवियों के मन में इस बात का कष्ट था कि निराला जी जो भोजन अपने लिए बना रहे थे वह सारा का सारा हम लोगों के सामने परोस दिये हैं। वह अब दिन भर भूखे रहेंगे। लेकिन अज्ञेय और सुमन जी दिन भर भूखे रहेंगे। लेकिन अज्ञेय और सुमन जी यह भी जानते थे कि हम लोगों का कुछ भी कहना- सुनना बेकार है। अतिश्रेय को सर्वस्व लूटा देने वाले ऐसे महाप्राण निराला थे। अन्तत शिवमंगल सिंह सुमन से न रहा गया और उन्होंने निराला जी से पूछ ही लिया आप भूखे रहेंगे क्या आप नहीं खायेंगे तो हम भी नहीं खायेंगे। निराला जी ने सुमन जी से कहा कैसे नहीं खाओगे भाई घुट्टी पकड़कर खिला देंगे। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रेम का यह उत्कर्ष अतिश्रेय के प्रति पिटला ही होगा।
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