संतुलन क्या है | स्थिर, अस्थिर तथा तटस्थ संतुलन को रेखा चित्र की सहायता से समझाइए
संतुलन क्या है
संतुलन से आशय– प्रो. मार्शल साम्यअथवा संतुलन की तुलना एक रस्सी में बंद है पत्थर करते हैं कि यदि एक रस्सी में पत्थर बांधकर उसे हिलाया जाए, तो प्रारंभ में रस्सी इधर-उधर पत्थर लिए घूमती रहेगी, किंतु अंततोगत्वा रस्सी मध्य में पहुंचकर गतिहीन (स्थिर) हो जाएगी। इसे ही संतुलन समझा जाना चाहिए। और भी सरल भाषा में साम्यअथवा संतुलन विश्राम की उसी स्थिति का परिचायक है जहां दो विरोधी शक्तियों की क्रियाशीलता में प्रभाव में स्थिरता (संतुलन) की अवस्था उत्पन्न होती है इसे ही संतुलन समझा जाना चाहिए।
प्रो. जे. के. मेहता के अनुसार, “अर्थशास्त्र में साम्य गतिशीलता में परिवर्तन की अनुपस्थिति को बताता है, जबकि भौतिक विज्ञान में यह स्वयं परिवर्तन की अनुपस्थिति का सूचक है।”
प्रो. जे. एल. हेन्सन के अनुसार, “संतुलन व्यवस्था है जिससे उस समय विद्यमान आर्थिक शक्तियों में परिवर्तन की प्रवृत्ति नहीं होती है।”
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स्थिर, अस्थिर व तटस्थ संतुलन-
विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने साम्य या संतुलन को निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया है-
(i) स्थिर संतुलन– प्रो. ए. सी. पीगू ने स्थिर संतुलन की अवस्था में बताया है कि किसी अर्थव्यवस्था में कुछ साधारण विघ्न अथवा बाधाएं उत्पन्न होती है तो अर्थव्यवस्था अपनी प्रारंभिक अवस्था में पुनः पहुंच जाती है। ऐसी स्थिति आर्थिक प्रणाली में स्थिर होने का प्रतीक है।
(ii) अस्थित संतुलन- पीगू के मतानुसार अस्थिरसंतुलन की व्यवस्था है जब किसी अर्थव्यवस्था में थोड़ी बिघ्न अथवा बाधाएं उत्पन्न होने पर अर्थव्यवस्था अपनी प्रारंभिक स्थिति में लौटने के बजाय मूल स्थिति से अत्यंत दूर चली जाए तो वह अवस्था आर्थिक, अस्थिर साम्य परिचालक है।
प्रो. मार्शल एवं वालरस के विचार- स्थिर संतुलन एवं अस्थिर संतुलन के संबंध में प्रोफ़ेसर वालरस के विचार परस्पर विरोधी हैं किंतु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि स्थिर एवं अस्थिर संतुलन के संबंध में प्रभावपूर्ण विचार है, बल्कि दोनों ही विद्वान उचित आर्थिक विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं।
स्थिर, अस्थिर तथा तटस्थ संतुलन को रेखा चित्र की सहायता से समझाइए
वक्र के अंतर्गत प्रोफ़ेसर मार्शल ने स्थिर साम्य के बिंदु क्रमशः K व D दर्शाए हैं, जबकि अस्थिर साम्य बिंदु L है। स्थिर संतुलन मैं साम्य बिंदु पर मांग वक्र चक्र नीचे से काटना चाहिए। अन्य शब्दों में साम्य बिंदु के बाई और कीमत पर मांग मात्रा पूर्ति मात्रा से अधिक, किंतु अदाएं ही नहीं और कीमत पर पूर्ति मान मात्रा से अधिक होती है। जबकि प्रोफ़ेसर वालरस के मतानुसार स्थिर संतुलन में विपरीत स्थिर बतलाते हुए कहा है कि संतुलन में उसी दशा में स्थिर होगा, जब साम्य बिंदु पर पूर्ति चक्र मांग वक्र को ऊपर से नीचे की ओर काटता है। इस प्रकार मार्शल व वालरस के स्थिर व अस्थिरमैं मूल अंतर यही है कि मार्शल के वक्र में पूर्ति वक्र मांग वक्र की अपेक्षा नीचे से प्रारंभ होता है जबकि वालरस के वक्र पूर्ति वक्र के ऊपर से प्रारंभ होता है।
