अर्थशास्त्र

अन्तराष्ट्रीय व्यापार का अर्थ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रकृति | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का महत्व

अन्तराष्ट्रीय व्यापार का अर्थ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रकृति | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का महत्व

अन्तराष्ट्रीय व्यापार का अर्थ

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ उस व्यापार से है जिसके अन्तर्गत दो या दो से अधिक राहों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय किया जाता है। इसे बाहा व्यापार (External Trade) अथवा विदेशी व्यापार (Foreign Trade) भी कहते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आधारभूत रूप से विनिमय (Exchange) की ही क्रिया है। अतएव इसका विश्लेषण विनिमय के सामान्य सिद्धान्त’ के अन्तर्गत होना चाहिए। विनिमय का आरम्भ श्रम विधाजन एवं विशिष्टीकरण से होता है। वैयक्तिक श्रम विभाजन में विभिन्न व्यक्ति उन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं जिनके लिए उनका श्रम अधिक उपयुक्त है अर्थात् जिनके उत्पादन में उन्हें विशेष सुविधा और कार्य कुशलता है। इसके बाद वे अपने अतिरेक का विनिमय करते हैं। ऐसे विशिष्टीकरण और विनिमय से समाज का कुल उत्पादन (Total Production) बढ़ता है और इनमें भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अधिक संतुष्टि मिलती है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के भी यही कारण हैं। प्रत्येक देश अपने साधनों को ऐसी वस्तुओं के उत्पादन में लगाते हैं जिनमें उनके साधन अन्य देशों की तुलना में अधिक निपुण और कार्यकुशल हों। तत्पश्चात् वह देश अपने अतिरेक को दूसरे देश से व्यापार द्वारा एक-दूसरे से बदलकर सामूहिक संतुष्टि बढ़ाने में सफल रहते हैं। इस संदर्भ में एडम स्मिथ (Adam Smith) ने निरपेक्ष लाभ (Absolute Advantage) को आधार बनाते हुए अपना तर्क निम्न शब्दों में प्रस्तुत किया है-

“परिवार का समझदार स्वामी जिस वस्तु को दूसरों से कम कीमत में खरीद सकता है उसे स्वयं नहीं बनाएगा अर्थात् उस वस्तु का उत्पादन वह स्वयं नहीं करेगा। जो क्रिया प्रत्येक परिवार के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण समझी जाती है वह किसी राष्ट्र के लिए मूर्खतापूर्ण नहीं हो जायेगी। यदि हम किसी दूसरे देश से कोई समान सस्ते भाव पर (सस्ती कीमत में) पा सकते हैं तो बेहतर होगा कि अपने उद्योगों की उत्पत्ति के बदले ऐसा सामान प्राप्त कर लें।”

(एडम स्मिथ)

एडम स्मिथ का यह विचार उत्पादन में निरपेक्ष लाभ (Absolute advantage i production) पर आधारित है। विनिमय का अधिक व्यापक रूप उत्पादन में तुलनात्मक लाभ (Comparative advantage in production) पर आधारित होता है। डेविड रिकार्डो (David Recordo) नामक प्रसिद्ध प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री ने इसका उल्लेख निम्न रूप में किया है-

‘दो व्यक्ति हैं जो जूते और टोपी बना सकते हैं। इनमें से एक व्यक्ति दोनों वस्तुओं के उत्पादन में अधिक कार्यकुशल है। परन्तु टोपी बनाने में वह दूसरे से 20 प्रतिशत श्रेष्ठ है, जबकि जूते बनाने में वह दूसरे से 33 प्रतिशत श्रेष्ठ है। अब यदि अधिक निपुण व्यक्ति केवल जूते बनाये और टोपी का उत्पादन कम निपुण व्यक्ति को करने दे, तो क्या यह दोनों के लिए हितकर न होगा?”

(डेविड रिकार्डो)

एडम स्मिथ एवं डेविड रिकार्डो के उपर्युक्त कथनों से यह सुस्पष्ट है कि आन्तरिक व्यापार (Internal Trade) और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade) में आधारभूत समानता है। आन्तरिक अथवा अन्तक्षेत्रीय व्यापार (Interregional Trade) और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में आधारभूत समानता है। दोनों के मध्य निम्नलिखित समानताएँ हैं-

  1. आन्तरिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आधार ‘ श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण’ होता है चाहे, यह निरपेक्ष लाभ (निरपेक्ष सुविधा) पर आधारित हो अथवा तुलनात्मक लाभ (सुविधा) पर आधारित हो। इस तरह एडम स्मिथ एवं डेविड रिकार्डों के अनुसार दोनों प्रकार के व्यापारों में आधारभूत समानता है।
  2. प्रसिद्ध आधुनिक अर्थशास्त्री बर्टिल ओहलिन के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अन्तर्क्षेत्रीय व्यापार की केवल एक विशिष्ट दशा है।” उसने इस आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के पृथक् सिद्धान्त की आवश्यकता को अस्वीकार कर दिया।
  3. आन्तरिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार दोनों का उद्देश्य कम लागत पर वस्तुओं का उत्पादन करना है। अत: दोनों पक्षों के मध्य व्यापार से दोनों पक्षों को लाभ होता है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में ये दोनों पक्ष ही दो देश कहे जाते हैं। इस तरह दोनों ही राष्ट्र या देश अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का आयात (Improt) करते हैं और दूसरे की आवश्यकता की वस्तुओं का निर्यात (Export) करते हैं।
  4. एक ही देश में जब विभिन्न क्षेत्रों के व्यापारी आपस में व्यापार करते हैं तो उनमें सामाजिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध बनते हैं। इसी तरह जब अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण दो देश एक-दूसरे के समीप आते हैं तो उनमें सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सम्बन्ध बनते हैं। भारत और ताइवान का सम्बन्ध इसका एक उदाहरण है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आन्तरिक और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में कोई मौलिक अन्तर नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आन्तरिक व्यापार की एक विशिष्ट दशा है। आधुनिक अर्थशास्त्री बर्टिल ओहलिन (B. Ohlin), के शब्दों में, “अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, अन्तक्षेत्रीय व्यापार का एक विशिष्ट रूप मात्र है।”

