अर्थशास्त्र

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से होने वाले लाभ तथा हानियाँ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से हानियाँ

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से होने वाले लाभ तथा हानियाँ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से हानियाँ

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से होने वाले लाभ तथा हानियाँ

कोई राष्ट्र अपने नागरिकों की समस्त आवश्यकताओं को अपने ही उत्पादन से संतुष्ट नहीं कर सकता। अत: राष्ट्र उसी प्रकार अन्योन्याश्रित होते हैं जिस प्रकार व्यक्ति। श्रम विभाजन का सिद्धान्त जो व्यक्तियों को विशिष्टीकरण के लिए प्रेरित करता है, राष्ट्रों को भी विशिष्टीकरण अपनाने के लिए उत्साहित करता है। राष्ट्रों के साधन और उनके नागरिकों की योग्यताएं भिन्न होने के कारण, प्रत्येक राष्ट्र एक अथवा कुछ वस्तुओं का उत्पादन करने में अपेक्षाकृत लाभ की स्थिति में होता है। अतएव वह उस एक या कुछ वस्तुओं का उत्पादन घर पर करता है और शेष वस्तुओं को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा प्राप्त करता है। राष्ट्रों के बीच इस प्रकार के वस्तु-विनियम से उन्हें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ

(Advantages of International Trade)

