वित्तीय प्रबंधन

आधुनिक युग में वित्तीय प्रबन्धक के कार्य | Functions of Financial Manager in Hindi

आधुनिक युग में वित्तीय प्रबन्धक के कार्य | Functions of Financial Manager in Hindi

आधुनिक युग में वित्तीय प्रबन्धक के कार्य

(Functions of Financial Manager)

आधुनिक युग में वित्तीय प्रबन्धक के प्रमुख कर्तव्य या कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) वित्तीय आवश्यकता का अनुमान लगाना- वित्तीय प्रबन्धक का प्रथम कार्य वित्त सम्बन्धी आवश्यकता का अनुमान लगाना है। वित्त की आवश्यकता के सही अनुमान पर ही संस्था की सफलता निर्भर करती है। यदि वित्त की आवश्यकता का अनुमान आवश्यकता से कम लगा दिया जाता है तो संस्था पर ब्याज का अनावश्यक भार बढ़ जाता है। इसके विपरीत, यदि वित्त की आवश्यकता का अनुमान आवश्यकता से कम लगाया जाता है तो संस्था के सामने वित्तीय संकट उपस्थित हो जाता है। अतः वित्त की आवश्यकता का अनुमान बड़े ही विवेकपूर्ण ढंग से लगाया जाना चाहिये।

(2) वित्तीय योजना बनाना- वित्तीय प्रबन्धक का द्वितीय प्रमुख कार्य वित्त सम्बन्धी योजना बनाना है। वित्त सम्बन्धी योजना के अन्तर्गत इस बात पर विचार किया जाता है कि कितने वित्त की व्यवस्था किन-किन स्रोतों से करनी है, तथा वित्त का विनियोग किस प्रकार किया जायेगा। इस योजना में वित्त सम्बन्धी आवश्यकता का अनुमान, पूँजी ढाँचे का निर्धारण, नकदी एवं साख से सम्बन्धित नियोजन आदि को सम्मिलित किया जाता है।

(3) वित्त का उचित विनियोग करना- वित्तीय प्रबन्धक का तृतीय कार्य उपलब्ध वित्त का उचित विनियोजन करना है। इस प्रकार के विनियोग में स्थायी एवं चल सम्पत्तियों का विनियोग सम्मिलित है। वित्तीय प्रबन्ध को बड़ी ही सावधानी से विचार करके अचल एवं स्थायी सम्पत्तियों में विनियोग करने के निर्णय लेने चाहिये, ताकि कम से कम वित्त द्वारा अधिकतम आय अर्जित की जा सके।

(4) आय का प्रबन्ध करना- वित्तीय प्रबन्धक का यह एक प्रमुख कर्तव्य है कि वह आय का उचित ढंग से प्रबन्ध करे। एक संगठन की सफलता उसकी आय के कुशल प्रबन्ध पर निर्भर करती है। आय के प्रबन्ध में वित्तीय प्रबन्धक को यह भी निर्णय करना होता है कि वह प्राप्त आय का कितना भाग लाभांश के रूप में घोषित करे तथा कितना भाग भविष्य की आवश्यकता के लिये संचित करे।

(5) वित्तीय कार्यों के निष्पादन का उचित मूल्यांकन एवं विश्लेषण करना- वित्तीय प्रबन्धक का कार्य यह भी देखना है कि नियोजन के अनुसार ही कार्य पूरा किया जा रहा है अथवा नहीं। यदि नियोजन के अनुरूप कार्य पूरा नहीं हो रहा है तो उसे इसके कारणों का पता लगाना चाहिये और उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिये।

(6) वित्त की उत्पादकता बढ़ाना- वित्तीय प्रबन्धक का प्रमुख उद्देश्य कम से कम वित्तीय साधनों द्वारा अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति तभी हो सकती है जबकि वित्त की उत्पादकता बढ़ाई जाये। वित्तीय प्रबन्धक उपलब्ध वित्त का अधिकतम प्रयोग करके वित्त की उत्पादकता को बढ़ाने का सदैव प्रयास करता है।

(7) समन्वय एवं नियन्त्रण करना- वित्तीय प्रबन्धक उत्पादन के समस्त साधनों में समन्वय स्थापित करता है और साथ ही इन साधनों पर नियन्त्रण भी बनाये रखता है ताकि वित्त का दुरुपयोग न हो सके।

(8) उच्च प्रबन्ध को परामर्श देना- एक वित्तीय प्रबन्धक सदैव सभी उपलब्ध वित्तीय संकल्पों पर विचार करके उच्च प्रबन्ध को सर्वोत्तम विकल्प के सम्बन्ध में अपना परामर्श देता है- यद्यपि किसी भी वित्तीय मामले पर अन्तिम निर्णय उच्च प्रबन्ध द्वारा ही लिया जाता है, परन्तु वित्तीय प्रबन्धक का अन्तिम निर्णय लेने के लिये, उसके समक्ष आधार प्रस्तुत करता है।

(9) नकदी का पूर्वानुमान लगाना तथा इसका प्रयोग नियन्त्रित करना- वित्तीय प्रबन्धक को, नकदी का पूर्वानुमान लगाना तथा इसके प्रयोग को नियन्त्रित करना होता है। नकदी का पूर्वानुमान करते समय दिन-प्रतिदिन के कार्य-संचालन सम्बन्धी व्ययों को भी ध्यान में रखा जाता है। नकदी के पूर्वानुमान करना ही पर्याप्त नहीं होता अपितु इसके प्रयोग को नियन्त्रित करना भी आवश्यक है।

(10) वित्तीय निर्णय- वित्तीय प्रबन्धक द्वारा यह भी प्रयत्न किया जाता है कि कम से कम वित्त से अधिकतम आय अर्जित की जा सके। इसके अतिरिक्त वित्तीय निर्णय द्वारा ही यह भी निश्चित किया जाता है कि संस्था के कार्य संचालन के लिये कुल कितने वित्त की आवश्यकता होगी। तथा प्राप्त वित्त का विनियोजन किस प्रकार किया जायेगा।

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Pankaja Singh

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