अर्थशास्त्र

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख लाभ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से हानियाँ

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख लाभ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से हानियाँ

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने बताया कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से देश के कुल कल्याण में वृद्धि होती है। इसके पहले वणिकवादियों ने यह मत व्यक्त किया था कि यदि एक देश सदैव अन्य देशों को निर्यात करने में सफल होता है तो वह समृद्ध हो सकता है। इसे भी उन्होंने व्यापार के लाभ से सम्बन्धित किया, किन्तु इसका विरोध करते हुए प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने बताया कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से केवल एक देश को ही नहीं वरन् सब देशों को लाभ होता है जिसका आधार है विशिष्टीकरण और उसके कारण बढ़ा हुआ उत्पादन।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख लाभ

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख लाभों की गणना निम्न प्रकार की जा सकती है-

(1) प्राकृतिक साधनों का इष्टतम उपयोगः चूँकि प्रत्येक देश उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करता है जिनके उत्पादन में उसे तुलनात्मक लाभ अधिक प्राप्त होते हैं। अत: प्रत्येक देश उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का पूरा-पूरा प्रयोग करता है। चूँकि किसी वस्तु में उत्पादन के विभिन्न साधनों की आवश्यकता होती है, अत: वह देश आवश्यक दुर्लभ साधनों का आयात करके अपन प्रचुर साधन का प्रयोग उत्पादन क्रिया में कर सकता है।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरणः प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का कारण श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण है। वर्तमान में कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे समृद्धशाली देश भी अनेक वस्तुओं के लिए दूसरे देशों पर निर्भर करते हैं। इस निर्भरता का कारण अधिकाधिक अन्तर्राष्ट्रीय विशिष्टीकरण एवं श्रम विभाजन की क्रियायें है। विशिष्टीकरण के सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक देश उन्हीं वस्तुओं के उत्पादन पर अधिक ध्यान देता है जिनके लिए उसे तुलनात्मक लाभ अधिक प्राप्त होता है अथवा उनकी उत्पादन लाग न्यूनतम होती है।

(3) आर्थिक विकास की तीव्र गति; अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के फलस्वरूप विश्व के गरीब देश भी अपने आर्थिक विकास की गति को तीव्र कर सकते हैं। उनको विदेशी पूँजी प्राप्त हो सकती है जिसको सहायता से अपने देश में भावी उद्योगों की स्थापना कर सकते है। इनके परिणास्वरूप देश की राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि होती है तथा देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से होता है।

(4) दोनों देशों के उपभोक्ताओं को सस्ती वस्तुओं की प्राप्ति : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण बाजार प्रतियोगिता में वृद्धि हो जाती है। पुनः विशिष्टीकरण एवं देश के प्राकृतिक साधनों का पूर्ण उपयोग होने से उत्पादन लागत भी कम हो जाती है। अत: दोनों देशों के उपभोक्ताओं को अच्छी वस्तुयें कम कीमत पर मिल जाती हैं।

(5) उच्च जीवन स्तरः जब उपभोक्ताओं को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के फलस्वरूप वस्तुएं अच्छी एवं सस्ती उपलब्ध हो जाती है तो वे अपनी सीमित आय से अधिक मात्रा में वस्तुओं का उपयोग कर सकते हैं। इसके साथ-साथ उन वस्तुओं का भी उपभोग कर सकते हैं जो इस देश में उत्पन्न नहीं की जाती। इस प्रकार उनका जीवन-स्तर ऊँचा हो जाता है।

(6) अकाल अथवा संकटकाल में सहायता: जब देश अकाल, भूचाल, महामारी, युद्ध अथवा अन्य संकट उत्पन्न हो जाता है तो उससे सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। देश में आवश्यक वस्तुओं का अभाव उत्पन्न हो जाता है और वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगती हैं। ऐसे संकटकालीन समय में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार उस देश की अर्थव्यवस्था के लिए वरदान सिद्ध होता है।