प्रो.वायलस के मतानुसार– निम्नलिखित प्रकार के वक्र निर्मित होता है।
वक्र नंबर 2 मैं P एवं L स्थिर साम्य बिंदु है-जिन पर पूर्ति रेखा से दाहिनी ओर नीचे की ओर आने की प्रवृत्ति रखती है, जबकि T बिंदु अस्थिर साम्य को दर्शाता है।
(iii) तटस्थ संतुलन– उदासीन अथवा तटस्थ संतुलन किसी अर्थव्यवस्था की वह दशा है, जिसमें प्रारंभ में ही परिवर्तन होने पर अर्थव्यवस्था अपनी पहली जैसी अवस्था में पहुंचने के बजाय नवीन परिवर्तित स्थिति में संतुलन स्थापित करने की प्रवृत्ति रखती है।
प्रो.शुम्पीटर के शब्दों में, “एक तटस्थ साम्य वह साम्य मूल है जो इस प्रकार की ताकतों से अधिक होता है।”
तटस्थ संतुलन को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया है।
- अल्पावधि संतुलन– किसी उद्योग फर्म अथवा अर्थव्यवस्था में उत्पादन की अल्पावधि संतुलन वह साम्य की दशा है, जिससे उत्पादन को इतना अल्प समय मिलता है कि वह अपने उत्पादन को मांग के अनुसार, उत्पादित करने में अक्षम होते हैं। इतना ही नहीं मांग के अनुसार, उत्पादन के साधनों में परिवर्तन भी संभव नहीं होता है।
- दीर्घावधि संतुलन- मार्शल के अनुसार,दीर्घकालीन उत्पादन प्रक्रिया कृषि उद्योग अथवा फर्म कि वह दशा है, जिसमें उत्पादक के पास इतना अधिक समय रहता है कि वह उत्पादन तकनीक, मशीनों, फरमाए स्थल आदि में परिवर्तन कर सकता है।
- एकल संतुलन– एकल संतुलन वह संतुलन होता है जिसमें वस्तु की मात्रा व कीमत एक ही स्थान पर निश्चित होती है तथा जो संतुलन की सभी शर्तों को पूरा करती है।
प्रो.शुम्पीटर के अनुसार, “एकल साम्य उस समय होता है,जब आर्थिक चर मूल्यों का केवल एक समूह संतुलन दशा को संतुष्ट करता हो।”
- बहुल संतुलन– बहुल संतुलन व संतुलन होता है जिसमें वस्तु की कीमत व मात्रा यह का स्थान के बजाय विभिन्न स्थानों पर स्थित होती है तथा जिसमें विभिन्न उत्पादक मात्राओं के समूह पृथक पृथक रूप में संतुलन की शर्तें पूर्ण करते हुए दिखाई देते हैं।
- आंशिक एवं सामान्य संतुलन– मानसिक संतुलन को कैंब्रिज संप्रदाय के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर मांसल ने विश्लेषण किया है। मार्शल के मतानुसार जब किसी अर्थव्यवस्था मैं एक फर्म, एक उद्योग, एक व्यक्ति अथवा एक उद्योगों का समूह उत्पादन क्रिया में समग्र रहे, तो ऐसे उत्पादन से एक क्षेत्र विशेष में साम्य स्थापित हो जाता है। किंतु समग्र अर्थव्यवस्था में साम्य अथवा संतुलन की स्थापना नहीं हो सकती है।
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