
अंश की परिभाषा | मूल्य आय अनुपात | अधिमान्य या पूर्वाधिकार अंश | बन्ध-पत्र का अर्थ एवं परिभाषा | ऋण-पत्र एवं बन्ध-पत्र में अन्तर | Definition of share in Hindi | price-earnings ratio in Hindi | Preferential or Preference Shares in Hindi | Meaning and definitions of bond in Hindi | difference between debenture and debenture in Hindi
अंश की परिभाषा
(Definition of share)
अंश किसी कम्पनी की पूंजी का एक भाग है। कम्पनी अधिनियम की धारा 2(48) में अंश की परिभाषा इस प्रकार की गयी है, “अंश का तात्पर्य किसी कम्पनी के अंश-पूँजी के भाग से है जिसमें स्कन्ध (Stock ) को भी सम्मिलित किया जाता है जब तक कि अंश और स्कन्ध में स्पष्टतः या गर्भित रूप में अन्तर न किया जाय।”
उपर्युक्त परिभाषा कानूनी परिभाषा है, किन्तु फिर भी ‘अंश’ शब्द के अभिप्राय को पूर्णतः स्पष्ट नहीं करती। अंश वस्तुतः पूँजी का एक भाग ही नहीं है वरन् उसका धारक कम्पनी में अपना स्वत्व एवं दायित्व भी स्थापित करता है। न्यायाधीश लिण्डले के अनुसार, पूँजी का आनुपातिक भाग जिसका प्रत्येक सदस्य अधिकारी होता है, उसका अंश कहलाता है।’ कम्पनी प्रत्येक अंश के लिए पृथक संख्या निर्धारित करती है। और अंशधारी को उसके द्वारा लिये हुए अंशों के लिए अंश प्रमाण-पत्र देती है। अंशों को चल-सम्पत्ति माना जाता है और प्रत्येक अंशधारी कम्पनी के अन्तर्नियमों के अनुसार अपने अंशों को अन्य व्यक्तियों को हस्तान्तरित कर सकता है।
मूल्य आय अनुपात (Price / Earnings Ratio or P/E Ratio)
P/E Ratio शेयर बाजार का एक महत्वपूर्ण अनुपात माना जाता है। यह एक ओर किसी शेयर के बाजार-भाव और दूसरी ओर उस पर उपार्जित प्रति अंश आय में सम्बन्ध स्थापित करता है। उदाहरण के लिए यदि दस रूपये सम-मूल्य (Par Value) का कोई शेयर बाजार में 200 रुपये पर बिक रहा है और उस पर उपार्जित प्रति अंश आय (E.P.S.) 5 रुपये है तो P/E Ratio 40 हुआ। बाजार की दशाओं तथा सम्बद्ध कम्पनी की कार्यनिष्पादित के अनुसार यह अनुपात घटता- बढता रहता है और तदनुसार शेयर बाजार में सौदे सम्पन्न होते हैं।
मूल्य-आय अनुपात (P/E Ratio) शेयर बाजार की नब्ज को पकड़ने में पूँजी निवेशकों का मार्गदर्शन करता है। यदि यह अनुपात ऊँचा है तो इसका आशय यह होगा कि ऊँचे बाजार-भाव को देखते हुये शेयर का बाजार भाव नीचा है और निवेशकर्ता के लिये खरीदना अधिक हितकर हो सकता है।
यह अनुपात किस बिन्दु पर ऊँचा माना जाय तथा किस बिन्दु पर नीचा माना जाय इस बारे में मतभेद हो सकता है। ऐसे शेयर जो अगाऊ-सूची (Forward-list) में हैं तथा जो तत्काल बेचें जा सकते हैं, उनका मूल्य-आय अनुपात प्रायः ऊँचा रहता है क्योंकि ये निवेशकर्ता को तरलता (Liquidity) प्रदान करते हैं और कदाचित इसीलिए वे ऊँचे प्रीमियम पर बिकते हैं।
अधिमान्य या पूर्वाधिकार अंश (Preference Share)-
जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है उन्हें लाभ के वितरण एवं पूँजी की वापसी के सम्बन्ध में सामान्य अंशधारियों की अपेक्षा कुछ अधिमान्यताएँ प्राप्त होती हैं। इन घूर्वाधिकारों के कारण ही उन्हें पूर्वाधिकार अंश भी कहा जाता है। पूर्वाधिकार प्रायः लाभ के वितरण के विषय में प्रत्येक दशा में दिया जाता है और उन्हें लाभ का भाग ऋणदाताओं के ब्याज के भुगतान के पश्चात किन्तु सामान्य अंशधारियों को लाभांश दिये जाने के पहले एक निश्चित दर से दिया जाता है। इस दृष्टिकोण से इनकी स्थिति सामान्य अंशों से उत्तम तथा ऋणपत्रों से कुछ कम उत्तम है। दूसरा पूर्वाधिकार पूंजी की वापसी के विषय में हो सकता है। यह स्थिति अवसायन (Liquidation) के समय उत्पन्न होती है जबकि इन्हें विनियोजित पूंजी की वापसी, ऋणपत्रों के बाद एवं सामान्य अंशों के पूर्व की जाती है। उन्हें सब मामलों में मतदान का अधिकार नहीं होता, किन्तु कम्पनी के अन्तर्नियमों के अनुसार उन्हें कुछ सम्बन्धित मामलों में मतदान देने का अधिकार प्राप्त होता है।
बन्ध-पत्र का अर्थ एवं परिभाषा
Meaning & Definition of Bonds
बन्ध-पत्र, ऋण-पत्रों का ही एक रूप है प्रारम्भ में भारतवर्ष में बन्ध-पत्र को ऋण-पत्र नही माना जाता था किन्तु अब बन्धक ऋण-पत्रों (Mortgage Debentures) को बन्ध्य-पत्र माना जाने लगा है। कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गई बन्ध-पत्रों की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
ए० एस० डेविंग के अनुसार, बन्ध-पत्र एक प्रकार का विपत्र है जो उस प्रसंविदे का प्रतिनिधित्व करता है जिसके द्वारा निगम इसके धारक या स्वामी को एक निश्चित समय पर एक निश्चित धनराशि चुकाने और समय-समय पर ब्याज अदा करने के लिये वचन देता है।”
सी० डब्ल्यू० गटनबर्ग के शब्दों में, “बन्ध-पत्र निर्धारित भावी समय पर निश्चित धनराशि का भुगतान करने की मुहरबन्द एवं लिखित प्रतिज्ञा है जिसकी अवधि प्रायः 10 वर्ष या इससे अधिक होती है। और जिस पर निश्चित दर से निर्धारित तिथि पर ब्याज देय होता है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि, “बन्ध-पत्र एक प्रकार के ऋण का प्रमाण-पत्र है जो ऋण प्राप्त करने वाली संस्था द्वारा ऋण प्रदान करने वाले व्यक्ति को दिया जाता है।”
ऋण-पत्र एवं बन्ध-पत्र में अन्तर
Difference Between Debentures & Bonds
ऋण-पत्र एवं बन्ध-पत्र में कोई विशेष अन्तर नहीं है। दोनों के भावार्थ लगभग बराबर हैं। केवल भारत और अमेरिका में इनके लिये प्रचलित शब्दों में भिन्नता है। भारत में ऋण-पत्र चाहे नग्न हो अथवा बन्धक ऋण-पत्र ही कहलाते हैं किन्तु अमेरिका में प्रत्याभूतित ऋण-पत्रों को बन्ध- पत्र (बॉण्ड्स) तथा अप्रत्याभूति ऋण पत्रों को ऋण-पत्र कहा जाता है। अब भारतवर्ष में भी कुछ वर्षों से प्रत्याभूतित ऋण पत्रों के लिये बन्ध-पत्र (बॉण्ड्स) शब्द का प्रचलन हो गया है। अतः सार रूप में यह कहा जा सकता है कि बन्ध ऋण-पत्रों को बॉण्ड्स या बन्ध-पत्रों को ऋण-पत्र तथा नग्न ऋण-पत्र कहा जाता है।
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