इतिहास

अफ्रीका की खोज | अफ्रीका का विभाजन | 1880 ई० से 1914 ई० तक अफ्रीका में ब्रिटिश औपनिवेशिक विस्तार

अफ्रीका की खोज | अफ्रीका का विभाजन | 1880 ई० से 1914 ई० तक अफ्रीका में ब्रिटिश औपनिवेशिक विस्तार

अफ्रीका की खोज

(Discovery of Africa)

उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम चतुर्थांश में अर्थत् लगभंग 1815 से 1900 ई. तक यूरोप के सभी बड़े-बड़े राष्ट्रों ने व्यापारिक एवं औद्योगिक उन्नति होने के कारण अपने साम्राज्य में वृद्धि करने तथा उपनिवेश बसाने का प्रयास किया। यद्यपि यूरोप-निवासियों को अफ्रीका महाद्वीप के उत्तरी तटवर्ती भागों का विगत कई शताब्दियों से परिचय था और उन्होंने वहाँ अपने उपनिवेशों एवं छोटे-छोटे राज्यों का निर्माण भी कर लिया था, परन्तु वे उस विशाल महाद्वीप के भीतरी भागों से परिचित नहीं हो सके । इसी कारण से उसे अन्ध महादीप (Dark Continent) कहा जाता था।

19वीं शताब्दी में अनेक ईसाई पादरियों और अन्वेषकों (Discoverers) ने इस महाद्वीप के अज्ञात भागों में प्रवेश किया। 1858 ई० में इंगलैण्ड के अन्वेषक स्प्रेक (Spreck) द्वारा अफ्रीका के मध्यवर्ती भाग में भूमध्यरेखा से दक्षिण की ओर एक विशाल झील (Lake) का पता लगाया गया । इन अन्वेषकों में स्टेनले (Stanley) तथा डेविड लिविंग्सटन (David Livingstone) के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। स्टेनले ने अपनी अफ्रीका महादीप की यात्राओं का विवरण एक पुस्तक के रूप में लिखा । लिविंग्सटन (Livingstone) ने जेम्बेसी नदी (River Zembessi) में यात्रा करके मध्य अफ्रीका के प्रदेशों की छानबीन की। उसने विक्टोरिया झील (Victoria Lake) और न्यासा झील (Nyassa Lake) का पता लगाया। स्टेनले ने डेविड लिविंग्सटन के कार्य को जारी रक्खा और कांगों नदी (River Congo) के बेसिन और कई झीलों का परिचय प्राप्त किया। उसकी साहस पूर्ण यात्राओं के विवरण पढ़कर अनेक साहसी व्यक्तियों ने अफ्रीका की खोज में अपना समय लगाया। फलतः 1880 ई० तक अफ्रीका महाद्वीप अन्धकारपूर्ण महाद्वीप (Dark Continent) न रहकर यूरोप-निवासियों के लिये परिचित हो गया तथा उसके लगभग सभी भागों का पता लगा लिया गया। अफ्रीका के अज्ञात प्रदेशों की खोज के कार्य में बेल्जियम (Belgium) के शासक लियोपोल्ड द्वितीय (Lcopold II) द्वारा स्थापित किये गये एक अन्तर्राष्ट्रीय संघ (International Union) ने अत्यधिक सहयोग दिया था।

अफ्रीका का विभाजन

(Partition of Africa)

अफ्रीका का विभाजन ही अफ्रीका की लूट कहलाता है। इस विशाल महाद्वीप को लूटने एवं उसमें अपने उपनिवेश और राज्यों की स्थापना करने के कार्य को यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा निम्न प्रकार से किया गया-

(1) बेल्जियम का भाग (Share of Belgium)- अफ्रीका के विभाजन अथवा लूट का कार्य सबसे पहले बेल्जियम नरेश लियोपोल्ड द्वितीय (Leopold II) द्वारा आरम्भ किया गया। उसने स्टेनले की खोजों के आधार पर कांगों राज्य (Congo State) पर अधिकार जमा लिया।

