आगत-निर्गत की परिसीमाएँ | विकास-आयोजन में आ-दा तकनीक का अनुप्रयोग | विकास-आयोजन में आगत-निर्गत तकनीक का अनुप्रयोग
आगत-निर्गत की परिसीमाएँ
(Limitations)
विश्लेषण की मुख्य सीमाएँ इस प्रकार हैं-
(1) मान्यताओं की अव्यावहारिकता– लियोनटीक द्वारा मानी गयी मान्यताएँ अव्यावहारिक हैं। विशेष रूप से उसका यह कहना कि उत्पादन का आ-दा गुणांक स्थिर रहता है अर्थात् उसकी ‘पैमाने के स्थिर प्रतिफल’ तथा ‘तकनीकी स्थिरता’ की बात काफी अवास्तविक जान पड़ती है। लियोनटीफ यह स्पष्ट नहीं कर सके कि आर्थिक दशाओं में परिवर्तन होने पर तकनीकी गुणांक कैसे और क्यों बदल जाता है? यही नहीं, प्रायः देखने में आता है कि कुछ उद्योग पूँजी संरचना की दृष्टि से समान होते हैं, कुछ पूँजी की आर्थिक माँग करते हैं तो कुछ ऐसे भी उद्योग होते हैं जिनकी पूँजीगत मांग बहुत कम होती है। अतः ऐसी दशा में उत्पादन तकनीकों के प्रयोग में किये जाने वाले परिवर्तन, स्थिर-गुणांक की धारणा को अवास्तविक बना देते हैं।
(2) कुछ घटकों की उपेक्षा- इस आ-दा-प्रदा मॉडल की स्थिरता (rigidity) का स्वरूप, विभिन्न प्रकार की अड़चनों (bottlenecks) तथा बढ़ती लागतों आदि की अवहेलना करता है।
(3) साधन-प्रतिस्थापन की अवहेलना- उत्पादन-गुणांकों के स्थिर रहने की मान्यता ने साधन-प्रतिस्थापन की सम्भावना को बिल्कुल नजरअन्दाज कर दिया है। सच तो यह है कि साधन- प्रतिस्थापन की सम्भावना थोड़ी बहुत मात्रा में तो अल्पकाल में भी होती है, जबकि दीर्घकाल में इसकी सम्भावना और अधिक हो जाती है।
(4) एक-पक्षीय विश्लेषण- यह विश्लेषण एक-पक्षीय है क्योंकि यह अव्यवस्था में केवल उत्पादन पहलू पर विचार करता है।
(5) अन्तिम-माँग क्षेत्र की स्थिर आ-दा सम्बन्धी कठिनाई- इस मॉडल में सरकार तथा उपभोक्ता के क्रय को यानि अन्तिम माँग क्षेत्र की आ-दा को दिया हुआ मान लिया गया है। दूसरे शब्दों में, अन्तिम माँग क्षेत्र एक स्वतन्त्र चल है जिसमें विचलन की कोई सम्भावना नहीं है। वास्तव में यह मान्यता दोषपूर्ण है क्योंकि अन्तिम माँग क्षेत्र आश्रित चल होने के साथ साथ विचलनशील भी है।
(6) रेखीय सम्बन्ध सम्भव न होना- इस मॉडल की रेखीय सम्बन्ध (liner relation) की धारणा अर्थात् एक उद्योग की प्रदा दूसरे उद्योग की आ-दा होने वाली बात अवास्तविक है। क्योंकि साधनों की अविभाज्यता के कारण, प्रदा में होने वाली वृद्धि सदैव आ-दा में होने वाली वृद्धि के समान नहीं हो पाती।
(7) जटिलता- यह तकनीक समझने तथा अनुप्रयोग की दृष्टि से काफी जटिल है। इसमें समीकरणों के पिरामिड तैयार करने पड़ते हैं जिसके लिए पर्याप्त सांख्यिकीय आँकड़ों तथा गणित के उच्च-स्तरीय ज्ञान की आवश्यकता होती है अत: इस दृष्टि से यह तकनीक काफी जटिल मानी जाती है।
विकास-आयोजन में आ-दा तकनीक का अनुप्रयोग
(Application of Input-Output Technique in Development Planning)
