संगठनात्मक व्यवहार

अवबोधन में सुधार के लिए सुझाव | Suggestions for improving Perception in Hindi

अवबोधन में सुधार के लिए सुझाव | Suggestions for improving Perception in Hindi

अवबोधन में सुधार के लिए सुझाव

(Suggestions for improving Perception)

अवबोधन का व्यवहार पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि देखा जाय तो अवबोधन तथा व्यवहार में गहन सम्बन्ध है। जितना उत्तम अवबोधन होगा, व्यवहार भी उतना ही अधिक उत्तम होगा। इसके विपरीत गलत अवबोधन का व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यदि हम चाहते हैं कि दूसरे व्यक्ति हमारे साथ अच्छा व्यवहार करें तो हमको भी उनके साथ अच्छा व्यवहार करना, चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि पर्यवेक्षक चाहता है कि अधीनस्थों को उसके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए तो पर्यवेक्षक को भी अपने अधीनस्थों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। अतएव प्रत्येक व्यक्ति को अपने अवबोधन में सुधार करने का प्रयास करना चाहिए। इस सम्बन्ध में निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं-

(1) स्वतः सही अवबोधन (Perceiving On self Accurately) –

अन्य लोगों से अशुद्ध अवबोधन प्राप्त किये जाने का मूल कारण स्वयं का अवबोधन सहीं नहीं होना है। यह सही अवबोधन के मार्ग में प्रमुख बाधा है। अतएव सबसे पहले हमें अपने अवबोधन में सुधार करने के लिए जागरूकता उत्पन्न करने की आवश्यकता है। हमारा अवबोधन दूसरों के साथ खुला, स्वतन्त्र, बिना किसी हिचकिचाहट के, पारस्परिक विधासयुक्त तथा सही होना चाहिए।

(2) स्व-धारणा में सुधार (Improving Self-concept)-

अवबोधन में सुधार की दिशा में उठाया जाने वाला दूसरा कदम स्व-धारण में सुधार किया जाना है। स्व-धारणा एक क्रिया है जो यह बताती है कि लोग किस प्रकार से उन वस्तुओं को प्राप्त करते हैं जिन्हें वे प्राप्त करना चाहते हैं। इससे स्व-आदर एवं स्व-मान की भावना उत्पन्न होती हैं। यही स्व-धारणा है। इस क्षेत्र में किये गये अनुसन्धानों से यह सिद्ध हो गया है कि जिन लोगों में स्व-धारणा होती है अर्थात् स्व- आदर एवं स्व-मान की भावना होती है, वे दूसरे के अवबोधन को सही रूप में प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप चाहते हैं कि दूसरे लोग आपका आद करें तथा आपको मान दें तो आपको स्वयं में स्व-आदर एवं स्व-मान की भावना जाग्रत करनी होगी। ऐसा करने से ही लोगों में दूसरों का सम्मान करने एवं मान देन की भावना जाग्रत होगी।

(3) सकारात्मक मनोवृत्ति (Positive Attitude)-

अवबोधन के सुधार की दिशा में उठाया जाने वाला अगला कदम आपकी सकारात्मक मनोवृत्ति का होना है। सकारात्मक मनोवृत्ति अवबोधन को अधिक सकारात्मक एवं सही बनाती है। अतएव प्रबन्धकों को चाहिए कि वे द्वेष, पक्षपात तथा नकारात्मक भावनाओं का उन्मूलन करें। ऐसा करने पर उनके अवबोधात्मक चातुर्य में वृद्धि होगी और वे दूसरे के अवबोधन को सही रूप में ग्रहण कर सकेंगे।

(4) सहानुभूति उत्पन्न करो (Be Empathetic)-

सहानुभूति से आशय दूसरे के प्रति हमदर्दी से है। किसी परिस्थिति को उसी रूप में देखो एवं अनुभव करो जैसी दूसरे लोग अनुभव करते हैं। दूसरे शब्दों में, इनका आशय दूसरे के जूतों में अपना पैर रखने से है। यदि आप दूसरों की समस्या को उसी नजरिये से देखते हैं जिस नजरिये से दूसरे देखते हैं तो आपको दूसरों की समस्या का अवबोधन करने से सुगमता होगी।

(5) खुला संवहन (Open Communication) –

अपर्याप्त संवहन की दशा में सही अवबोधन से बााधाएँ उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिति में प्रभावी संवहन विकसित किया जाना चाहिए, ताकि हमारा सत्य एवं सही सन्देश सही स्थान पर, सही समय पर सही व्यक्ति को प्राप्त हो जाय। ऐसा करने से आप किसी समस्या को उत्तर परिवेश में समझेंगे जिसके परिणामस्वरूप व्यक्तिगत अवबोधन में सुधार होगा। हमें जो बात कहनी है, उसे खुले रूप में बिना मिर्च-मसाले के कहनी चाहिए।

(6) अवबोधात्मक विकृतियों को हटाना (Avoiding Perceptual Distortions) –

यह देखा गया है कि लोग अपने अवबोधन को सही ठहराने के लिए तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं। हमें इससे सावधान रहना पड़ेगा। हम जो भी अवबोधन करें, वह बिना किसी पक्षपात, द्वेष एवं तोड़-मरोड़ के होना चाहिए। इससे आपकी अवबोधात्मक क्षमता का विकास होगा। उदाहरण के लिए एक प्रबन्धक किसी कुरूप कर्मचारी को पहली बार देखकर ही अपने मन में यह धारणा बना ले कि वह अकुशल एवं निकृष्ट निष्पादनकर्ता होगा, जबकि वास्तव में, वह कर्मचारी सच्चा, निष्कपट एवं गम्भीर हो तो यह प्रथम प्रभाव के फलस्वरूप है। अतः प्रथम प्रभाव के आधार पर किसी के बारे में अवबोध करना उचित नहीं है।

संगठनात्मक व्यवहार – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!