वह राज्य 1908 ई० तक लियोपोल्ड द्वितीग की निजी सम्पत्ति बना रहा । बेल्जियम का अनुकरण करते हुए अन्य यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा भी अफ्रीका के विभिन्न भार्गो को हड़पने और वहाँ अपने साम्राज्य तथा उपनिवेशों की स्थापना करने का कार्य आरम्भ किया गया। इस प्रकार अफ्रीका की लूट में फ्रांस, इंग्लैण्ड (England), जर्मनी (Germany), पुर्तगाल (Portugal), इटली (Italy] आदि यूरोपीय राष्ट्र भी सम्मिलित हो गये। शीघ्र ही उन्होनें लिबेरिया (Liberia) और ऐबीसीनियों (Abbysinia) को छोड़कर शेष सम्पूर्ण अफ्रीका का आपस में विभाजन कर लिया।

(2) फ्रांस की उपलब्धियाँ (Achievements of France)-अफ्रीका की लूट में फ्रांस को अन्य यूरोपीय राष्ट्रों की अपेक्षा सबसे अधिक बड़े भाग की प्राप्ति हुई। 1882 ई० में फ्रांस ने ट्यूनिस (Tunis) और अल्जीरिया (Algeria) के विस्तृत अफ्रीको राज्यों को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। ट्यूनिस पर इटली (Italy) अपना अधिकार जमाने का इच्छुक था। अतः फ्रांस के साथ ट्यूनिस के प्रश्न पर इटली के मतभेद बढ़ गये और दोनों राष्ट्रों के मधुर सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न हो गई। इन दोनों राज्यों को हड़पने के पश्चात् फ्रांस (France) ने मोरक्को (Morocco) पुर अधिकार करने का प्रयास किया। उधर स्पेन (Spain) भी मोरक्को को अपने अधिकार में लेना चाहता था, परन्तु उसके इस कार्य का इंगलैण्ड (England) ने भारी विरोध किया। 1912 ई० में फ्रांस ने सेन (Spain) और जर्मनी (Germany) को अपना मित्र बनाकर उनके सहयोग से अल्जीरिया (Algeria), ट्यूनिस (Tunis), मोरक्को (Morocco) और सहारा मरूस्थल (Sahara Desert) के दक्षिणी भाग पर अपने अधिकारों की मान्यता प्राप्त कर ली।

अफ्रीका के इन विशाल भूभागों पर अधिकार करने के अतिरिक्त फ्रांस को आइवरी कोस्ट (Ivory Coast), सेनेगाल (Senegal), कांगो बेसिन के बड़े भाग गायना (Guiena), नाइजर नदी की घाटी (Niger Valley), चाड झील (Lake Chaad) तथा अफ्रीका के पूर्वी तट के समीप स्थित विशाल द्वीप मेडेगास्कर (Medegascar) पर भी अधिकार करने में सफलता प्राप्त हुई। अफ्रीका के इन विशाल भूभागों को फ्रांसीसी साम्राज्य का अंग बना लिया गया। इसके पश्चात् फ्रांस की दृष्टि सूडान (Sudan) और नील नदी (River Nile) को घाटी में फैले मिस्र (Egypt) के उपजाऊ और समृद्ध प्रदेश की ओर आकर्षित हुई। परन्तु फ्रांस के लिये इन प्रदेशों पर अधिकार जमाने में इंग्लैण्ड (England) बाधक था, क्योंकि वहाँ स्वयं इंगलैण्ड अपने उपनिवेशों की स्थापना के लिये प्रयलशील था। सूडान (Sudan) पर अधिकार करने के लिये फ्रांस की सेना कप्तान मार्शा (Marchand) के नेतृत्व में भेजी। फ्रांसीसी सेनापति 1898 ई० में नील नदी के समीप स्थित फशोदा (Fashoda) नामक स्थान पर फ्रांस का झण्डा फहरा दिया। इंगलैण्ड की सरकार द्वारा फ्रांस के इस कार्य का तीव्र विरोध किया गया तथा फ्रांसीसी सेनापति को वहाँ से हट जाने के आदेश दिये। कप्तान मार्शा (Marchand) ने उसे फ्रांस के लिये अपमानजनक समझते हुए फशोदा से पीछे हटना अस्वीकार कर दिया। इससे सम्पूर्ण यूरोप में सनसनी फैल गई और फ्रांस (France) तथा इंगलैण्ड में युद्ध छिड़ जाने की आशंका उठ खडी हुई। अन्त में युद्ध-संकट को टालने के उद्देश्य से फ्रांस और इंगलैण्ड में एक समझौता हो गया, जिसके अनुसार फ्रांस को फशोदा (Fashoda) से अपनी सेना हटा लेनी पड़ी तथा उसके बदले में उसे मोरक्को (Morocco) में मनमानी करने की इंगलैण्ड की सरकार से स्वीकृति प्राप्त हो गई।

