आर्थिक तालिका | धन के परिभ्रमण का सिद्धान्त | केने की आर्थिक तालिका | आर्थिक तालिका का योगदान | आर्थिक तालिका की दुर्बलतायें | आर्थिक तालिका के प्रभाव
आर्थिक तालिका या धन के परिभ्रमण का सिद्धान्त
(Tableau Economique or Theory of Circulation of Wealth)
यह सर्वप्रथम निर्बाधावादी थे, जिन्होंने वितरण की समस्या का विश्लेषण किया और यह जानना चाहा कि धन समाज के एक वर्ग से दूसरे वर्ग को कैसे प्रवाहित हुआ करता है तथा उसके प्रवाह का सदैव एक ही मार्ग क्यों होता है अर्थात् धन के प्रवाह का मार्ग क्यों नहीं बदलता। इन प्रश्नों को स्पष्ट करने हेतु डॉ० केने ने ‘आर्थिक तालिका’ का विकास किया।
आर्थिक तालिका से आशय
डॉ. केने की आर्थिक तालिका शरीर में रक्त परिभ्रमण के विचार (concept of circulation of blood) पर आधारित है। इस तालिका में केने ने समाज को तीन वर्गों में बाँटा है–(अ) उत्पादक वर्ग, जिसमें उसने किसानों, मछुओं और खान खोदने वालों को शामिल किया। (ब) अंशत: उत्पादक वर्ग, जिसमें उसने भू-स्वामियों एवं अन्य प्रभुत्व प्राप्त व्यक्तियों को रखा। (स) अनुत्पादक वर्ग, जिसके अन्तर्गत व्यापारी, उद्योगपति, शिल्पकार, पेशेवर व्यक्ति एवं मजदूरी कमाने वाले शामिल किये गये।
आर्थिक सारणी के द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि शरीर में जिस तरह रक्त (blood) का प्रवाह होता रहता है उसी प्रकार मानव-समाज में धन का प्रवाह प्राकृतिक नियमों के अनुसार होता है। निर्बाधावादियों ने बताया कि धन (विशुद्ध उत्पत्ति) के उद्गम का स्थान प्रथम (उत्पादक) वर्ग ही है। इस कथन के पीछे उनकी यह धारणा थी कि भूमि ही समस्त धन का स्रोत है एवं किसान आदि ही वास्तविक उत्पादक होते हैं। चूँकि धन (या विशुद्ध उत्पत्ति) का स्रोत केवल भूमि है और कृषक (मछुवे व खनिक) लोग ही वास्तविक उत्पादक हैं इसलिये उसका परिभ्रमण किसान से शुरू होकर अन्य वर्गों में होता है। केने ने भूमि एवं अन्य सम्पत्ति-स्वामियों को आंशिक रूप से उत्पादक माना है। किन्तु उत्पत्ति के क्रम में भू-स्वामियों को कृषक से ऊँचा स्थान दिया है क्योंकि यद्यपि कृषक वस्तु को उत्पन्न करता है तथापि भूस्वामी भूमि को उत्पन्न करता है। उत्पत्ति के क्रम में कारीगरों, व्यापारियों, निर्माणकर्ताओं का कोई भाग नहीं होता, अर्थात् उनको अनुत्पादक माना गया है क्योंकि वे कोई अतिरिक्त धन उत्पन्न नहीं करते।
धन का परिभ्रमण कैसे
मान लीजिये कि कुल उपज 50 लाख टन है। इसमें से 20 लाख टन खेती के व्ययों (बीज, खाद आदि) और अनुरक्षण (maintenance) के लिये रख लिया जायेगा और इसका परिभ्रमण नहीं होगा। शेष 30 लाख टन अन्य वर्गों को प्रवाहित होगा। इस प्रवाह की दो अवस्थायें हैं-किसान के पास से जाना और किसान के पास लौटना
