आगत-निर्गत प्रणाली | आगत-निर्गत प्रदा का अर्थ | आदा-प्रदा विश्लेषण की मुख्य विशेषताएँ | लियोनटीफ का स्थैतिक मॉडल | लियोनटीफ का गत्यात्मक मॉडल
आगत-निर्गत प्रणाली
तकनीक का प्रतिपादन हार्वड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वैसिली डब्ल्यू० लियोनटीफ (Wassily W. Leontief) द्वारा 1951 में किया गया था और उनकी इस महान् आर्थिक उपलब्धि के लिए 1973 में उन्हें नोबल पुरस्कार द्वारा विभूषित भी किया गया। आ-दा- प्रदा विश्लेषण का प्रयोग अर्थव्यवस्था की परस्पर निर्भरताओं तथा जटिलताओं को समझाने के लिए और अन्त:उद्योग सम्बन्धों (inter industry relations) का सामयिक विश्लेषण करने की दृष्टि से किया जाता है। इस कारण इसे “अन्तःउद्योग विश्लेषण” भी कहते हैं। इसका उद्देश्य उत्पादन की विभिन्न ब्राँचों के मध्य संख्यात्मक सम्बन्धों का बनाए रखना है जिससे कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उत्पादन का प्रवाह सुचारु रूप से होता रहे। यही नहीं इस आ-दा- प्रदा विश्लेषण से पूर्ति एवं माँग में सन्तुलन बनाए रखने की स्थितियों का ज्ञान भी आसानी से हो जाता है।
यह ठीक है कि आ-दा-प्रदा विश्लेषण लियोनटीफ के मस्तिष्क की देन है लेकिन सही अर्थों में यह क्यूने (Quesnay) की “Tableau Economic” और मार्क्स की “पूँजी की पुनःउत्पत्ति की योजना” (scheme of reproduction of capital) पर ही आधारित है जिन्होंने अपने सैद्धान्तिक विश्लेषण में बृहत् आर्थिक तलपट को शामिल करने का प्रयास किया था। इस प्रकार “Basically an input output table is nothing but a particular kind of a macro-economic balance sheet” क्यूने तथा मार्क्स ने अपनी इस धारणा का प्रयोग किसी अर्थव्यवस्था के संदर्भ अथवा समय विशेष के संदर्भ में न करके पूर्णतया निरपेक्ष रूप में किया था। हाँ! इस धारणा का सापेक्षिक दृष्टि से उपयोग करने का महत्त्वाकाँक्षी प्रयास सर्वप्रथम रूस के एक विद्वान वी०जी० ग्रोमैन (V.G. Groman) द्वारा किया गया था। लेकिन इस तकनीक को तार्किक विश्लेषण के साथ प्रस्तुत करने का श्रेय फिर भी प्रो० लियोनटीफ को ही दिया जाता है।
आगत-निर्गत प्रदा का अर्थ
(Meaning)
इस तकनीक का अध्ययन करने से पूर्व इसके अर्थ को स्पष्ट कर लेना बहुत जरूरी है। आ-दा (Input) का आशय उस वस्तु या सामग्री से लगाया जाता है जिसके उत्पादन के लिए उद्यमी या उत्पादक द्वारा माँग की जाती है जबकि प्रदा, उत्पादन का परिणाम है। प्रो० जे०आर०हिक्स के मातानुसार, “आ-दा वह वस्तु है जिसे उद्यम में प्रयोग हेतु क्रय किया जाता है और प्रदा वह है जिसे उद्यम तैयार करके स्वयं बेचता है। इस प्रकार ‘आ-दा’ फर्म अथवा उद्यम को प्राप्त होती है जबकि प्रदा का उत्पादन किया जाता है। दूसरे शब्दों में ‘आ-दा’ किसी फर्म का व्यय है तो ‘प्रदा’ उसकी आमदनी मानी जाएगी। इस दृष्टि से कुल आ-दाओं का मौद्रिक मूल्य फर्म की कुल लागत (total cost) होती है और कुल प्रदाओं का मौद्रिक मूल्य उसका कुल आगम (total revenue) होता है।
