अनुसंधान क्रियाविधि

अनुसंधान समस्या का चयन एवं निरूपण | अनुसंधान की अवस्थायें | समस्या का निरूपण एवं चयन की आवश्यकता

अनुसंधान समस्या का चयन एवं निरूपण | अनुसंधान की अवस्थायें | समस्या का निरूपण एवं चयन की आवश्यकता | Selection and formulation of research problem in Hindi | Research Conditions in Hindi | Problem formulation and need for selection in Hindi

अनुसंधान समस्या का चयन एवं निरूपण

(Research Problem: Selection and Formulation)

जॉन टी. टाइनसेंड के शब्दों में, “समस्या समाधान के लिये प्रस्तावित एक प्रश्न है।” जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाता तो वह प्रश्न समस्या का रूप ले लेता है। वैज्ञानिक अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता दो या अधिक चरों के बीच क्या सम्बन्ध है इसका पता लगाना चाहता है और जब इन सम्बन्धों का ज्ञान नहीं हो पाता उसके लिये यह एक समस्या होती है।

समस्या चयन का महत्व (Importance) – अनुसंधान सर्वेक्षण में समस्या का चयन व सूत्रीकरण या निरूपण का कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। उपयुक्त समस्या का चयन सरल कार्य नहीं होता।

समस्या- चयन की कठिनाइयाँ (Difficulties of the Selection of Problem) – अनेक बार अनुसंधानकर्ताओं को समस्या के चयन में कठिनाई अनुभव होती है, क्योंकि उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उस क्षेत्र की सभी समस्याओं पर अनुसंधान का कार्य हो चुका है। इस स्थिति के लिये अनुसंधानकर्ता ही अधिकांशतः उत्तरदायी होते हैं। अकुशल होने के कारण उन्हें इस कठिनाई का आभास होता है।

अनुसंधान की अवस्थायें

(Research Phases)

अनुसंधान के अन्तर्गत तीन अवस्थायें आती हैं –

(1) कठिनाई की अनुभूति (Feeling of difficulty),

(2) समस्या अभिज्ञान (Problem Identification),

(3) समस्या सूत्रीकरण (Problem formulation)

यें तीनों अवस्थायें साथ-साथ घटित होती हैं

अनुसंधान की प्रथम अवस्था में अनुसंधानकर्त्ता असुविधा की अवस्था में होता है और उसके समक्ष एक अस्पष्ट चित्र होता है।

द्वितीय अवस्था के अन्तर्गत समस्या का अभिज्ञान प्राप्त करना होता है और उस समस्या का ज्ञान हो जाता है जिस पर अनुसंधान करना होता है।

तृतीय अवस्था में समस्या का सूत्रीकरण या निरूपण होता है और उसे समुचित ढंग से परिभाषित किया जाता है।

समस्या का निरूपण एवं चयन की आवश्यकता

(Necessity of Formulation and Selection of a Problem)

समस्या का निरूपण एवं चयन निम्नलिखित प्रमुख कारणों से आवश्यक है।

(1) वैज्ञानिक-विधि-सम्मत (In accordance with Scientific Method)- विषय और समस्या का चयन इस प्रकार से होना चाहिये कि वैज्ञानिक विधियों द्वारा उसका अध्ययन सम्भव हो।

(2) समस्या का क्षेत्र (Scope of the Problem)- समस्या चयन में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वह निर्धारित क्षेत्र से बाहर की न हो।

(3) विषय-वस्तु की सुलभता (Availability of the Subject Matter)- अनुसंधान के लिये ऐसे विषय का चयन करना चाहिये जिसके लिये अध्ययन सामग्री सुलभ हो।

(4) सामाजिक उपयोगिता (Social Utility)- अध्ययन के लिये चयनित विषय की सामाजिक उपयोगिता पर ध्यान रखना चाहिये अन्यथा अनुसंधान में किया गया परिश्रम व्यर्थ जाता है।

(5) निश्चित पक्ष (Certain Aspect) – अध्ययन के लिये चुना गया विषय समस्या के निश्चित पक्ष पर आधारित होना चाहिये।

(6) समस्या की उपयुक्तता (Problem being proper)- अनुसंधान के लिये चुना गया विषय या समस्या शाश्वत होनी चाहिये और विधि एवं सामग्री की दृष्टि से उसे व्यावहारिक होना चाहिये।

यंग के अनुसार अध्ययन के लिये समस्या का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है