‘किन्तु प्रसिद्ध प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डो  (David Recardo) और उनके समर्थकों ने आन्तरिक व्यापार अथवा अन्तक्षेत्रीय व्यापार और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को पृथक्-पृथक् समझा तथा यह निष्कर्ष दिया कि दोनों में अनेक मूल अन्तर है जिसके फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का एक अलग सिद्धान्त देना आवश्यक हो जाता है। इसी विचारधारा के अनुसार प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों-डेविड रिकार्डो, जे. एस. मिल एवं डेविड ह्यूम ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रतिष्ठित (क्लासिकल) सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त से निम्न तीन प्रश्नों पर प्रकाश पड़ता है-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार क्यों होता है ? अथवा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आधार क्या है? इस प्रश्न का उत्तर डेविड रिकार्डो (David Recardo) के प्रसिद्ध ‘तुलनात्मक लागत सिद्धान्त’ (Comparative Cost Theory) से मिलता है।
  2. व्यापार की शर्ते (Terms of Trade) या वस्तुओं की विनिमय दर (Exchange Rate) किस प्रकार निर्धारित होती है? इस प्रश्न का उत्तर जे. एस. मिल (J. S. Mill) के ‘अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य सिद्धान्त’ (Theory of International Values) अथवा ‘प्रति-माँग (पारस्परिक माँग) सिद्धान्त’ (Reciprocal Demand Theory) में मिलता है।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में संस्थित (Equilibrium) स्थापित करने वाली प्रक्रियाएँ क्या हैं? इस प्रश्न का उत्तर डेविड ह्यूम (David Hume) के ‘स्वर्ण प्रवाह सिद्धान्त’ (Mint Flow Mechanism) द्वारा प्राप्त होता है।

वास्तव में क्लासिकल (प्रतिष्ठित) व्यापार सिद्धान्त इन तीनों अवयवों के मिश्रण से बनता है जो आन्तरिक व्यापार से सर्वथा भिन्न अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के तीन महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देता है। सारांश यह है कि आन्तरिक व्यापार और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में कुछ मूलभूत अन्तर पाया जाता है, जिसका संक्षिप्त उल्लेख निम्नवत् है-

(1) किसी देश के अन्दर श्रम तथा पूँजी पूर्णतः गतिशील होते हैं परन्तु विभिन्न देशों के बीच ये पूर्णतः अगतिशील होते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रकृति

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र के रूप में परिभाषित किया जाता है अतः प्रकृति अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र की है वही प्रकृति अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की भी है।

किसी भी विषय की प्रकृति के अन्तर्गत हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि वह विज्ञान है अथवा कला। विज्ञान किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को कहा जाता है। विज्ञान में किसी तथ्य के कारण एवं परिणाम के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है तथा इसके आधार पर नियमों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है। जहाँ तक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सम्बन्ध है विज्ञान की भाँति इसमें भी अनेक नियमों एवं सिद्धान्तों का अध्ययन करते हैं। इनका विकास भी क्रमबद्ध ढंग से होता है। अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र ऐसे सिद्धान्तों की स्थापना करता है जिनके आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार होता है तथा जो विदेशी व्यापार में संलग्न व्यक्तियों के व्यवहारों का अध्ययन करता है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार या अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र को नि:सन्देह विज्ञान कहा जा सकता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का महत्व

आधुनिक औद्योगिक समाज एवं आर्थिक विकास का आधार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ही है। जे. .एम. मायर (J.M. Meire) के शब्दों में, “अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ने अनेक ऐसे देशों के विकास को आगे बढ़ाने का कार्य किया है जो कि आज संसार के सबसे अधिक समृद्ध देश समझे जाते हैं। ब्रिटेन का आर्थिक विकास ऊनी तथा सूती कपड़ों के कारण हुआ। स्वीडन का लकड़ी के व्यापार द्वारा, डेनमार्क का डेयरी के निर्यात के कारण, कनाडा का गेहूँ निर्यात के कारण, स्विट्जरलैण्ड का फीता तथा घड़ी बनाने के कारण तथा जापान का रेशम का व्यापार करने के कारण हुआ।” वाल्टर क्रौज (jlter Krause) के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अधिक लोगों को जीवित रहने, विभिन्न रसों का आनन्द लेने और अपने जीवन-स्तर को ऊँचा बनाये रखने की सुविधाएँ देता है।” मार्शल (Marshall) के अनुसार, “विदेशी व्यापार से दोहरा लाभ होता है- एक तो देश में उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है तथा दूसरे विदेशों से वस्तुएँ प्राप्त करके देशवासियों की आवश्यकताएँ भी तृप्त की जा सकती हैं।” हान व गोमेज के शब्दों में, “अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ने विश्व के लोगों को सुखी बनाने व उनकी चहुँमुखी उन्नति करने की प्रेरणा दी है।”

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Pankaja Singh

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