अर्थशास्त्र

आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण के परिणाम | आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को रोकने के लिए सरकारी प्रयास | एकाधिकार को रोकने के लिए सरकारी प्रयास | नयी औद्योगिक नीति 1991 एवं एकाधिकार तथा संकेन्द्रण

आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण के परिणाम | आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को रोकने के लिए सरकारी प्रयास | एकाधिकार को रोकने के लिए सरकारी प्रयास | नयी औद्योगिक नीति 1991 एवं एकाधिकार तथा संकेन्द्रण

आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण के परिणाम

(Consequences of Economic Concentration)

सामान्यतया आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को अच्छा नहीं माना जाता है। इससे जनता का शोषण होता है और अर्थव्यवस्था में सन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। आर्थिक सत्ता को धारण करने वाले व्यक्ति राजनीतिक दलों को चन्दा देकर शासन पर अपना प्रभाव जमाने में सफल हो जाते हैं जिससे जनमत बिगड़ता है तथा वर्ग-संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है।

लेकिन शुम्पीटर के विचार में, “जबकि आर्थिक शक्ति का केन्द्रीयकरण एकाधिकार का पर्यायवाची माना जाता है तो इसे साहसी क्षमता का उचित उपयोग होता है और बृहत् उत्पादन के लाभ प्राप्त होता हैं। साथ ही एकाधिकार में मूल्य गिरावट सीमान्त लागत से अधिक नहीं होती है जिससे उद्योगपतियों को नवीन विकास एवं अनुसन्धान की प्रेरणा बनी रहती है।” भारत के लिए यह बातें सत्य प्रतीत होती हैं जिसकी पुष्टि एकाधिकारी जांछ आयोग (1965) ने इन शब्दों में की है, “आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण ने औद्योगीकरण में सहायता दी है तथा देश को लाभ पहुँचाया है। भारत में जो कुछ भी विकास हुआ है वह उन व्यक्तियों के साहस एवं चातुर्य का फल है जिन्होंने अपनी औद्योगिक संस्थाओं को बृहत् रूप प्रदान किया है। लेकिन एकाधिकारी जाँच आयोग के ही एक सदस्य श्री आर०सी० दत्त उससे सहमत नहीं थे और उनका कहना था कि इससे (1) वस्तुओं में सुधार की अवहेलना हुई है। (2) मूल्यों में अनुचित वृद्धि हुई है; (3) नवीन साहसी हतोत्साहित हुए हैं; (4) बचत एवं पूँजी-निर्माण में बाधा आयी है; (5) गैर- आवश्यक उद्योगों में पूँजी विनियोग को प्रोत्साहन मिला है; (6) एकाधिकारी शक्तियों का वित्तीय संस्थानों एवं प्रशासन पर अनुचित प्रभाव रहा है एवं (7) राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है।

इस प्रकार हम पाते हैं कि आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण के सम्बन्ध में दोनों प्रकार की विचारधाराएँ पायी जाती हैं। कुछ विद्वान् उसको उचित मानते हैं जबकि कुछ विरोध करते हैं और इसे अनुचित मानते हैं। लेकिन यदि निष्पक्ष रूप से मान लिया जाय तो यह निष्कर्ष निकलता है कि एक देश के आर्थिक विकास की प्रारम्भिक अवस्था में यह लाभकारी है, लेकिन दीर्घकाल में हानिकारक है, क्योंकि इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

(1) सामान्य व्यक्तियों की उपेक्षा- यद्यपि आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण से कुछ लाभ अवश्य मिलते हैं। लेकिन इसके अनियन्त्रित होने से आर्थिक उद्देश्यों की प्रगति में कठिनाई पैदा हो जाती है तथा सामान्य व्यक्तियों की उपेक्षा होती है।

(2) पूँजी निर्माण में बाधा- यद्यपि बड़े उद्योग अधिक पूँजी का निर्माण कर सकते हैं, क्योंकि उनकी बचत करने की क्षमता अधिक होती है, लेकिन वास्तविक यह है कि इससे पूँजी- निर्माण में बाधा उत्पन्न होती ह।ऐ इसके लिए यह तर्क दिये जाते हैं कि (i) बड़े उद्योग अपनी अधिकांश आय को विलासिता की वस्तुओं पर व्यय करते हैं जिसमें पूँजी-निर्माण उचित दर से नहीं होता है। (ii) नवीन साहस ऐसे क्षेत्रों में प्रवेश नहीं करते हैं जिनमें बड़े उद्योगपति होते हैं। इस प्रकार नवीन पूँजी-निर्माण में रुकावट उत्पन्न हो जाती है। (iii) बड़े उद्योगपति अपनी आय को अनुत्पादक कार्यों में व्यय करते हैं अतः इससे पूँजी-निर्माण में बाधा उत्पन्न होती है। (iv) बड़े उद्योग सट्टेबाजी को प्रोत्साहित करते हैं छोटी इकाइयों को क्रय कर लेते हैं। इनसे भी पूँजी- निर्माण में वृद्धि होती है।