(i) अध्ययनकर्त्ता में लक्ष्यों और रुचियों का होना।

(ii) अनुसंधान के लिये आवश्यक सामग्री की उपलब्धता।

(iii) अध्ययन के संदर्भ में निर्मित सैद्धांतिक मान्यताओं का जटिल न होना।

(iv) अध्ययन विषय से सम्बन्धित तथा पूर्व अनुसंधानों के आधार पर सीमित होना चाहिये।

सम्बन्धित अन्य सामग्री का अध्ययन- समस्या के चयन के लिये समस्या-सम्बन्धी अन्य उपलब्ध सामग्री का अध्ययन लाभदायक होता है। इससे इसके पूर्व के अनुसंधानकर्ताओं के विचार और उनके द्वारा उपयोग में लायी गयी अनुसंधान पद्धतियों का ज्ञान होता है।

पी० वी० यंग के विचार से इस आधार पर निम्नलिखित उपब्धियाँ होती हैं-

(1) अध्ययन के विषय में अन्तर्दृष्टि और सामान्य ज्ञान प्राप्त होते हैं।

(2) अवधारणा सम्बन्धी चिन्तन और उपकल्पनाओं के परीक्षण में सुगमता होती है।

(3) एक ही अनुसंधान कार्य की पुनरावृत्ति नहीं होती और अब तक उपेक्षित पक्षों पर भी ध्यान आकर्षित होता है।

समस्या का चयन और निरूपण अनुसंधान का प्रारम्भिक महत्वपूर्ण चरण है। नार्थथीप के शब्दों में, “अनुसंधानकर्ता बाद के स्तरों में कठिन पद्धतियों को प्रयोग में ला सकता है, लेकिन अध्ययन का आरम्भ गलत होने पर बाद में केवल पद्धतियाँ ही स्थिति को सुधार नहीं सकतीं। अनुसंधान कार्य उस जलयान की भाँति है जो बन्दरगाह से किसी लक्ष्य की ओर चलता है। यदि आरम्भ में ही दिग्भ्रम हो जाये तो उसके पथभ्रष्ट होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है भले ही यान कितनी ही कुशलता से निर्मित हो और उसका कप्तान कितना ही योग्य क्यों न हो।”

समस्या के प्रमुख तत्व –

एकॉफ ने किसी भी समस्या के लिये निम्नलिखित तत्वों की उपस्थिति आवश्यक मानी है –

(1) अनुसंधान- प्रत्येक समस्या किसी व्यक्ति या समूह से सम्बन्धित होती है और अनुसंधान का विषय होती है। यह केवल कल्पना नहीं होती।

(2) उद्देश्य समस्या- समाधान द्वारा कोई उद्देश्य प्राप्त करना लक्ष्य होता है। यदि उद्देश्य ही न होगा तो अनुसंधानकर्ता को यह ज्ञान न हो सकेगा कि उसे किस दिशा में जाना है।

(3) उद्देश्य प्राप्ति हेतु विकल्प- अनुसंधानकर्त्ता के पास उद्देश्य की प्राप्ति के विकल्प भी होने चाहिये तभी वह सर्वाधिक उपयुक्त मार्ग का चयन कर सकता है।

(4) विकल्पों के प्रति संदेह- अनुसंधानकर्ता को विकल्पों की छानबीन करने के बाद उपयुक्त विकल्प ग्रहण करना चाहिये। यदि वह सभी विकल्पों को उपयुक्त मानकर चलेगा तो अनुसंधान का कार्य बाधित हो जायेगा।

(5) समस्या से सम्बन्धित पर्यावरण- प्रत्येक समस्या से सम्बन्धित एक विशेष पर्यावरण होता है। पर्यावरण का परिवर्तन समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है।

उदाहरण: उपयुक्त तत्वों को निम्नलिखित उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है –

एक समस्या है कि छात्रों को किस अध्ययन विधि द्वारा अधिक ज्ञानार्जन कराया जा सकता है। दो विकल्प हैं-प्रश्नों का उत्तर लिखवाकर शिक्षा दी जाये या प्रत्यक्ष व्याख्या द्वारा। दोनों की उपयुक्तता में अभी भी संदेह है। अब प्राध्यापक अपना अनुसंधान कार्य प्रारम्भ करता है और क्रमशः दोनों विधियों को अपनाकर उनमें से अधिक प्रभावशाली विधि का पता कर लेता है।

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Pankaja Singh

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