प्रथम अवस्था में किसानों के पास 30 लाख टन उपज मौजूद है। इसमें से उन्हें सरकार को करों का और भू-स्वामियों को लगान का भुगतान करना होगा। मान लीजिये कि उन्होंने करों के रूप में सरकार और भू-स्वामियों को लगान के रूप में 20 लाख टन दिये। अब बचे 10 लाख टन। चूंकि किसानों को अपने जीवन निर्वाह के लिये अनाज के अतिरिक्त जूते, कपड़े व अन्य वस्तुओं की भी आवश्यकता होगी, इसलिये इनकी प्राप्ति के बदले वे कारीगरों आदि (अनुत्पादक वर्ग) को बचे हुए 10 लाख टन भी दे देते हैं। इस प्रकार, उनके पास अब कुछ नहीं बचेगा। किन्तु निर्बाधावादियों के मतानुसार, जैसा कि हम आगे देखेंगे, दूसरे वर्गों को उन्होंने जो कुछ दिया है वह घूमता-फिरता पुनः उनके पास लौट आवेगा।
आंशिक उत्पादक वर्ग अर्थात् भू-स्वामियों एवं अन्य सम्पत्ति स्वामियों को 20 लाख टन करों व लगान के रूप में प्राप्त हुए हैं। इनमें से 10 लाख टन वे कारीगर आदि अनुत्पादक वर्ग को जूते, कपड़े आदि आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति के लिये दे देंगे।
इस प्रकार धन के परिभ्रमण की प्रथम अवस्था के अन्त में धन के वितरण की स्थिति निम्न प्रकार है-उत्पादक वर्ग (किसान)0; आंशिक उत्पादक वर्ग (भूस्वामी) 10 लाख टन एवं अनुत्पादक वर्ग (कारीगर) 20 लाख टन।
दूसरी अवस्था में भूस्वामी 10 लाख टन किसानों को खाद्यान्नों की सप्लाई के लिये देते हैं कारीगर भी खाद्यान्नों की पूर्ति के लिये 10 लाख टन किसानों को देते हैं। कच्चे मालों की प्राप्ति के बदले भी उन्हें 10 लाख टन किसानों को देने पड़ते हैं। इस प्रकार, दूसरी अवस्था के अन्त में समस्त 30 लाख टन (10 लाख टन भू-स्वामियों से और 20 लाख टन किसानों से) किसानों के पास लौट आते हैं। इस प्रकार, डॉ. केने के अनुसार, धन का परिभ्रमण अपने उद्गम स्थान से आरम्भ होकर पुनः वहीं लौट जाता है।
आर्थिक तालिका का योगदान
(Contribution of Tableau Economique)
आर्थिक तालिका का प्रकाशन होने पर तत्कालीन अर्थशास्त्रियों में बड़ी हलचल मच गई। अनेक विद्वानों ने इसकी प्रशंसा की और इसे समर्थन दिया। माराव्यू (Mirabeau) ने आर्थिक तालिका की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि “जब से दुनिया बनी है तब से तीन बड़े आविष्कार हुए हैं-इनमें प्रथम है-लेखन कला का आविष्कार, जो कि अकेला ही मनुष्य को अपने विचार इत्यादि बिना किसी परिवर्तन या त्रुटि के दूसरों तक पहुँचाने की क्षमता प्रदान करता है। दूसरा महान अविष्कार मुद्रा का है, जिसने सभ्य समाजों के मध्य सभी सम्बन्धों को सुग्रंथित कर दिया है और तीसरा है-आर्थिक तालिका का आविष्कार, जो प्रथम दो आविष्कारों का परिणाम है और उनके उद्देश्यों की पूर्ति करके उन्हें पूर्णता प्रदान करता है। यह हमारे युग की महान् खोज है, किन्तु इसका लाभ हमारी आने वाली पीढ़ियाँ उठायेंगी।”
आर्थिक तालिका की दुर्बलतायें