(3) इंगलैण्ड का विस्तृत भू-भाग पर अधिकार (Attainment of Gregter Part of Africa by England)- अफ्रीका महाद्वीप के विभाजन में सबसे विस्तृत और विशाल भू-भाग इंगलैण्ड को प्राप्त हुआ। वह अफ्रीका के सूडान (Sudan), सोमालीलैण्ड (Somaliland), युगान्डा (Uganda), रोडेशिया (Rhodesia), सियरा लिओन (Sierra Leone), जैम्बिया (Zambia), नाइजीरिया, (Nigeria), और ब्रिटिश पूर्वी अफ्रीका (British East Africa) आदि विस्तृत भू-भागों पर पहले ही अधिकार कर चुका था। दक्षिणी अफ्रीका में इंगलैण्ड ने अपने चार उपनिवेशों (Colonies), की स्थापना करने में भी सफलता प्राप्त कर ली थी। उसने इन उपनिवेशों को ट्रांसवाल (Transval), आरेंज रिवर कालोनी (Orange River Colony), नेटाल (Netal) तथा उत्तमाशा अन्तरीप (Cape of Good Hope) में बसाया था। 1812 ई० में इन चारों उपनिवेशों को दक्षिणी अफ्रीका के संघ (Union of South Africa) का निर्माण करके उसकी सदस्यता प्रदान की गई।

बोअर युद्ध (Boer War)- दक्षिणी अफ्रीका संघ में बसी हुई जूलू (Zulus) और. काफिर (Kafirs) जातियों में संघर्ष छिड़ गया। अंग्रेजों को यह आशंका भयभीत करने लगी कि कहीं जूलू जाति ट्रांसवाल पर अधिकार न कर लें। अत: इंगलैण्ड ने उसे अपनी अधीनता में लाने के प्रयत्न आरम्भ कर दिये। इस पर जूलू जाति ने विद्रोह कर दिया उस समय डच बोअर जाति ओरेन्ज (River Orange) की घाटी में बसी हुई थी। 1808 ई० में इंगलैण्ड द्वारा आरेन्ज घाटी के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर लिया गया। अतः वहाँ बसी हुई बोअर जाति ने वहाँ से हटकर ट्रांसवाल (Transval) को अपना निवास स्थान बनाकर वहाँ अपने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना कर ली थी। इसे इंगलैण्ड से मान्यता प्राप्त थी। इंगलैण्ड के प्रधानमंत्री डिजराइली (Disraeli) ने दक्षिणी अफ्रीका के राज्यों का संघ (Union) बना कर ट्रांसवाल को संघ में शामिल कर लिया। अपनी स्वतन्त्रता को स्थिर रखने के उद्देश्य से बोअर जाति ने सशस्त्र विद्रोह कर दिया, जो इतिहास में बोअर युद्ध (Boer War) के नाम से प्रसिद्ध है। यह युद्ध 1898 ई. से 1902 ई. तक चलता रहा। अन्त में बोअरों को इंगलैण्ड के साथ सन्धि करनी पड़ी, जिसके अनुसार ओरेंज फ्री स्टेट (Orange Free Stare) और ट्रांसवाल (Transval) को बिटिश उपनिवेश के रूप में मान्यता प्रदान करके उन्हें दक्षिणी अफ्रीका के संघ में सम्मिलित कर लिया।

