लागत में तुलनात्मक अन्तर का आशय | लागतों में अन्तर के प्रकार | लागतों में पूर्ण या निरपेक्ष अन्तर | लागतों में समान अन्तर | लागतों में तुलनात्मक या सापेक्षिक अन्तर
लागत में तुलनात्मक अन्तर का आशय
लागतों में तुलनात्मक अन्तर उस समय होता है जब एक देश को दूसरे देश की तुलना में ही वस्तुओं के उत्पादन में तुलनात्मक श्रेष्ठता उपलब्ध हो लेकिन उत्पादन व्यय की दृष्टि से यह श्रेष्ठता एक वस्तु में कम और दूसरी वस्तु में अधिक हो सकती है।
मार्शल के शब्दों में, “यदि ऐसी वस्तुओं को जिनका उत्पादन देश में किया जा सकता है, विदेशों से स्वतन्त्र आयात किया जाता है, तो वह इस बात का सूचक है कि इन वस्तुओं को देश में उत्पादन की जोला होती है, उसकी अपेक्षा इन वस्तुओं को विदेशों से अन्य वस्तुओं के बदले में माँगने में कम लागत लगती है।”
लागतों में अन्तर के प्रकार
(Types of Cost Differences)-
लागतों में अन्तर तीन प्रकार के हो सकते हैं-
(I) लागतों में पूर्ण या निरपेक्ष अन्तर (Absolute Differences in costs)
(II) लागतों में समान अन्तर (Equal Difference in Costs)
(III) लागतों में तुलनात्मक या सापेक्षिक अन्तर (Relative or Comparative Difference in Costs)।
(1) लागतों में पूर्ण या निरपेक्ष अन्तर
(Absolute Differences in costs)-
दो देशों के बीच लागतों में निरपेक्षण अन्तर तब होता है जब उनमें से एक देश किसी वस्तु को दूसरे देश की अपेक्षा काफी कम लागत पर उत्पन्न कर लेता है। ऐसी दशा में दोनों देश उस वस्तु का उत्पादन करेंगे जिसे वे अपेक्षाकृत कम लागत पर उत्पन्न कर सकते हैं और उस वस्तु का जिसके उत्पादन में अपेक्षाकृत अधिक लागत व्यय आती है, एक-दूसरे देश में आयात कर लेंगे।
Example
देश |
प्रति इकाई उत्पादन लागत (श्रम इकाइयों में) |
|
कपास |
जूट |
|
भारत |
2 |
1 |
पाकिस्तान |
1 |
2 |
उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि भारत में पाकिस्तान की अपेक्षा कपास की उत्पादन लागत अधिक है और पाकिस्तान में भारत की अपेक्षा जूट की उत्पादन लागत अधिक है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान पर निरपेक्ष लाभ प्राप्त है। (भारत में कपास व जूट का विनिमय अनुपात 2:1 होगा, जबकि पाकिस्तान में कपास व जूट का अनुपात 1:2 है)। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान केवल कपास का उत्पादन करेगा और भारत जूट का, अत: दोनों अपने अतिरिक्त उत्पादन को एक-दूसरे को बेचकर लाभ प्राप्त करेंगे।
चित्र में भारत और पाकिस्तान की उत्पादन सीमा रेखा (Production Frontier) इस आधार पर खींची गयी है कि भारत में कपास-जूट की इकाइयों का विनिमय अनुपात 2:1 तथा पाकिस्तान में इन्हीं इकाइयों का विनिमय अनुपात 1:2 है। चित्र में AB रेखा भारत की तथा AC रेखा पाकिस्तान की उत्पादन सीमा रेखा हैं। इन दोनों देशों में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का लाभ होगा। यदि दो देशों में दोनों वस्तुओं की विनिमय दर BC के मध्य होती है तो दोनों देशों को लाभ होगा।
(II) लागतों में समान अन्तर
(Equal Difference in Costs)-
दो देशों के बीच लागतों में समान अन्तर तब होता है जब दोनों देशों में वस्तुओं की उत्पादन लागतों का अनुपात समान होता है। लागतों में समान अन्तर होने की दशा में किसी प्रकार का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नहीं हो सकता क्योंकि ऐसी दशा में श्रम विभाजन व विशिष्टीकरण से किसी भी देश को लाभ नहीं मिलता।
देश |
प्रति इकाई उत्पादन लागत (श्रम इकाइयों में) |
|
कपास |
जूट |
|
भारत |
10 |
5 |
पाकिस्तान |
8 |
4 |
उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि भारत में कपास और जूट दोनों वस्तुओं की उत्पादन लागत पाकिस्तान में इन वस्तुओं की उत्पादन लागत से अधिक है परन्तु दोनों देशों में लागत अन्तर का अनुपात 1:2 अर्थात् समान है। अत: दोनों देश दोनों वस्तुओं के उत्पादन में आत्म-निर्भरता को अपनायेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नहीं होगा।
