औद्योगिक नगरों में गन्दी बस्तियों के विस्तार के कारण | गन्दी बस्तियों के सुधार के उपाय | Due to expansion of slums in industrial cities in Hindi | Measures to improve slums in Hindi
औद्योगिक नगरों में गन्दी बस्तियों के विस्तार के कारण
(Reasons of Slumdwellers-Extension in Industrial Towns)
गन्दी बस्तियों के निर्माण के अनेक कारण हैं-
(1) औद्योगीकरण- नई औद्योगिक इकाइयों को श्रमि-शाक्ति की आवश्यकता होती है। औद्योगिक इकाई के निर्माण से ही श्रमिक की भर्ती आरंभ हो जाती है व उत्पादन के लिए भी श्रमिकों में बढ़ोत्तरी होती रहती है। श्रमिक वर्ग नगर में मकान किराये पर लेकर नहीं बस सकते है, एक तो उन्हें उद्योग क्षेत्र के निकट ही रहना पड़ता है, ताकि बिना समय बर्बाद किये कार्य में जुट सकें, दूसरे धन की भी समस्या होती है। अतः वे लोग कार्य-स्थल के आस-पास पड़ी खाली भूमि में रहने के लिए झुग्गी-झोपड़ी बना लेते हैं। धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ने लगती है, परन्तु स्थानाभाव के कारण उतने ही सीमित स्थान से बढ़ी हुई आबादी को जीवनयापन करना पड़ता है।
(2) नगरीयकरण- रोजगार की तलाश में ग्रामीण व्यक्ति नगर में आते हैं। उन्हें जैसा भी रोजगार मिले, उसमें स्वयं को खपाने के बाद आवास के लिए जब मकान किराये पर लेना चाहते हैं तो या तो मकान मिलते ही नहीं, या किराया इतना अधिक होता है, जिसे वहन नहीं कर पाते, तब नगर के बाहरी भाग में जहाँ भी झुग्गी-झोपड़ियाँ बनी दिखाई दें, उनमें समायोजित हो जाते हैं।
(3) ग्रामों से पलायन- ग्रामीण जीवन परस्पर संघर्ष के कारण अधिक सुरक्षित होते जा रहे हैं। असुरक्षा, आपसी संघर्ष व बेकारी से तंग आकर ग्रामीण व्यक्ति नगरों की ओर कूच कर रहे हैं। ग्राम से निकलकर नगर में घुसते ही ये बाहरी इलाकों में रहने लगते हैं। उन बस्तियों में मकान छोटे व आबादी बढ़ती जाती है। छोटी-छोटी बस्तियाँ गन्दी बस्तियों में परिवर्तित होने लगती है।
(4) जनसंख्या में वृद्धि- गन्दी बस्तियों के वातावरण में रहने वाले प्रायः अशिक्षित व अदूरदर्शी होते हैं। उनकी सन्तानें अधिक होती हैं। जनसंख्या का घनत्व बढ़ने लगता है। छोटे से मकान में यदि 3-4 व्यक्ति रहते हैं। उसी में बढ़कर 10-12 हो जायें तो उस मकान का हुलिया ही बदल जायेगा। जनसंख्या की वृद्धि छोटे साफ-सुथरे इलाके को भी गन्दी बस्तियों में परिवर्तित कर देती है।
(5) प्राकृतिक प्रकोप- अशिक्षा के कारण ग्रामों में स्वास्थ्य व स्वच्छता पर ध्यान न देने से अनेक छूत की बीमारियाँ फैलने लगती हैं, गाँव प्रायः निचले क्षेत्र में होने के कारण बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। अति वृष्टि या सूखा पड़ जाने से ग्रामीण जनता विपत्ति में फँस जाती है, इन विपत्तियों से निकलने के लिए ग्रामीण अपने गाँव छोड़कर नगर की ओर पलायन करते हैं, व अपनी सामर्थ्य व स्तर के अनुरूप गन्दी बस्तियों में रहने को विवश होते हैं।
(6) व्यापारिक उद्देश्य- कुटीर उद्योग के रूप में कई वस्तुएँ ऐसी होती हैं, जिनका उत्पादन नगरों में ही बिक सकता है, इसलिये उत्पादन करने व विक्रय करने के लिए नगरों में ही आवस करना पड़ता है। आर्थिक दुर्बलता इस प्रकार के कारीगरों को गन्दी बस्तियों में रहने को विवश करती है।
(7) गन्दी बस्तियों व ग्रामीण बस्तियों में समानता- प्रायः ग्रामीण व्यक्ति ग्राम में जिस वातावरण में रहने के आदी होते हैं, वह वातावरण उन्हें गन्दी बस्तियों में मिल जाता है। अस्वच्छता, कूड़े के ढेर, गंदी नालियाँ, गन्दा रहन-सहन आदि। गन्दी बस्तियों में उसे सब कुछ वैसा ही लगता है, जिसका वह गाँव में आदी हो चुका होता है।