चूंकि आ-दा-प्रदा विश्लेषण की मान्यता के आधार पर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में इन उद्योग सम्बन्ध व अन्त:निर्भरताएँ पायी जाती हैं इसलिए एक उद्योग की आ-दा (Input) दूसरे की प्रदा (Output) होती है और विलोमशः भी, अर्थात् दूसरे का ‘Output’ पहले के लिए ‘Input’ होता है। उदाहरणार्थ, इस्पात उद्योग के लिए कोयला आ-दा है और कोयला उद्योग के लिए इस्पात आ- दा है जबकि ये दोनों वस्तुएँ अपने-अपने उद्योग की प्रदा भी हैं। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि वार्षिक क्रियाओं का अधिकाँश भाग अन्त:वर्ती वस्तुओं (intermediate goods) अर्थात् आ-दा-ओं (Inputs) को उत्पादित करने में संलग्न रहता है जिनका प्रदाओं के रूप में फिर प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार से यह विभिन्न उद्योगों के बीच चक्रीय प्रवाह है जो परस्पर एक-दूसरे से गुथा हुआ है। सार रूप में यह कहा जा सकता है कि आ-दा विश्लेषण के अन्तर्गत एक पूर्ण सन्तुलन की स्थिति में, समस्त अर्थव्यवस्था की कुल प्रदा के मौद्रिक मूल्य का, अन्तः उद्योग की आदाओं + प्रदाओं के मौद्रिक मूल्य के बराबर होना जरूरी है।
आदा-प्रदा विश्लेषण की मुख्य विशेषताएँ
(Main Features)
आ-दा-प्रदा विश्लेषण वालरस के सामान्य सन्तुलन (general equilibrium) पर ही उत्कृष्टम रूप है जिनके मुख्य रूप से चार प्रकार हैं-(i) यह विश्लेषण उस अर्थव्यवस्था पर लागू होता है जो सन्तुलन में हो, आंशिक सन्तुलन वाली अर्थव्यवस्था इसके क्षेत्र से बाहर है। (ii) यह तकनीक माँग विश्लेषण से कोई सरोकार नहीं रखती क्योंकि इसका काम केवल उत्पादन की तकनीकी समस्याओं पर ही विचार करना है। (iii) यह विश्लेषण अनुभव- जन्य छानबीन (empirical study) पर आधारित है। (iv) आ-दा-प्रदा विश्लेषण के दो भाग हैं-प्रथम, आ-दा-प्रदा तालिका का निर्माण करना तथा आ-दा-प्रदा मॉडल का विधिवत् प्रयोग करना।
मान्यताएं
(Assumptions)
लियोनटीफ ने अपने मॉडल का विश्लेषण करने से पूर्व निम्न मान्यताएँ स्वीकार की हैं-
(1) अर्थव्यवस्था पूर्ण सन्तुलन में है।
(2) कुल अर्थव्यवस्था दो क्षेत्रों (i) अन्त:उद्योग क्षेत्र तथा (ii) अन्तिम माँग क्षेत्र (final demand sector) में विभक्त होती है। प्रत्येक क्षेत्र आगे और भी उपविभाजित (sub- divided) किया जा सकता है।
(3) प्रत्येक उद्योग में केवल एक ही वस्तु का उत्पादन किया जाता है और किसी भी उद्योग में दो वस्तुएँ संयुक्त रूप से उत्पादित (jointly produced) नहीं हो रही हैं।
(4) किसी भी अन्तःउद्योग की कुल प्रदा (output) का; किसी दूसरे उद्योग अथवा उसी उद्योग अथवा अन्तिम माँग क्षेत्र के द्वारा आ-दा (input) के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।
(5) उत्पादन, पैमाने के स्थिर प्रतिफल (constant returns to scale) नियम के अनुसार होता है।
(6) आर्थिक जगत में प्रौद्योगिकी उन्नति स्थिर रहती है जिसके कारण विभिन्न उद्योगों के उत्पादन के आ-दा-प्रदा गुणांक (Input-output co-efficient) स्थिर बने रहते हैं।
लियोनटीफ का स्थैतिक मॉडल
(Leontief’s Static Model)
उपरोक्त मान्यताओं के आधार पर लियोनटीफ ने अपना विश्लेषण दिया है। लियोनटीफ ने एक ऐसी अर्थव्यवस्था की कल्पना की है जिसमें कोयला, इस्पात इत्यादि वस्तुएँ, अपने-अपने क्षेत्रों में श्रम जैसे प्राथमिक साधन एवं अन्य आदाओं (inputs) की सहायता से उत्पादित की जा रही है। इस अर्थव्यवस्था में एक उद्योग की प्रदा (Output) दूसरे उद्योग की आ-दा (inputs) होती है। इस प्रकार समस्त अर्थव्यवस्था में औद्योगिक अन्त:सम्बन्ध एवं परस्पर निर्भरताएँ पाई जाती हैं और उद्योगों के अन्त:सम्बन्धों एवं अन्त:निर्भरताओं के फलस्वरूप ही अर्थव्यवस्था में माँग और पूर्ति में सन्तुलन स्थापित होता है।
लियोनटीफ मॉडल को एक उदाहरण से भी स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए अर्थव्यवस्था में केवल तीन उद्योग हैं, इनमें कृषि एवं निर्माणकारी उद्योग दोनों मिलकर अन्तः- उद्योग (Inter-industry) क्षेत्र का निर्माण करते हैं और घरेलू क्षेत्र अन्तिम माँग क्षेत्र (final demand sector) है। अग्र दी गयी तालिका 1 इस अर्थव्यवस्था का एक सरल रूप प्रस्तुत करती है।