उत्पादन सीमा रेखा AB भारत व पाकिस्तान दोनों की उत्पादन सीमा रेखा है जो दोनो देशों में दोनों वस्तुओं के समान लागत अनुपात को प्रदर्शित करती है। दोनों देशों में जूट की एक इकाई के बदले कपास की दो इकाइयाँ प्राप्त की जा सकती हैं, अत: व्यापार नहीं होगा।
(III) लागतों में तुलनात्मक या सापेक्षिक अन्तर
(Relative or Comparative Difference in Costs)-
लागतों में सापेक्षिक अथवा तुलनात्मक अन्तर तब होता है जब एक देश में दोनों ही वस्तुओं की उत्पादन लागत कम होती है किन्तु दोनों में से एक को वह दूसरे की अपेक्षा अधिक सस्ती उत्पन्न कर सकता है। इसी प्रकार दूसरा देश दोनों ही वस्तुओं को अधिक लागत व्यय पर उत्पन्न करता है परन्तु दोनों में से एक के उत्पादन में उसे अपेक्षाकृत कम हानि रहती है। लागतों में तुलनात्मक अन्तर होने की दशा में ही अधिकांश अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार होता है।
Example
देश |
प्रति इकाई उत्पादन लागत (श्रम इकाइयों में) |
|
कपास |
जूट |
|
भारत |
10 |
10 |
पाकिस्तान |
4 |
8 |
भारत को पाकिस्तान की तुलना में जूट और कपास दोनों वस्तुओं के उत्पादन में निरपेक्ष लाभ प्राप्त है किन्तु तुलनात्मक रूप से इसे कपास की तुलना में जूट के उत्पादन में अधिक लाभ है। जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है, उसे भारत की तुलना में दोनों वस्तुओं के उत्पादन में निरपेक्ष रूप से हानि है किन्तु उसकी लागत की तुलनात्मक हानि जूट की तुलना में कपास की कम है। व्यापार न होने की स्थिति में दोनों देशों में दोनों वस्तुओं का अग्र विनिमय अनुपात होगा-
भारत में : 1 इकाई जूट = 1 इकाई कपास
पाकिस्तान में : 1 इकाई जूट = 1 इकाई कपास
परन्तु यदि दोनों देशों में व्यापार होता है तो उससे दोनों देश लाभान्वित होगें। इस दशा में भारत केवल जूट में विशिष्टीकरण करेगा और पाकिस्तान कपास में। इस प्रकार के विशिष्टीकरण से कुल उत्पादन में वृद्धि होगी।
व्यापार से पूर्व-
भारत में = 10 इकाई जूट + 10 इकाई कपास
पाकिस्तान में = 4 इकाई जूट + 8 इकाई कपास
कुल उत्पादन = 14 इकाई जूट + 18 इकाई कपास
व्यापार के बाद-
भारत = 20 इकाई जूट
पाकिस्तान = 16 इकाई कपास
कुल उत्पादन = 36 इकाइयाँ
इस प्रकार विशिष्टीकरण के परिणामस्वरूप 4 इकाइयों का अधिक उत्पादन हुआ।
रिकार्डो के अनुसार, “इस तुलनात्मक लागत अन्तर की अवस्था में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार लाभ होगा यदि कुशल उसमें विशिष्टीकरण प्राप्त करें जिसमें उसकी कुशलता अधिकतम हो तथा उसमें विशिष्टीकरण प्राप्त करें जिसमें उसकी अकुशलता न्यूनतम हो।”
तुलनात्मक लाभ के इस सिद्धान्त को चित्र में स्पष्ट किया गया है। चित्र में AB भारत की उत्पादन सम्भावना रेखा 1 इकाई जूट = 1 इकाई कपास के आधार पर खींची गयी है। AC रेखा पाकिस्तान की उत्पादन सम्भावना रेखा है जो कि 1 इकाई जूट = 2 इकाई कपास के आधार पर खींची गयी है। BC वह अतिरेक है जो विदेशी व्यापार के द्वारा दोनों देश आपस में बाँट सकते हैं। B व C के बीच किसी भी विनिमय दर से दोनों देशों को लाभ होगा।
गणितीय रूप में- इस सिद्धान्त को, निम्न प्रकार समझाया जा सकता है-
यदि दो वस्तुएँ A और B तथा दो देश प्रथम व द्वितीय हों, तथा
A1 = प्रथम देश में A वस्तु की श्रम लागत हो।
A2= द्वितीय देश में A वस्तु की श्रम लागत हो।
B1 = प्रथम देश में B वस्तु की श्रम लागत हो।
B2 = द्वितीय देश में B वस्तु की श्रम लागत हो।
यदि A1 /A2 <1, तो प्रथम देश में A वस्तु द्वितीय देश से सस्ती है।
यदि A 1 /A 2 <B1/B2 <1 तो प्रथम देश कोA एवं B दोनों ही वस्तुओं के उत्पादन में निरपेक्ष लाभ परन्तु सापेक्ष या तुलनात्मक दृष्टि से प्रथम देश को A वस्तु के उत्पादन में व द्वितीय देश क B वस्तु के उत्पादन में लाभ है।
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