(8) निम्न वर्गों का आधिक्य- समाज में निम्न वर्ग की संख्या अधिक है, और वे लोग गन्दे रहन-सहन के आदी हो चुके होते हैं। उन्हें गन्दी बस्तियाँ ही पसन्द आती हैं। इसलिए गन्दी बस्तियों के बाशिन्दे स्वच्छ बस्तियों में जाना पसन्द ही नहीं करते।
(9) सामाजिक पृथकता- गन्दी बस्तियों के वातावरण में रहने वाले स्वयं को अन्य समाज से अलग-थलग रखना चाहते हैं। वे लोग स्वच्छताप्रिय व्यक्तियों से मेल-जोल नहीं रखना चाहते। यह भावना उन्हें सदैव गन्दी बस्ती में रहने को प्रेरित करती है।
(10) प्रान्तीयता- गन्दी बस्तियों में रहने के लिए प्रान्तीयता की भावना भी उत्तरदायी है। एक विशेष प्रान्त के निवासी सम्मिलित रूप से एक ही वस्ती में रहने को इच्छुक होते हैं। चाहे वहाँ घनत्व कितना भी अधिक क्यों न हो व असुविधाएँ भी कितनी अधिक क्यों न झेलनी पड़े। उदाहरणस्वरूप बिहार, उड़ीसा व उत्तर प्रदेश के श्रमिक अन्य ही राज्यों में रोजगार के लिए जाते हैं मलिन बस्तियाँ बिहारियों की अलग होंगी व उत्तर प्रदेश वालों की अलग होंगी। जिस प्रदेश का निवासी होगा, वह अपने प्रदेश के निवासियों के साथ मिलकर रहना चाहेगा। यह भी एक कारण है मलिन व गन्दी बस्तियों में भीड़-भाड़ बढ़ाने का।
(11) दरिद्रता- गन्दी बस्तियों के पनपने का गरीबी सबसे बड़ा कारण है। गरीब व्यक्तियों के पास इतना धन नहीं होता है कि वे नगर में जाकर किराये का मकान ले सकें। विवश होकर उन्हें अपनी झुग्गी बनाकर या कम किराये की खोली लेकर गन्दी बस्तियों में ही रहना पड़ता है।
गन्दी बस्तियों के सुधार के उपाय
(Measures to Reform the Slums)
यह विचारणीय विषय है कि इस नारकीय स्थिति से कैसे उबरा जाये? समस्या को गम्भीर मानकर समाधान पर विचार करना चाहिए। बीमारी गम्भीर तो है, पर लाइलाज नहीं है। ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसे सुलझाया न जा सके। हाँ, प्रयास युद्धस्तर पर व नेकनीयती से होने चाहिए। कुछ सुझाव हैं, यदि इन सुझावों के अनुसार प्रयास किया जाये तो गन्दी बस्तियाँ स्वच्छ बस्तियों में रूपान्तरित हो सकती हैं-
(1) परिवार नियोजन- जनसंख्या वृद्धि भारत की कई समस्याओं का मूल कारण है। यदि जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाई जा सके तो आवास समस्या भी बहुत कुछ सुधर सकती है। गन्दी बस्तियों में जनसंख्या यदि न बढ़े तो सुधार कार्यक्रम सन्तोषजनक हो सकते हैं।
(2) रोजगार वृद्धि- रोजगार के साधन बढ़ेंगे तो निश्चय ही जीवन-स्तर सुधारने की बात गन्दी बस्तियों के निवासियों के मन में आयेगी। गाँवों में यदि लघु उद्योग व अन्य रोजगार के साधन उपलब्ध कराये जायें तो ग्रामीण जनसंख्या कुछ सीमा तक नगर की ओर पलायन करने से रूक जायेगी। नगर की आबादी पर दबाव कम होगा व गन्दी बस्तियों में जनसंख्या कम हो जायेगी तथा गन्दगी भी कम होने लगेगी।
(3) गाँवों में सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था- ग्रामीण जनता को यदि सामाजिक सुरक्षा प्राप्त होने लगेगी तो वे नगर की ओर कम आकर्षित होंगे। रोजगार मिल जाये व सामाजिक सुरक्षा अर्थात् जीवनयापन की सुविधाएं, जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था, सफाई, पानी इत्यादि मिलने लगें तो क्यों ग्रामीण व्यक्ति अपना घर छोड़कर नगर की गन्दी बस्तियों में बसने के लिए जायेंगे ?