  1. भौगोलिक श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण (Geographical Division of Labour and specialization)- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार प्रत्येक राष्ट्र को कुछ वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टीकरण करने का अवसर देता है। स्विट्जरलैण्ड के निवासियों ने घड़ी बनाने में, डेनमार्क के निवासियों ने पशु पालन में तथा फ्रांस के निवासियों ने शराब के उत्पादन में विशेष योग्यता प्राप्त कर ली है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अभाव में प्रत्येक राष्ट्र को आवश्यकता की सभी वस्तुओं का उत्पादन करना होता, चाहे लागत कुछ भी क्यों न होती।
  2. साधनों का अनुकूलतम उपयोग (Optimum Use of Factors of Produ- ction)- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार प्रत्येक राष्ट्र को अपने साधनों का अनुकरण उपयोग करने का अवसर देता है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार करने वाले देश अपने साधनों को केवल उन्हीं वस्तुओं के उत्पादन में लगाते हैं जिनका अपेक्षाकृत कम लागत पर कर सकते हैं। इन वस्तुओं को निर्यात कर वे आवश्यकता की अन्य वस्तुओं को ऐसे देशों से प्राप्त करते हैं जिनकी लागत अपेक्षाकृत कम होती है। इस प्रकार सभी व्यापारी देशों के साधनों का अनुकूलतम उपयोग होता है।
  3. विश्व उत्पादन में वृद्धि (Increasing World Production)– साधनों के अनुकूलतम उपयोग के कारण प्रति वस्तु कम लागत पर अधिक वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। यदि दो देश क और ख दोनों वस्तुओं का उत्पादन अपने-अपने लिए करते हैं तो कुल उत्पादन कम होता है, किन्तु तुलनात्मक लाभ के सिद्धान्त पर यदि प्रत्येक देश एक ही वस्तु का उत्पादन करता है तो कुल उत्पादन अधिक होता है।
  4. कम मूल्य पर विभिन्न वस्तुओं की उपलब्धि (Availiability of Different Goods at Low Prices)-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के द्वारा उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ प्राप्त होती हैं तथा उनका मूल्य भी कम देना पड़ता है। ब्रिटेन को भारतीय चाय, संयुक्त राज्य अमेरिका को भारतीय काजू और कॉफी, भारत के उपभोक्ताओं को ईरान के खजूर और आस्ट्रेलिया की उन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के द्वारा ही मिल पाती हैं । व्यापार के अभाव में हमें अनेक वस्तुओं के उपभोग से वंचित रहना पड़ता है अथवा देश में ही अधिक लागत पर उनको उत्पन्न करना पड़ता है।
  5. उच्च जीवन स्तर (High Standard of Living)- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रभाव से उपभोक्ताओं का जीवन स्तर उच्चतर होता है। उन्हें अधिक मात्रा में श्रेष्ठतम वस्तुएं प्राप्त होती हैं तथा विविध आवश्यकताओं को संतुष्ट करना सम्भव होता है। उन्हें ऐसी वस्तुएँ भी मिल जाती हैं जो उनके अपने देश में उत्पन्न हो ही नहीं सकतीं। भारत में रहने वाले उपभोक्ता अमेरिका, जापान और चीन की बनी वस्तुओं का उपभोग करते हैं।
  6. बाजार का विस्तार और उत्पादन के पैमाने में वृद्धि (Extension of Markets and Increasing the Scale of Production)- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण राष्ट्रों की आय में वृद्धि होती है तथा प्रभावपूर्ण माँग बढ़ती है। अन्य देशों के बाजार निर्यात के लिए खुल जाते हैं जिससे बड़े पैमाने पर उत्पादन करना सम्भव होता है। बड़े पैमाने के उत्पादन से लागतें घटती हैं और बाजार का और अधिक विस्तार होता है।
  7. उत्पादन की वृद्धि में निरन्तर सुधार (Continuous Improvement in Production)- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता को जन्म देता है। अतः प्रत्येक राष्ट्र अन्य राष्ट्रों की अपेक्षा अच्छी और सस्ती वस्तुएँ बनाना चाहता है। इस हेतु उन्हें उत्पादन विधि में निरन्तर सुधार करना पड़ता है। कारीगरों और विशेषज्ञों के आदान-प्रदान के साथ तकनीकी ज्ञान का आदान-प्रदार भी होता है। परस्पर विचार विनिमय से औद्योगिक ज्ञान में वृद्धि होती है तथा नए-नए आविष्कार होते हैं।
  8. संकट काल में सहायक (Helpful in Difficult Period)- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आपत्तियों का सामना करने में सहायक होता है। यदि किसी देश में बाढ़ अथवा अनावृष्टि के कारण, खाद्यान्न की कमी पड़ जाए तो विदेशों से अन्न आयात कर जनता को भुखमरी से बचाया जा सकता है। जैसे कठिनाई के वर्षों में अमेरिका से गेहूँ मँगा कर भारतीय जनता की आवश्यकता को पूरा किया गया। इसी प्रकार आक्रमण होने पर कोई देश अपने लिए सुरक्षा सामग्री का आयात कर अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है।
  9. आर्थिक विकास का प्रेरक (Catalyst of Economic Development)- एक ऐसे देश में जिसके संसाधन अल्पविकसित हो, अन्तर्राष्ट्रीय-व्यापार कभी-कभी औद्योगिक क्रान्ति का कारण बन जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय-व्यापार कई देशों की आर्थिक प्रगति की आधार-शिला बना है। अरब राष्ट्रों की आर्थिक प्रगति तेल के निर्यात के फलस्वरूप हो रही है। इंग्लैण्ड का आर्थिक विकास भी विदेशी व्यापार के कारण हुआ।
  10. रोजगार के अवसरों में वृद्धि (Increament in the Employment Opportunities)– अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से उत्पादन तथा अन्य आय में वृद्धि होती है। फलतः रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है। स्वतंत्र-व्यापार निर्यात उद्योगों में रोजगार के नए-नए अवसर प्रदान करता है।
  11. वस्तु एवं साधन मूल्यों में समानता (Equality Prices of Goods and Factors of Productions)- अन्तर्राष्ट्रीय-व्यापार के कारण अतिरिक्त वस्तुएं निर्यात हो जाती हैं, जिससे निर्यातक देश में उनके मूल्य बढ़ जाते हैं और आयातक देश में कम हो जाते हैं। इस प्रकार वस्तु मूल्यों में समानता उत्पन्न होती है। निर्यातों में सस्ते सुलभ साधन प्रयोग किए जाते हैं तथा देश में दुर्लभ और महंगे साधनों से निर्मित वस्तुओं का आयात किया जाता है। इस प्रकार परोक्ष रूप से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार साधन-मूल्यों (लगान, मजदूरी तथा ब्याज) में भी समानता उत्पन्न करता है
  12. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग (International Co operations)-  अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से पारस्परिक सहयोग की भावना बलवती होती है। वस्तुओं के आदान-प्रदान के साथ भावनात्मक सम्बन्ध जन्मते हैं। प्रायः देखा गया है कि व्यापारिक सम्बन्ध रखने वाले देशों ने संकट काल में एक-दूसरे की मदद की है।
  13. एकाधिकार पर रोक (Control over Monopoly)-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विश्वव्यापी प्रतियोगिता के लिए देश के द्वार खोल देता है। इससे किसी एक देश के उत्पादकों का एकाधिकार समाप्त हो जाता है तथा देश एकाधिकार की हानियों से बच जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से हानियाँ

(Disadvantages of International Trade)

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एक ‘अमिश्रित वरदान’ नहीं है। जहाँ व्यापार से अनेक लाभ होते हैं वहीं कतिपय हानियाँ भी होती हैं। महत्त्वपूर्ण हानियों का विवेचन निम्न प्रकार है-