निर्बाधावादियों ने धन के वितरण और परिभ्रमण को समझाने के लिए आर्थिक तालिका के रूप में एक महत्वपूर्ण प्रयत्न किया है किन्तु सावधानी से मनन और विश्लेषण करने पर इसमें कुछ दोष पता चलते हैं और इन्हीं दोषों के कारण इसकी आलोचना भी की जाती है। प्रमुख दोष निम्न प्रकार हैं-
(1) शुद्ध उत्पत्ति का अधिकांश भाग भू-स्वामी को जाता है, जबकि यह कृषकों को जाना चाहिए- अपने मत को उचित ठहराने हेतु निर्बाधावादियों ने यह तर्क दिया कि भू-स्वामियों ने भूमि को साफ किया, जल के निकास की व्यवस्था की और अन्य प्रकार से उसे कृषि योग्य बनाया। अतः उन्हें भी भूमि के उत्पादन में से भाग मिलना चाहिए। यदि इन अग्रगामियों को, जिन्होंने इतना परिश्रम किया है, अपने श्रम और जोखिम का पुरस्कार न मिले, तो कृषि व्यवसाय का अन्त हो जायेगा। वास्तविक स्वामी और कृषक से श्रेष्ठ होने के नाते उनको अधिकांश भाग मिलना न्यायपूर्ण है, क्योंकि जहाँ कृषक उत्पादन में सहयोग देते हैं वहाँ भू-स्वामी भूमि को कृषि योग्य बनाने में सहयोग देते हैं।
(2) सम्पत्ति स्वामी वर्ग को अनुत्पादक न बताकर उद्योगपति और शिल्पकार को अनुत्पादक ठहराना सर्वथा अन्यायपूर्ण है- निर्बाधावादी सभी तरह के वास्तविक श्रम के महत्व को समझने में असफल रहे। तभी तो उन्होंने यह कहा कि धन का उत्पादन केवल प्रकृति करती है, श्रमिक नहीं। स्पष्ट ही यह एक भ्रमपूर्ण विचार है। उत्पादन तो श्रमिक ही करते हैं, प्रकृति तो उनके कार्य में सहयोग दे सकती है। पुनः उनकी यह धारणा कि ‘श्रम’ धन का निर्माणक नहीं है कृषि श्रमिक और औद्योगिक श्रमिक (शिल्पकार) दोनों पर समान रूप से लागू होनी चाहिए, परन्तु यह विचित्र बात है कि उन्होंने केवल कृषि-श्रमिकों (कृषकों) को उत्पादक ठहराया, क्योंकि वह प्रकृति के सहयोग के साथ कार्य करता है।
(3) व्यक्तिगत सम्पत्ति के संरक्षण के पक्ष में अनोखे और विरोधाभासी तर्क दिये गये हैं- आर्थिक तालिका में भूमिपतियों को एक विशेष स्थिति में रखा गया है और बिना परिश्रम किये उसको आय का अधिकारी दिखाया है। इस सम्बन्ध में उन्होंने एक अनोखा तर्क दिया है। उनका अनोखा तर्क यह है कि यदि इन्हें उचित भाग प्रदान न किया गया, तो यह वर्ग किसानों को खेती नहीं करने देगा। एक ओर तो वह कहते हैं कि भूमि इसलिए अपनाई गई क्योंकि इस पर खेती की गई किन्तु दूसरी ओर उनका कहना है कि पहले भूमि अपनाई गई और फिर उस पर खेती की गई। इस प्रकार भू-सम्पत्ति के समर्थन में उनके तर्क विरोधाभासी हैं।
इस प्रकार, आर्थिक तालिका का एक आधुनिक अर्थशास्त्री के लिए वितरण के स्पष्टीकरण की दृष्टि से निरर्थक है, क्योंकि (i) यह अमूर्त, काल्पनिक एवं मनमौजी है। (ii) यह विभिन्न वर्गों के भीतर ही धन के प्रवाह पर अथवा किसी वर्ग के उत्पादक या अनुत्पादक स्वभाव पर कोई प्रकाश नहीं डालती । (iii) यह मूल्यों को स्थिर मानकर चलती है। (iv) इसमें यह भुला दिया गया कि गणना के अन्त में उनके पास वही रहा जो उन्होंने आरम्भ में प्राप्त किया था। (v) विभिन्न वर्गों को दिये जाने वाले अनुपातों का कोई वैध आधार नहीं है। (vi) सम्पूर्ण प्रक्रिया एक ओर किसी व्यक्ति की जल में द्रव्य रखने और दूसरी ओर तुरन्त ही उसे निकाल लेने की क्रिया के सदृश्य हास्यास्पद है।(vii) एक आधुनिक विद्वान के लिए यह सब एक ‘साहित्यिक उत्सुकता’ मात्र है, अधिक कुछ नहीं।