अग्र तालिका 1 में तीनों क्षेत्रों की कुल प्रदा (total output) को पंक्तियों (rows) में और इनकी अदाओं को खानों (columns) में दिखाया गया है।
तालिका (1)
(इकाइयाँ अथवा करोड़ रु०)
क्रय क्षेत्र (Purchasing Sector) | |||||
क्षेत्र | कृषि को आ-दा | विनिर्माण उद्योग को आ-दा | अन्तिम मांग या घरेलू क्षेत्र | कुल प्रदा या कुल आगम | |
विक्रय क्षेत्र | कृषि
उद्योग घरेलू कुल आ-दा या कुल लागत |
25
40 10 75 |
175
20 40 235 |
50
60 0 110 |
250
120 50 420 |
आ-दा-प्रदा तालिका का प्रयोग करने के लिए ऊपर दी गयी तालिका 1 का सामान्य उदाहरण में परिवर्तन करना पड़ेगा जिसके लिए लेन-देन आधारक (transaction matrix) का निर्माण आवश्यक है। लेन-देन आधारक इस बात को स्पष्ट करता है कि किसी उद्योग विशेष की कुल प्रदा को अन्य उद्योगों की आ-दाओं के रूप में, और अन्तिम माँग क्षेत्र में किस प्रकार वितरित किया जाय। माना कृषि को 1, उद्योग को 2 तथा घरेलू क्षेत्र को 0, से प्रदर्शित किया जाता है। ऐसी स्थिति में उपरोक्त अर्थव्यवस्था की लेन-देन अधारक इस प्रकार होगी-
तालिका 2
लेन-देन आधारक (Transaction Matrix)
क्रय क्षेत्र | अन्तिम भाग या उपभोग क्षेत्र | कुल प्रदा | ||
कृषि | उद्योग | |||
विक्रय क्षेत्र | X11
X21 X01 |
X21
X22 X02 |
C1
C2 0 |
X1
X2 X3 |
तालिका की सहायता से विभिन्न उद्योगों के उत्पादन फलन (Production functions) का निर्माण किया जा सकता है जोकि निम्न होंगे-
X1 = f1 (X11 X21…. Xo1)
X2 = f2 (X12 X22…X02)
इसी प्रकार कुल उत्पादन का विभिन्न उद्योगों में वितरण भी प्रदर्शित किया जा सकता है-
X1 = X11 + X22 + C1
X2 = X21 + X22 + C2
X2 + Xo2 = X4
लियोनटीफ ने मॉडल में अर्थव्यवस्था के व्यवहार को प्रदर्शित करने के लिए दो प्रकार के सम्बन्धों की व्याख्या की है। वह इन सम्बन्धों को ‘तुलन एवं संरचना के आधारभूत सम्बन्ध’ (fundamental relations of balance and structure) के नाम से पुकारता है। प्रथम सम्बन्ध अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र की आन्तरिक स्थिरता को प्रदर्शित करता है और इसे तुलन समीकरण (balance equation) कहते हैं। अन्तःक्षेत्रीय सम्बन्धों की बाह्य स्थिरता को प्रदर्शित करने वाले सम्बन्ध की संरचनात्मक समीकरण. (structure equation) कहते हैं। माना उद्योग i का कुल उत्पादन n उद्योगों द्वारा प्रयोग किया जाता है तो ऐसी स्थिति में तुलन समीकरण निम्न होगा-
Xj = Xii + Xi2 + xi2 +…..+ Xin + Ci
लियोनटीफ ने विशेष स्थिर गुणांक मान्यता को भी स्वीकार किया है अर्थात् प्रत्येक उद्योग की आ-दा (inputs)Xij: उत्पादन का स्थिर अनुपात प्रयोग में लाता है ऐसी स्थिति में उद्योग का तकनीकी गुणांक (technological co -cfficient) निम्न होगा-
आ-दा या तकनीकी गुणांक aij = Xi/Xj
यहां Xij = i उद्योग के उत्पादन का वह भाग है जो j उद्योग के द्वारा उपमेय किया जाता है; Xi = j उद्योग की कुल प्रदा। अतः
Xij = aij Xj
यह समीकरण इस बात को स्पष्ट करता है कि उद्योग की कुल प्रदा में दूसरे उद्योग की प्रदा का कितना भाग प्रयोग किया जाता है। यह समीकरण संरचनात्मक समीकरण structural equation) कहलाती है। चूंकि विश्लेषण की मान्यता है कि एक उद्योग की कुल प्रदा सभी उद्योगों तथा अन्तिम माँग क्षेत्र द्वारा खपत ली जाती है अर्थात् इससे सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का संरचना-प्रवाह प्रकट होता है। इसलिए कई संरचनात्मक समीकरण मिलकर अर्थव्यवस्था की प्रचलित तकनीकी स्थितियों का स्पष्टीकरण देते हैं। आ-दा गुणांकों से बनने वाली तालिका का प्रौद्योगिकी आधारक (technological matrix) कहते हैं। उपरोक्त उदाहरण के तकनीकी गुणांक निम्न तालिका में दिखाये गये हैं-