  1. विदेशों पर निर्भरता (Dependency on Foreigners)- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण देश की अर्थव्यवस्था विदेशों पर निर्भर हो जाती है। अत: विदेशों में होने वाले आर्थिक परिवर्तनों को देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। तेज मन्दी और आर्थिक संकट इसी कारण विश्वव्यापी बन जाते हैं । युद्ध काल में विदेशों पर निर्भरता आत्मघाती सिद्ध हो सकती है। यदि युद्ध काल में आवश्यक सामग्री का आयात बन्द हो जाए तो पराजय प्राय: निश्चित है।
  2. दुर्लभ साधनों का क्षय (Destoration of Scark Factors of Produ: ction)- अतर्राष्ट्रीय व्यापार खुल जाने पर व्यापारी निजी लाभ के लिये देश के दुर्लभ साधनों का निर्यात कर देते हैं। खानों के स्वामियों का लाभ अधिक से अधिक खनिज पदार्थों के निर्यात में होता है, अत: वे शीघ्रतिशीघ्र खनन करते हैं। फलतः दुर्लभ पदार्थों का क्षय होता है।
  3. देशी उद्योग-धन्धों के लिए प्रतिकूल परिस्थितियाँ (Unfavourable Condi- tions for Indigenous Industries)- स्वतंत्र व्यापार के कारण देश के उद्योग विदेशी वस्तुओं की प्रतियोगिता के लिए खुल जाते हैं जो नए उद्योगों को नष्ट कर सकती हैं। विशेष हानि तब होती है जब विदेशी उत्पादक ‘राशिपातन’ कर रहे हों। जब तक भारत का बाजार ब्रिटेन की वस्तुओं के लिए खुला रहा, भारतीय उद्योग नहीं पनप सके।
  4. अल्पविकसित देशों का शोषण (Exploitation of Underdeveloped Countries)- जब विकसित और अल्पविकसित राष्ट्रों के बीच व्यापार होता है तब अल्पविकसित राष्ट्रों का शोषण होता है, क्योंकि व्यापार की शर्ते विकसित राष्ट्रों के पक्ष में होती हैं। इस प्रकार अल्पविकसित स्थायी हो जाता है।
  5. राष्ट्रीय सुरक्षा (National Defence)- अल्पविकसित राष्ट्रों से कच्चे माल की प्राप्ति तथा उनके बाजारों में अपने उत्पादन की खपत का लाभ उठाने के लिए विकसित राष्ट्र अपना राजनैतिक प्रभुत्व स्थापित करते हैं। यूरोप के विकसित देशों ने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों में अपने उपनिवेश स्थापित किए और सैकड़ों वर्षों तक उनका शोषण किया।
  6. अर्थव्यवस्था का एकांगी विकास(One-sided Economic Develop- ments)- तुलनात्मक लाभ के सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक देश कुछ वस्तुओं के उत्पादन और निर्यात में विशिष्टीकरण करता है, जिनमें उसे अन्य वस्तुओं की अपेक्षा तुलनात्मक लाभ होता है। अतएव देश की अर्थव्यवस्था कुछ गिने-चुने उद्योगों पर आश्रित हो जाती है। निर्यात उद्योगों का अधिक विकास हो जाता है और अन्य उद्योग अविकसित रह जाते हैं। इस प्रकार देश में द्वैत- अर्थव्यवस्था का जन्म होता है, जिसमें विकसित निर्यात-क्षेत्र और अल्पविकसित निर्वाह अर्थव्यवस्था का सहअस्तित्व रहता है।
  7. हानिकार वस्तुओं का आयात (Import of Harmful Goods)- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए ‘खुली अर्थव्यवस्था’ में विदेशों से ऐसी वस्तुओं का आयात भी हो सकता है जो स्वास्थ्य अथवा चरित्र के लिए हानिकर होती है।
  8. अन्तर्राष्ट्रीय अस्थिरता (International Instability)- कभी-कभी बाजारों को हथियाने की कोशिश इस सीमा तक बढ़ जाती है कि देशों के बीच आपसी तनाव उत्पन्न हो जाता है जो शीत या गर्म युद्ध की स्थिति पैदा कर सकता है। फ्रांस, इंग्लैण्ड और पुर्तगाल के बीच कई बार उपनिवेशों और बाजारों के लिए युद्ध हुए हैं।

उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से जहाँ एक ओर बहुत से लाभ होते हैं, वहीं दूसरी ओर कतिपय हाँनियाँ भी होती हैं। परन्तु हानियों की अपेक्षा लाभ ही अधिक हैं। समान विकसित राष्ट्रों के बीच व्यापार लाभकारी ही होता है। कुछ देशों के लिए तो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एक अनिवार्य आवश्यकता है।

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Pankaja Singh

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