इस प्रकार अफ्रीका महाद्वीप के अति विस्तृत प्रदेशों पर इंगलैण्ड की सरकार का अधिकार हो गया।

(4) जर्मनी का भाग (Share of Germany)-  कुछ समय तक जर्मन सम्राट कैसूर ने उपनिवेशों की स्थापना की ओर ध्यान नहीं दिया, परन्तु 1890 तक जर्मनी में उद्योग-धन्धों की पूर्णरूप से उन्नति हो चुकी थी अतः जर्मनी को भी अपने उपनिवेश वसाने और साम्राज्य का विस्तार करने के लिये प्रयत्न करने पड़े। जर्मन सम्राट कैसर विलियम द्वितीय (Qaisar William II) जर्मन साम्राज्य को अत्यधिक विशाल और शक्तिशाली बनाना चाहता था। अत: उसके द्वारा कुछ जर्मनों को अफ्रीका भेजा गया तथा उन्हें अफ्रीकी राज्यों के शासकों से सन्धि करके वहाँ जर्मन उपनिवेशों की स्थापना करने के आदेश दिये गए। डा. कार्ल पीटर्स (Dr. Karl Peters) पूर्वी अफ्रीका के पूर्वी, अफ्रीका के विशाल भू-भाग पर जर्मनी के अधिकार की स्थापना में सफल हुआ। सम्पूर्ण टैगनिका (Tanganika) और दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका के कैमरून्स (Kameroons) तथा टोगो लैण्ड (Togoland) के प्रदेश जर्मन साम्राज्य में सम्मिलित कर लिये गये। उसने अफ्रीकी तट के समीप प्रशान्त महासागर में स्थित द्वीपों पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार अफ्रीका की लूट में सबसे पीछे सम्मिलित होकर भी जर्मनी को वहाँ अपने विशाल साम्राज्य की स्थापना करने में सफलता प्राप्त हुई।

(5) अन्य यूरोप राष्ट्रों के भाग (Shares of other European Nations)-  यूरोप के बड़े-बड़े राष्ट्रों द्वारा अफ्रीका का विभाजन करने से पुर्तगाल (Portugal), सेन (Spain) और इटली (Italy) आदि अन्य छोटे-छोटे यूरोपीय राष्ट्रों को भी अफ्रीका में अपने उपनिवेश बसाने के लिये प्रेरणा प्राप्त हुई। पुर्तगाल (Portugal) ने बेल्जियम कांगो (Belgium Congo) के दक्षिण में स्थित अंगोला (Angola) पर अधिकार कर लिया। इसके अतिरिक्त पुर्तगाल ने मोजाम्बिक (Mozambique) को भी अपने साम्राज्य का अंग बनाने में सफलता प्राप्त की । स्पेन (Spain) द्वारा अफ्रीका के उत्तरी पश्चिमी तटीय प्रदेर्शों को स्पेनिश साम्राज्य में लाने का कार्य किया गया। उसने 1906 ई० में जिवाल्टर (Gibraltor) के समुद्र तटवर्ती प्रदेश को भी अपने साम्राज्य का अंग बना लिया। उधर इटली (Italy) भी अफ्रीका की इस लूट में पीछे नहीं रहा। उसके द्वारा 1870 में इरीट्रिया (Eritria) पर तथा 1889 ई० में सोमालीलैण्ड (Somaliland) पर अधिकार कर लिया गया। इसके पश्चात् इटली द्वारा ऐबीसीनिया (Abyssines) पर अधिकार करने के लिये प्रयास किये गये, परन्तु अडोवा के युद्ध (Battle of Adowa) में उसे पराजित होना पड़ा, जिससे ऐबीसीनिया पर अधिकार जमाने में उसे निराश होना पड़ा। फ्रांस के विरोध के कारण इटली (Italy) को ट्यूनिस (Tunis) में भी असफलता ही प्राप्त हुई। 1911-12 ई० में उसने तुर्क साम्राज्य पर आक्रमण करके त्रिपोली (Tripoli), लीविया, (Libiya) और सिरनेका (Cyrenaica) पर अधिकार कर लिया।

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Pankaja Singh

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