जीड एवं रिस्ट (Gide and Rist) के मतानुसार, आर्थिक तालिका में इस बात पर अधिक बल दिया गया है कि समाज में धन का परिभ्रमण कुछ निश्चित प्राकृतिक नियमों के अनुसार होता है और इन विचारकों ने समाज के विभिन्न वर्गों की आय के निर्धारण का जो मार्ग बताया है वह भी आश्चर्यजनक है। “निर्बाधावादी वितरण योजना में सबसे रोचक बात वह विशेष उदाहरण नहीं है जो कि उन्होंने समझाने के लिए दिया था, वरन् इस तथ्य पर बल देना है कि धन का परिभ्रमण कुछ निश्चित नियमों के अनुसार होता है और कि प्रत्येक वर्ग की आय ऐसे परिभ्रमण द्वारा ही निर्धारित होती है। समाज के इस त्रिवर्गीय विभाजन में सम्पत्ति स्वामियों को जो अद्वितीय स्थान प्राप्त है वह निर्बाधावादी प्रणाली की सबसे विलक्षण विशेषताओं में से एक है।”
आर्थिक तालिका के प्रभाव
उक्त आलोचनाओं के बावजूद आर्थिक तालिका सम्बन्धी विचार ने आर्थिक सिद्धान्तों को काफी प्रभावित किया, यथा-
(1) आर्थिक तालिका अर्थशास्त्र की सबसे आधुनिक शाखा इकोनोमेट्रिक्स (Econometrics) की अगुआ हुई, जो आर्थिक सिद्धान्त की सांख्यकीय एवं संख्यात्मक जाँच से सम्बन्धित है।
(2) आर्थिक तालिका ने राष्ट्रीय आय के निर्माण और वितरण की समस्याओं को सुलझाने के भावी प्रयासों के लिए द्वार खोला।
(3) इसमें आर्थिक प्रक्रिया के सभी घटकों के पारस्परिक निर्भरता के सामान्य सम्बन्ध को स्पष्ट रूप से मान्यता दी गई है। इसे आधुनिक भाषा में हम ‘सामान्य साम्य की धारणा’ (Concept of General Equilibrium) कहते हैं।
(4) आर्थिक सारणी में उन्होंने आर्थिक प्रक्रिया को एक चक्करदार-प्रवाह (circuit flow) के अकेले चित्र द्वारा, जो कि प्रत्येक अवधि में स्वयं को दोहराता है, स्पष्ट किया है। निर्बाधावादी विचार के इस पहलू को सर्वप्रथम मार्क्स और बाद में शुम्पीटर ने समझा।
(5) इसमें लगान और करों का समर्थन किया गया है।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- सुसम्बद्ध आर्थिक प्रणाली के विकास में प्रकृतिवादियों का योगदान | दुर्बलताओं के बावजूद निर्बाधावादियों के योगदान की महत्ता कम नहीं | निर्बाधावादियों को ‘अर्थशास्त्र का संस्थापक’ कहने का औचित्य
- प्रकृतिवादी सिद्धान्तों का केन्द्र बिन्दु भूमि | विशुद्ध उत्पत्ति का विचार | विशुद्ध उत्पत्ति से आशय | विशुद्ध उत्पत्ति का स्रोत केवल भूमि | उद्योग एवं वाणिज्य अनुत्पादक हैं | विशुद्ध उत्पत्ति का आलोचनात्मक मूल्यांकन | विशुद्ध उत्पत्ति सम्बन्धी धारणा का महत्व
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