(7) सांस्कृतिक सम्बन्धः अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न देशों के मध्य व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करता है जिसके फलस्वरूप एक देश के व्यक्ति अन्य देशों में व्यापारिक जानकारी हेतु भ्रमण करते हैं। भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के लोग जब आपस में मिलते हैं तो उन्हें एक-दूसरे के रीति-रिवाज, राजनीतिक आचार-विचार, रहन-सहन आदि के विषय में जानकारी मिलती है तथा विश्व एकता को बढ़ावा मिलता है।

(8) कच्चे माल की उपलब्धिः अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से उन देशों को भी औद्योगिकरण और आर्थिक विकास का अवसर मिल जाता है जिनके पास कच्चे माल के अतिरिक्त अन्य साधन उपलब्ध होते हैं।

(9) विदशी विनिमय की उपलब्धिः निर्यातों द्वारा देश को विदेशी विनिमय की प्राप्ति होती है। जिसका उपयोग कच्चे माल व मशीनों के आयात हेतु सुगमतापूर्वक किया जा सकता है। वर्तमान समय में विदेशी विनिमय किसी देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

(10) अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग: अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के फलस्वरूप एक-दूसरे पर निर्भरता बढ़ती जाती है। अत: दोनों पक्षों के आपसी सहयोग से ही दोनों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु विश्व में अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं का निर्माण किया गया है। इन संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना को प्रोत्साहित करना है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से हानियाँ

(1) खनिज पदार्थों की समाप्ति (Exhaustion of Mineral Resources)- विदेशी व्यापार हेतु यदि खनिज पदार्थ, जैसे-कोयला, लोहा, अभ्रक, मैंगनीज, पेट्रोल आदि अधिक मात्रा में निर्यात किये जायें तो वे शीघ्र समाप्त हो जाते हैं और उनका प्रतिस्थापन नहीं किया जा सकता  है।

(2) विदेशी प्रतियोगिता का प्रतिकूल प्रभाव (Adverse Effect of Foreign Competition)- व्यापार से देशी उद्योगों के लिए विदेशी प्रतियोगिता का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

(3) देश का एकांगी विकास (One-sided Development of Country)- विदेशी व्यापार विशिष्टीकरण और श्रम-विभाजन के आधार पर किया जाता है अर्थात् देश केवल उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करता है जिन्हें वह और देशों के मुकाबले में कम से कम कीमत पर उत्पादित कर सकता है। इस प्रकार देश में सभी उद्योग धन्धों का विकास न होकर केवल कुछ उद्योग-धन्धों का विकास होता है।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय द्वेष (International Malice)-  व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय द्वेष और युद्ध को जन्म देता है क्योंकि बाजारों के लिए पक्षपात किया जाता है, युद्ध लड़े जाते हैं और उपनिवेशों (Colonies) की स्थापना की जाती है।

(5) राजनीतिक दासता (Political Slavery)- व्यापार के द्वारा विदेशी पूँजीपति और राजनीतिज्ञ देश की भूमि पर अपना आधिपत्य जमाने लगते हैं और देश की स्वाधीनता खतरे में पड़ जाती है।

(6) भ्रष्टाचार को बढ़ावा (Encouragement to Corruption)- कई उत्पादक विशेषत: बहुराष्ट्रीय निगम अपने माल का निर्यात करने के लिए आयातक देशों के अधिकारियों को रिश्वत दिया करते हैं जिससे वे उनका ही माल खरीदें। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।

(7) बुरे सांस्कृतिक प्रभाव (Bad Cultural Effects)- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कभी-कभी बुरे सांस्कृतिक प्रभाव भी पड़ते हैं। एक देश के निवासी किसी दूसरे देश से हानिकारक व विलासिता सम्बन्धी वस्तुओं का आयात करने लगते हैं। दूसरे देश के निवासियों के सम्पर्क से सोचने तथा कार्य-प्रणाली के ढंगो में भी परिवर्तन हो जाते हैं।

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Pankaja Singh

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