प्रबंधन सूचना प्रणाली

आउटपुट डिजाइन में महत्वपूर्ण कारक | सूचना प्रस्तुत करने के प्रकार

आउटपुट डिजाइन में महत्वपूर्ण कारक | सूचना प्रस्तुत करने के प्रकार | Important Factors in Output Design in Hindi | Types of Information Submission in Hindi

आउटपुट डिजाइन में महत्वपूर्ण कारक

(Important Factors in Output Design)

  1. अन्तर्वस्तु (Contents)- आउटपुट में क्या-क्या सूचना रखी जानी है आदि का निर्माण डिजाइन द्वारा सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में सूचना उतनी मात्रा में अवश्य होनी चाहिए ताकि रिपोर्ट को देखने वाला व्यक्ति अपना उद्देश्य प्राप्त कर सके। बहुत अधिक सूचना जिनको पाने वाले व्यक्ति के लिए उपयोग नहीं है आउटपुट में नहीं रखी जानी चाहिए।
  2. आकृति (Form) – डिजाइनर को आउटपुट को किस फार्म में प्रस्तुत करना है उस पर भी ध्यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए सूचना को टैक्सटुअल, ग्राफिक्स, चार्ट आदि रूप में दर्शाया जा सकता है। अतः प्रयोक्ता की जरूरतों व ज्ञान को ध्यान में रखकर ही इसके बारे निर्णय लेना चाहिए।
  3. आउटपुट मात्रा (Output Volume)— किसी एक समय पर कितने आउटपुट चाहिए, को ध्यान में रखा जाना चाहिए क्योंकि यदि डाटा की मात्रा अधिक है तो हमें उच्च गति के प्रिंटर, COM (Computer Output Microfiche) आदि को अपनाना चाहिए।
  4. समयोचितता (Timelines) — आउटपुट डिजाइन में समय को ध्यान में रखा जाना चाहिए अर्थात् यह देखना चाहिए कि आउटपुट कब चाहिए होता है, उदाहरण के लिए रोजाना हर सप्ताह, हर महीना आदि। कुछ आउटपुट तुरंत माँग करने पर भी चाहिए होते हैं। अतः उनके अनुसार ही उपकरणों का इंतजाम जैसे 4GL उपकरण आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  5. माध्यम (Media)— आउटपुट के लिए कौन-सा माध्यम प्रयोग में लाना है को भी डिजाईन के समय ध्यान में रखना चाहिए जैसे मुद्रित, वीडियो टेप, स्क्रीन, मैग्नेटिक टेप आदि।
  6. प्रारूप (Format)- आउटपुट को कैसे दर्शाना है का भी निर्धारण सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए इसके अंतर्गत हैडिंग देना, टेबल बनाना, फांट का आकार आदि बातों पर ध्यान देना चाहिए।

सूचना प्रस्तुत करने के प्रकार (Types of Presentation)

  1. सारणीबद्ध फॉरमेट (Tabular Format) – सामान्यतः वित्त, लेखांकन व स्टॉक नियंत्रण आदि की सूचनाएँ सारणीबद्ध तरीके से दर्शायी जाती हैं। ये प्रायः तब काम में लाई जाती है जब बहुत कम वर्णनात्मक (Explanations) सूचना की जरूरत होती है अधिकतर सूचनाएँ आंकिक रूप में होती हैं।
  2. ग्राफिक फॉरमेट (Graphic Format)- आजकल यह विधि बहुत अधिक प्रयोग में लाई जाने लगी है क्योंकि इसमें प्रयोक्ता आसानी से बिना विशेष ज्ञान व बिना अधिक समय लगाए सूचना को समझ लेते हैं। इसके अंतर्गत ग्राफ, चार्ट, पाई चार्ट, बार डायग्राम आदि आते हैं।
  3. टैक्सटुअल फॉरमेट (Textual Format) — इसके अंतर्गत सूचना को टैक्स्ट फार्म में लिखा जाता है। यह प्रायः तब काम में लाई जाती है जब किसी विषय पर वर्णनात्मक सूचना देनी हो।
  4. मुद्रित आउटपुट (Printed Output)- यह पेपर पर लिए जाने वाले आउटपुट के डिजाइन से संबंधित है। पेपर पर लिये जाने वाले प्रिन्ट का प्रारूप तैयार करने के लिए आजकल कई उपकरण जैसे ले आउट स्क्रीन, CASE उपकरण आदि उपलब्ध हैं। इन्हें तैयार करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि रिपोर्ट हमेशा बायें से दायें की तरफ पढ़ी जाने योग्य होनी चाहिए। महत्वपूर्ण मदों को अलग से दर्शाया जाना चाहिए। उचित हैडिंग, उप हैडिंग, टाइटल, शीर्षक आदि दिए जाने चाहिए। उचित मार्जिन छोड़ा जाना चाहिए।
  5. विजुअल डिस्प्ले (Visual Display Output) – यह सूचना को स्क्रीन पर देखने के लिए किये जाने वाले डिजाइन से संबंधित है। इसमें प्रिन्टेड आउटपुट की बातों के अलावा कॉलम व पंक्ति के आकार, उसमें आने वाले शब्दों आदि को ध्यान में रखा जाना होता है तथा उपलब्ध रंगों आदि को भी ध्यान में रखना होता है।
  6. विन्डो डिजाइनिंग (Window Designing) – डिस्प्ले स्क्रीन के हिस्सों को विन्डो कहा जाता है जिसके द्वारा विभित्र आउटपुट को एक साथ स्क्रीन पर दर्शाया जा सकता है। विन्डो डिजाइनिंग में विभिन्न का आकार, उन्हें पर दर्शाना, उन्हें छुपाना, बंद करना तथा एक-दूसरे के ऊपर परत रूप में रखने से संबंधित कार्य किये जाते हैं। विन्डोज की मदद से एक विन्डोज या फाइल की सूचना दूसरी विन्डोज पर ले जाना संभव होना चाहिए।
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Pankaja Singh

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