(4) कृषि की उन्नति- भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग कृषि पर आधारित है। यदि कृषि तकनीक विकसित की जाये, पैदावार बढ़ने लगे, कृषि उत्पादों का उचित मूल्य मिलने लगे तो कृषक कभी गाँव छोड़कर मलिन बस्तियों में नहीं जायेगा। कृषि शिक्षा का प्रसारण, सिंचाई के प्रचुर साधन, अच्छी किस्म के उन्नत बीज, खाद, कीटनाशक दवाइयों का उचित उपयोग, भूमि कटाव की रोक, तकनीकी जानकारी, फसलें बोने के लिए समय का पूर्ण उपयोग कृषि को उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकती है।
(5) पर्याप्त वेतन– श्रमिक को समय पर उचित वेतन मिलना चाहिए। वेतन उचित होगा तो धन का अभाव नहीं रहेगा। श्रमिक गन्दी बस्तियों से या तो बाहर आ जायेगा अथवा वहीं रहकर अपनी जीवन-दशा को सुधारने का प्रयास करेगा।
(6) सरकार द्वारा आवास निर्माण- सरकार जो आवास गृह बनवाकर देगी, उनका निर्माण नियमित होगा। आवासों के बीच में फासला होगा। खुली हवा मिलेगी। पक्की सड़कें होंगी। गन्दा पानी निकासी को नालियाँ होंगी। बिजली पानी की व्यवस्था होगी। अब यह बस्तियाँ गन्दी बस्ती के नाम से नहीं पुकारी जायेंगी। साफ-सुथरी कॉलोनियाँ नेताओं के नाम से पुकारी जायेंगी। जैसे इन्दिरा आवास कालोनी, नेहरू कॉलोनी अथवा लालबहादुर शास्त्री आवास योजना आदि।
(7) सफाई का उचित प्रबन्ध– सफाई के व्यवस्था यदि नहीं होगी, तो कितनी ही नयी और साफ-सुथरी कॉलोनी भी गन्दी दिखाई देगी। कूड़े के ढेर, गंदा पानी नहीं होना चाहिए। इनके निस्तारण की व्यवस्था होने पर ही बस्ती स्वच्छ रूप से दिखाई देगी।
(8) व्यक्तिगत सफाई- बस्ती की सफाई रहने के साथ ही बस्ती के निवासियों को भी व्यक्तिगत रूप से स्वच्छ रहना आवश्यक है। नित्य स्नान करने, शौचालय की सफाई रखने, कपड़े धोकर पहनने, बीमारियों से बचकर रहने से व्यक्ति स्वच्छ रहेंगे तो उन्हें सफाई का एहसास रहेगा। वे अपनी वस्ती को भी गन्दा नहीं रहने देंगे।
(9) नगर नियोजन– नगरों का विकास नियमानुसार, सुनियोजित ढंग से होगा, तो गन्दी बस्तियों को पनपने का अवसर नहीं मिलेगा। नियोजन अधिकारी प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति के लिए उनकी श्रेणी के अनुसार भवन बनावाकर देंगे। अपनी इच्छा से कोई भी व्यक्ति मकान न बना सकेगा। उसे मकान बनवाने से पूर्व नगर नियोजन अधिकारी से अनुमति लेनी होगी। अनुमति उसे नियम के अन्तर्गत ही प्राप्त होगी।
सरकार द्वारा निर्मित व अनुमोदित आवास कालोनियों में जल व विद्युत की व्यवस्था होगी, स्वच्छता पर पूरा ध्यान दिया जायेगा। पार्क, विद्यालय, क्रीड़ा-स्थल, मनोरंजन के साधन, व्यावसायिक केन्द्र व बैंक, संचार केन्द्र इत्यादि समस्त सुविधाओं से युक्त यह कॉलोनियाँ गन्दी बस्तियों का स्थान ले लेंगी।
इस प्रकार उपर्युक्त सुझावों का कार्यान्वयन होने पर गन्दी बस्तियों की समस्या समाप्त हो जायेगी।
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