तालिका 3
तकनीकी अधारक (Technological Matrix)
कृषि को आ-दा | उद्योग को आ-दा | अन्तिम माँग क्षेत्र | कुल प्रदा | |
कृषि
उद्योग घरेलू क्षेत्र |
0.10
0.16 0.04 |
1.46
0.17 0.33 |
0.20
0.24 0.00 |
250
120 50 |
लियोनटीफ का गत्यात्मक मॉडल
(Dynamic Model)
स्थैतिक आ-दा-प्रदा तकनीक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में विभिन्न उद्योगों की परस्पर निर्भरता को तकनीकी गुणांकों के द्वारा स्पष्ट करती है। प्रत्येक गुणांक j उद्योग के द्वारा, i उद्योग के उत्पादक का प्रति-इकाई उत्पादन के लिए, उपभोग किया जाने वाला भाग प्रदर्शित करता है। परन्तु ये गुणांक अर्थव्यवस्था की स्टॉक सम्बन्धी आवश्यकताओं को प्रदर्शित नहीं करते हैं। ये आ-दाओं की उस मात्रा को भी स्पष्ट नहीं कर सकते जो अर्थव्यवस्था के विभिन्न उद्योगों को पूँजीगत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपभोग किया जाता है। यह पूँजीगत माँग या तो स्थिर विनियोग जैसे भवन निर्माण, मशीन इत्यादि के लिए की जाती है या उद्योग हेतु प्रयोग में आने वाली कच्ची-सामग्री के स्टॉक रखने के लिए की जाती है। यह व्यवस्था तभी सम्भव है जबकि संरचनात्मक समीकरण में पूर्व-अवधि-आवश्यकताओं के साथ-साथ प्रत्येक क्षेत्र की पूँजीगत आवश्यकताओं को भी शामिल कर लिया जाये। वास्तव में, इन धारणाओं को ध्यान में रखकर ही प्रो० लियोनटीफ ने गुणात्मक आ-दा-प्रदा प्रणाली का विस्तार किया है।
मान्यताएँ (Assumptions)- गत्यात्मक मॉडल की प्रमुख मान्यताएँ इस प्रकार हैं-(i) एक उद्योग केवल एक वस्तु का ही उत्पादन करता है। (ii) प्रत्येक उत्पादन के लिए केवल मात्र एक ही तकनीक उपलब्ध है, जिसमें संयोग स्थिर है।
माना चालू उपभोग की वस्तु C1 (t); का उत्पादन केवल उद्योग के द्वारा ही किया जाता है। Xi (t); i उद्योग का t समय-अवधि में कुल उत्पादन है। यह Xi (t) उत्पादन तीन कार्यों में प्रयोग किया जा रहा है-(1) अगली अवधि के उपभोग के लिए Ci (t+1); (2) पूँजीगत स्टॉक में विशुद्ध वृद्धि के लिए St (t+1)-Si (t); तथा (3) अर्थव्यवस्था में उद्योगों में उत्पादन के लिए चालू प्रवाह के रूप में। ऐसी स्थिति में तुलन समीकरण (balance equation) निम्न होगा-
Xi (t) = Ci (t+1) + Si (t+1)-Si (t) + X12(t) जहाँ i = 1,2
अब प्रश्न उठता है कि चालू प्रदा (current output) X1 (t) तथा X2 (t) कैसे उत्पादित की जा रही है? लियोनटीफ ने उत्पादन फलन को दर्शाने के लिए कुल उत्पादन को उत्पादन साधनों के दो वर्गों पर आधारित किया है। प्रथम वर्ग के अन्तर्गत चालू कच्ची सामग्री का अर्थात् X11, X12, X2I, X22 आती है तथा दूसरे वर्ग में पूँजीगत वस्तुओं का स्टाक आता है-अर्थात् (S11, S12, S21, S22)।
अत: चालू उत्पादन फलन इस प्रकार होंगे-
X1 (t) = f1 [X11 (t), X21 (t), S11 (t), S21(t)]
X2 (t) = f2 [X12 (t), X22 (t), S21 (t), S22 (t)]
अर्थव्यवस्था में कुल पूँजी स्टाक विभिन्न उद्योगों के पूँजीगत स्टॉक के बराबर होगा। अर्थात्
Si (t) = si1 (t) + si2 (t)
तथा पूँजी स्टॉक में परिवर्तन की दर इस प्रकार होगी-
∆Si (t) = Si (t+1)-Si (t)
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