(3) विनियोगों का त्रुटिपूर्ण प्रभाव- आर्थिक केन्द्रीयकरण के होने पर बड़े उद्योगों द्वारा विनियोगों को उचित दिशा में प्रभावित नहीं किया जाता है। सामान्यतया वे उपभोग को आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में विनियोग न करके आधारभूत एवं पूँजीगत वस्तुओं के उत्पादन में विनियोग करने लगते हैं जिससे नियोजित विकास की प्राथमिकताएँ पूरी नहीं हो पाती हैं।

आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण एवं एकाधिकार को रोकने के लिए सरकारी प्रयास

(Government Efforts for Checking Concentration of Economic Power and Monopolies)

आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण एवं एकाधिकार को रोकने के लिए सरकार ने निम्न प्रयास किये हैं-

(1) लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करना सरकार की नीति लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करने की है। औद्योगिक नीति 1977 के 1980 में भी इनके विकास को प्रोत्साहित करने की बात जोरदार ढंग से कही गयी है। लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए अब तक केवल 180 वस्तुओं का उत्पादन ही सुरक्षित था जिसे अब बढ़ाकर 837 कर दिया गया है।

(2) सार्वजनिक क्षेत्र का विकास भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सार्वजनिक क्षेत्र का काफी विकास इसी उद्देश्य से किया गया है कि वह आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण व एकाधिकार की प्रवृत्ति पर रोक लगा सके। प्रारम्भ में सरकार पूँजीगत व आधारभूत उद्योगों की ओर आकृष्ट हुई थी, लेकिन अब उपभोक्ता वस्तुओं की ओर इसका ध्यान आकर्षित हुआ है।

(3) एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम 1969 में एकाधिकार एवं आर्थिक शक्ति के केनद्रीकरण को रोकने के लिए यह अधिनियम 1 जनवरी, 1970 से लागू कर दिया गया है। इस अधिनियम के बारे में विस्तृत ब्यौरा इसी अध्याय में आगे दिया गया है।

(4) कम्पनीज अधिनियम कम्पनीज अधिनियम, 1956 में आवश्यक संशोधन करके प्रबन्ध अभिकर्ता प्रणाली को 3 अप्रैल, 1970 से समाप्त कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त कम्पनियों के संचालकों पर तथा स्वयं कम्पनियों पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगाये गये हैं जिससे कि आर्थिक शक्ति का केन्द्रीयकरण न हो सके।

(5) शहरी भूमि (अधिकतम सीश एवं नियमन) अधिनियम आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण पर रोक लगाने के लिए इस अधिनियम को लागू कर दिया गया है, जिसके अन्तर्गत 74 शहरों व कस्बों में एक व्यक्ति द्वारा अपने नाम से भूमि रखने की सीमा निर्धारित कर दी गयी है। इसके लिए शहरों व कस्बों को 4 भागों में बाँटा गया है-ABC & D इन वर्गो में भूमि रखने की अधिकतम सीमा क्रमशः 500, 1000; 1,500 व 2000 वर्गमीटर है।

(6) बहुसंचालक पद्धति नियन्त्रण कम्पनीज अधिनियम 1956 में यह व्यवस्था कर दी गयी है कि एक व्यक्ति 20 सार्वजनिक कम्पनियों से अधिक का संचालक नहीं हो सकता है।

(7) सहकारी क्षेत्र का विस्तार आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को नियन्त्रित करने के लिए सहकारी क्षेत्र का वि तार किया गया है।

नयी औद्योगिक नीति 1991 एवं एकाधिकार तथा संकेन्द्रण

(New Industrial Policy 1991 and Monopoly and Concentration)

जहाँ अब तक आर्थिक शक्ति के संकेन्द्रण एवं एकाधिकार प्रवृत्तियों को रोकने के प्रयास किये जाते हैं, वहीं पर अब यह एक विवादास्पद विषय बन गया है। नयी औद्योगिक नीति 1991 के वक्तव्य को देखथे हुए यह कहा जा सकता है कि एकाधिकार एवं आर्थिक संकेन्द्रण की मात्रा और अधिक बढ़ेगी, क्योंकि MRTP कम्पनियों की परिसम्पत्ति सीमा में छूट FERA में उदारीकरण, विदेशी पूँजी का खुला आमंत्रण कर दिया गया है। इन सबका परिणाम यह होगा कि अब देश के औद्योगिक घराने तो स्वतंत्र रूप से अपना एकाधिकार तो कायम ही करेंगे और इनके साथ ही साथ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपना विस्तार एवं नयी इकाइयाँ स्थापित करेंगी। सार्वजनिक क्षेत्र में जहाँ पहले निजी क्षेत्र को प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी वहाँ अब कुछ को छोड़कर शेष सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र को इजाजत दे दी गयी है। इसके अतिरिक्त अब 18 उद्योगों को छोड़कर अब शेष सभी पर लाइसेंसिंग प्रतिबंध हटा दिया गया है।

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Pankaja Singh

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