वैसे तो वर्तमान आर्थिक जगत के प्रत्येक क्षेत्र में आ-दा-प्रदा तकनीक का प्रयोग किया जाता है लेकिन मुख्य रूप से आर्थिक नियोजन के क्षेत्र में इसका प्रयोग अब अधिक किया जाने लगा है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उदग्र-सम्बन्धों (varical relations) का अध्ययन अर्थात् आ-दा- प्रदा तकनीक का प्रयोग अब केवल पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की दशाओं तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता। जैसा कि मार्क्स का कहना है, “चूँकि आ-दा-प्रदा सम्बन्ध उत्पादन की प्रौद्योगिकीय दशाओं पर आधारित है इसलिए ऐसे समुचित अनुपात अब प्रत्येक प्रकार की अर्थव्यवस्था में बनाए जाने चाहिए।” हाँ! इन सम्बन्धों व अनुपातों का अध्ययन समाजवादी आर्थिक नियोजन के लिए और पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के कार्यकारी-यन्त्र को समझाने के लिये समान रूप से जरूरी है। प्रो० लेज का मत है कि “Under conditions of socialism input-output analysis is a necessary tool of ascertaining the internal consistency of national economic plans.”
नियोजित समाजवादी देशों में आ-दा-प्रदा विश्लेषण विभिन्न प्रकार की ‘सांख्यिकीय ब्रान्चों का जटिलता है जो राष्ट्रीय आर्थिक नियोजन के उपकरण का काम करता है। चूंकि आ-दा-प्रदा तालिका विभिन्न क्षेत्रों के परस्पर-सम्बन्धों और एक-क्षेत्रीय संरचनात्मक सम्बन्धों का पूरा हवाला देती है इसलिए इन सूचनाओं के आधार पर, नियोजन सत्ता किसी एक क्षेत्र के परिवर्तन व प्रभाव को अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर लागू कर सकती है अथवा उसी के अनुसार आयोजन कर सकती है। हाँ! ध्यान रखने योग्य बात यह है कि राष्ट्रीय आयोजन के लिए स्थैतिक आ-दा-प्रदा मॉडल की अपेक्षा प्रावैगिक मॉडल अधिक उपयुक्त रहता है क्योंकि तीव्र गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में प्रवाह-ढाँचा स्थिर नहीं रह पाता। इस सम्बन्ध में यह भी लिखना अनावश्यक न होगा कि आ-दा-प्रदा तकनीक एक अल्प-विकसित देश के आर्थिक नियोजन में अधिक सहायक सिद्ध हो सकती है। इसका कारण यह है कि स्थिर तकनीकी गुणांक धारणा वाला “रेखीय-समरूप आ-दा-प्रदा मॉडल” विश्वसनीय सांख्यिकीय आँकड़ों के अभाव में भी सुविधाजनक ढंग से कार्य कर सकता है। वैसे भी ‘प्रवाह’ और ‘पूँजी गुणांकों’ को स्थिर मान लेने पर विस्तृत सांख्यिकीय आँकड़ों की आवश्यकता कम हो जाती है क्योंकि आदाएँ (inpurs), प्रदाओं के आनुपातिक मान ली जाती है। इसलिए आ-दा-प्रदा तकनीक अल्प-विकसित देशों में अन्त उद्योग प्रवाहों की मात्राओं को निर्धारित करने में विशेष रूप से सहायक सिद्ध होती है। यही कारण है कि नियोजित ढंग से विकारा करने वाले अधिकांश देशों द्वारा इस तकनीक का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया गया है।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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