अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता | अध्यापक शिक्षा का महत्व
अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Teacher Education)
एक पुरानी विचारधारा यह है कि अध्यापक जन्म से होते हैं बनाये नहीं जाते । यदि हम इस विचारधारा को मान भी लें तो बहुत कम ही व्यक्ति हैं जिनमें जन्म से शिक्षण योग्यता हो। फिर प्रश्न उठता है कि क्या इतने कम व्यक्तियों से हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जायेगी। हमें आज लाखों कुशल अध्यापकों की आवश्यकता है और उन्हें बिना उचित प्रशिक्षण दिये योग्य अध्यापक नहीं बनाया जा सकता।
अध्यापन एक कला है। यह कला विशेष प्रशिक्षण द्वारा ही सीखी जा सकती है
एक शिक्षक का बहुमुखी दायित्व होता है और उसको कुशलतापूर्वक निभाने के लिए प्रशिक्षण अत्यन्त आवश्यक है।
पहले केवल विषय-विशेष की निपुणता ही अध्यापन कार्य के लिए पर्याप्त थी, परन्तु आज बाल मनोविज्ञान के बढ़ते हुए ज्ञान तथा शिक्षण विज्ञान के विकास के कारण यह धारणा बदल चुकी है। अब यह धारणा बन चुकी है कि प्रशिक्षण के बिना अध्यापक अपना कार्य कुशलतापूर्वक नहीं कर सकता। आज शिक्षण को विशेष कार्य समझा जाता है और इस कार्य को कुशलतापूर्वक करने के लिए विशेष प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाना आवश्यक है-
(1) बाल मनोविज्ञान का ज्ञान-
एक शिक्षित अध्यापक अपने विषय का पूर्ण ज्ञान रखता है, परन्तु शिक्षण इस बात की मांग भी करता है कि शिक्षक को अपने विषय के साथ-साथ अपने छात्र-छात्राओं के बारे में भी पूरी जानकारी होनी चाहिए। उसे बालक की विभिन्न विकास अवस्थाओं की आवश्यकताओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे बच्चे को समायोजन में सहायता प्रदान करनी चाहिए। उसे इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि-
(i) बच्चा किस प्रकार सीखता है?
(ii) बच्चे को सीखने के लिए कैसे प्रेरित किया जाए?
(iii) मानसिक कुण्ठाओं के निर्माण से किस प्रकार बचना चाहिए?
(iv) सीखने की प्रक्रिया में सहायक साधन कौन से हैं?
(v) बुनियादी इच्छाओं के उदात्तीकरण (sublimation) के लिए किस प्रकार की व्यवस्था की जानी चाहिए?
(vi) स्वस्थ एवं सन्तुलित व्यक्तित्व के निर्माण के लिए किन प्रक्रियाओं को गठित करना चाहिए आदि।
एक अप्रशिक्षित अध्यापक इस व्यापक दायित्व को कुशलतापूर्वक नहीं निभा सकता। इन कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने की योग्यता तथा क्षमता प्राप्त करने के लिए अध्यापक-प्रशिक्षण अत्यन्त आवश्यक है।
(2) सीखने और सिखाने की प्रक्रिया का ज्ञान–
‘अध्यापक-शिक्षा’ के दौरान अध्यापकों को सीखने और सिखाने की विविध शैलियों तथा क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त होता है। इससे उसे सामूहिक रूप से अपना कार्य करने में सहायता प्राप्त होती है।
(3) अध्यापक के विभिन्न गुणों को विकसित करना–
शिक्षण की सफलता के लिए अध्यापक में कुछ शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक एवं भावात्मक योग्यताओं का होना अत्यन्त आवश्यक है।
(4) शिक्षण को रोचक बनाना-
अप्रशिक्षित अध्यापकों के हाथ में शिक्षण एक औपचारिक क्रिया बनकर रह जाती है। वे अवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करते हैं जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा एक निरर्थक एवं शुष्क प्रक्रिया बनकर रह जाती है। प्रशिक्षण को अध्यापक अपनी कार्य की योग्यता प्रदान करता है जिससे शिक्षण में रोचकता एवं सार्थकता उत्पन्न होती है। प्रशिक्षण द्वारा अध्यापक अपनी प्रतिभा को खोलकर उसका उचित प्रयोग करता है। अध्यापकों के पर्याप्त प्रशिक्षण के बिना शिक्षा के पुनर्निर्माण का कोई भी कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता।
(5) सुनियोजित शिक्षण के लिए आवश्यक-
शिक्षा को उद्देश्यपूर्ण और सार्थक बनाने के निरन्तर प्रयास हो रहे हैं। इस प्रयास में सफलता तभी प्राप्त हो सकती है जब शिक्षा सुनियोजित हो और शिक्षा को सुनियोजित करने के लिए अध्यापक शिक्षण अत्यन्त आवश्यक है।
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