अवबोधन की अवधारणा एवं परिभाषा | अवबोधन की विशेषताएँ अथवा लक्षण | Nature of Organizational Behavior in Hindi | Areas of organizational behavior in Hindi
अवबोधन की अवधारणा (Concept of Perception)-
संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं (Cognitive processes) के द्वारा मनुष्य सूचनाओं का प्रविधियन (Processing) एवं विवेचन करता है। इनमें मुख्य रूप से परिकल्पना (Imagination), अवबोधन (Perception) एवं चिन्तन (Thinking) शामिल हैं। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि ‘अवबोध की प्रक्रिया सम्पूर्ण संज्ञानात्मक प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करती है। सरल रूप में, अवबोध प्राथमिक तौर पर चिन्तन या संज्ञान की प्रक्रिया (Cognitive process) है जिसके द्वारा मानव (Human organism) उद्दीपकों व वातावरणीय घटकों का चयन, संगठन एवं विवेचना करता है।
सामान्यतः हम अपने जीवन में नित्य प्रतिदिन विभिन्न वस्तुओं के सम्पर्क में आते हैं। उनमें से हम कुछ को स्वीकार करते हैं और कुछ को अस्वीकार करते हैं। जिन वस्तुओं को हम स्वीकार करते है, दूसरे व्यक्ति उन्हीं को अस्वीकार करते हैं। इसके विपरीत, जिन वस्तुओं को हम अस्वीकार करते हैं, उन्हीं को दूसरे स्वीकार करते हैं। उदाहरण के लिए, एक चित्र को ही लीजिए। कुछ लोग कहेंगे कि यह अत्यन्त सुन्दर चित्र है, कुछ कहेंगे कि यह साधारण चित्र है तो कुछ कहेंगे कि यह कुरूप चित्र है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति वस्तुओं को अपने अलग ढंग से या दृष्टिकोण से देखता है, अनुभव करता है और व्याख्या करता है। वास्तविकता का नजरिया सबका समान न होकर भिन्न-भिन्न होता है। इसी का नाम अवबोधन है। अवबोधन मानवीय व्यवहार का संज्ञानात्मक घटक है।
मानवीय व्यवहार अवबोधन के गहन रूप में प्रभावित होता है। इस प्रकार अवबोधन मानवीय व्यवहार का मूलाधार है। मानवीय व्यवहार को सही रूप में समझने, सही करने एवं उसकी सही रूप में व्याख्या करने के लिए प्रबन्धकों में सही अवबोधात्मक कौशल का होना परम आवश्यक है। अवबोधन के आधार पर ही प्रबन्धक संगठनात्मक व्यवहार का अध्ययन, अवलोकन एवं व्याख्या करता है। एक प्रबन्धक की सफलता अथवा असफलता भी बहुत कुछ सीमा तक उसके आस-पास के पर्यावरण के अवबोधन पर निर्भर करती है। अवबोधन तथा मनोविज्ञान इन दोनों में निकटतम सम्बन्ध है।
अवबोधन की परिभाषाएँ (Definitions of Perceptions) –
भिन्न-भिन्न विद्वानों ने अवबोधन की अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं। उनमें से कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा गई परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) फ्रेड लूथान्स (Fred Luthaus) – के शब्दों में, “अवबोधन एक महत्वपूर्ण चिन्तनीय संज्ञानात्मक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति उद्दीपन अथवा परिस्थिति, जिसका वे सामना करते हैं, का अर्थ प्रतिपादन करते हैं।”
(2) उदय पारीक (Udai Pareek)- के शब्दों में, “अवबोधन संवेदी उद्दीपकों (Sensory Stimuli) अथवा समंकों को प्राप्त करने, चयन करने, संगठित करने, अर्थ प्रतिपादित करने, जाँचने तथा उनके प्रति प्रतिक्रिया प्रकट करने की प्रक्रिया है।”
(3) स्टीफेन पी. राविन्स (Stephen P.Robbins) – के शब्दों में, “अववोधन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने पर्यावरणों को अर्थ प्रदान करने के लिए संवेदी प्रभावों को संयोजित एवं विवेचित करते हैं।”
(4) रिक्की ग्रिफिन (Ricky Griffin)- के अनुसार, “अवबोधन विभिन्न प्रक्रियाओं का समूह है जिनके द्वारा एक व्यक्ति वातावरण के प्रति सजग होता है तथा पर्यावरण की सूचनाओं से अर्थ-व्याख्या करता है।”
(5) वोन हेलर गिलमर (Von Haller Gilmer)- के शब्दों में, “अवबोधन स्थितियों के प्रति जागरूक होने तथा संवेदनाओं के साथ अर्थपूर्ण सम्बन्धों को जोड़ने की प्रक्रिया है।”
निष्कर्ष- उपयुक्त परिभाषा (Conclusion-Suitable Definition) उपरोक्त परिभाषाओं तथा अन्य विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् अवबोधन की निष्कर्ष रूप में उपयुक्त परिभाषा निम्न शब्दों में दी जा सकती है-“अवबोधन एक प्रक्रिया है जिसमें देखने, प्राप्त करने, चयन करने, संगठित करने, अर्थ निकालने, चिन्तन करने तथा पर्यावरण का आशय प्रकट करना निहित है।”
अवबोधन की विशेषताएँ अथवा लक्षण
(Characteristics or features of perception)
अवबोधन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं
(1) अवबोधन एक बौद्धिक प्रक्रिया (Intellectual Process)- है जोकि विचार, चिन्तन, सोच, दृष्टिकोण अथवा नजरिये से जुड़ी हुई है।
(2) अवबोधन एक आधारभूत संज्ञानात्मक एवं मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया (Cognitive and Psychological Process) है जिसमें व्यक्ति की क्रियाएँ, भाव, विचार आदि पर्यावरण के अनुरूप सक्रिय हो जाते हैं।
(3) अवबोधन व्यक्तिनिष्ठ प्रक्रिया (Subjective Process) है जिसमें अलग-अलग व्यक्ति विद्यमान पर्यावरण को अपने-अपने नजरिये से देखते एवं समझते हैं।
(4) अवबोधन (Section) संवेदन से अधिक जटिल एवं व्यापक है।
(5) अवबोधन के अन्तर्गत व्यक्ति स्थिति अथवा पर्यावरण को अपने चिन्तन अथवा विचार के अनुसार अर्थ एवं व्याख्या प्रदान करता है।
(6) अवबोधन का प्रारम्भ मनुष्य की पाँच शारीरिक इन्द्रियों अर्थात् दृष्टि, श्रवण, गन्ध, स्वाद एवं स्पर्श से होता है।
(7) एक ही वस्तु, मनुष्य, पर्यावरण अथवा परिस्थिति के प्रति अलग-अलग व्यक्तियों का अलग-अलग अवबोधन हो सकता है।
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