अर्थशास्त्र

मूल्य प्रभाव | आय प्रभाव व प्रतिस्थापन प्रभाव | Price effect in Hindi | Income effect and substitution effect in Hindi

मूल्य प्रभाव | आय प्रभाव व प्रतिस्थापन प्रभाव | Price effect in Hindi | Income effect and substitution effect in Hindi

मूल्य प्रभाव

मूल्य प्रभाव से आशय मूल्य में हुए परिवर्तन का उपभोक्ता के उपयोग संबंधी व्यवहार अर्थात मांग पर जो कुल प्रभाव पड़ता है उसे ‘कीमत प्रभाव’ के नाम से जाना और मापा जाता है। मूल्य प्रभाव को भली प्रकार समझने हेतु इसकी मान्यताओं को ध्यान में रखना आवश्यक है।

मूल्य प्रभाव की मान्यताएं

(i) किसी एक वस्तु X के मूल्य में परिवर्तन (माना की कमी) होता है।

(ii) अन्य वस्तु Y का मूल्य समान रहता है।

(iii) उपभोक्ता की द्राव्यिक आई स्थित आती है।

(iv) X के मूल्य की कमी के परिणाम स्वरुप उपभोक्ता की वास्तविक आय में वृद्धि (परिवर्तन) होती है परंतु इसे समाप्त नहीं किया जाता अर्थात, उपभोक्ता की स्थिति को पहले की तुलना में अच्छा (यदि वस्तु X का मूल्य बढ़ें, तो खराब) होने दिया जाता है।

मूल उपभोग रेखा

मूल्य प्रभाव को दर्शाने के लिए हम चित्र की सहायता लेते हैं। चित्र में LM प्रारंभिक कीमत रेखा है जो कि X और Y वस्तुओं के दिए हुए मूल्यों के आधार पर खींची गई है और उपभोक्ता A बिंदु पर संतुलन की स्थिति में है। इस स्थिति में वह वस्त X की OR मात्रा एवं वस्तु Y की OQ मात्रा क्रय करता है।

द्राव्यिक आय और वस्तु Y का मूल्य स्थिर रहते हुए जब वस्तु X के मूल्य में कमी आती है, तब उसी द्राव्यिक आय से वस्तु X को अधिक मात्रा (=OM) मैं खरीदा जा सकेगा किंतु वस्तु Y की वही मात्रा (OL) खरीदी जाएगी, क्योंकि इसका मूल्य स्थिर रहता है। इस प्रकार Y-वास्तु के संदर्भ में उपभोक्ता की आय सदैव PL रहेगी और फल स्वरुप मूल्य रेखा का बिंदु L स्थिर रहेगा। अतएव नई मूल्य रेखाLM2 होगी और उपभोक्ता की नई साम्य स्थिति अपेक्षाकृत ऊंची तटस्थता रेखा IC2 के बिंदु B पर बनती है। इस बिंदु पर उपभोक्ता X-वस्तु की OS मात्रा Y-मात्रा की OT मात्रा खरीदेगा।

यदि X-बस तुम होली में और भी कमी होती है तथा इसके फल स्वरुप कीमत रेखा की नई स्थिति LM2 हो जाती है, अब उपभोक्ता अधिक ऊंची तटस्थता रेखा IC3 के बिंदु C पर साम्य की स्थिति में होता है।

अब, यदि साम्य बिंदुओं A,B और C को मिला दिया जाय, तो PCC रेखा प्राप्त होती है। इसे मूल्य उपभोग रेखा कहा जाता है। यह रेखा इस बात को दिखलाती है कि एक वस्तु Y का मूल्य किस प्रकार उस वस्तु के लिए उपभोक्ता की मांग को प्रभावित या परिवर्तित करता है जबकि दूसरी वस्तु Y का मूल्य और उपभोक्ता की द्राव्यिक आइ स्थिर या समान बनी रहे। अन्य शब्दों में, मूल्य-उपभोग रेखा मूल्य प्रभाव के रास्ते को दर्शाती है। वह वस्तु X के मूल्यों (यहां घटते हुए विभिन्न मूल्यों) और ऐसे (घटी हुई ‌) प्रत्येक मूल्य पर उपभोक्ता द्वारा उस वस्तु X की मांगी जाने वाली मात्राओं के समूह दर्शाती है। इस जानकारी के आधार पर हैं उपभोक्ता का मांग वक्र बनाया जा सकता है।

नीचे को गिरती हुई PCC रेखा बतलाती है कि X वस्तु का मूल्य गिरने पर उपभोक्ता उस की अधिक मात्रा खरीदना है जबकि Y-वस्तु की कम मात्रा खरीदी जाती है। जिस वस्तु के लिए PCC रेखा नीचे की ओर गिरती हुई होती है उसको ‘सामान्य स्थिति’कहीं जाएगा और ऐसी स्थिति ‘सामान्य स्थिति’ कहीं जाएगी। उल्लेखनीय है कि PCC के अनरूप भी हो सकते हैं।

आय प्रभाव से आशय

आय-प्रभाव मांगी गई मात्रा में वह स्थिर परिवर्तन है जो कि केवल आए में परिवर्तन के फल स्वरुप होता है जबकि वस्तुओं के मूल्य स्थिर बने रहते हैं। ऐसी रेखा को, जो कि आय प्रभाव दिखाई है, आय उपभोग रेखा कहते हैं। आय उपभोग रेखा वास्तव में उपभोगता के संतुलन-बिंदुओं का मार्ग है जबकि केवल आय मैं परिवर्तन होता है, अर्थात यदि 2 वस्तुओं X और Y के मूल्य स्थिर रहते हैं तो आय-उपभोग रेखा उपभोक्ता के व्यवहार (उपभोग या मापरि चित्र में ICC को दिखाया गया है।X और Y दो वस्तुएं हैं, जिनके मूल्य स्थिर रहते हैं,केवल उपभोक्ता की गाय में परिवर्तन होता है। जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय बढ़ती जाती है। वैसे- वैसे मूल्य रेखा LM अपने आप को समांतर रखते हुए दाएं और की शक्ति जाती है (जैसे कि LM=L1M1 L2M2 =L3M3) और उपभोक्ता की आय में कमी होने के साथ-साथ बाएं ओर खिसकने लगती है। (जैसे कि L5M5 L4M4=LM) मूल्य (Px और Py ) मैं परिवर्तन न होने के कारण मूल्य अनुपात समान Px / Py बना रहता है अर्थात रेखाओं के ढाल सामान रहते हैं और वे (मूल्य रेखाएं) समांतर बनी रहती हैं।P4,P3,P,P1,P2, एवं ,P3 मूल्य रेखाओं के संदर्भ मैं उपभोक्ता के संतुलन की स्थिति को बतलाते हैं।

प्रतिस्थापन प्रभाव से आशय

केवल सापेक्षिक मूल्यों में परिवर्तन के परिणाम स्वरूप किसी वस्तु के उपभोग (या मांग) मैं परिवर्तन होने का प्रतिस्थापन प्रभाव कहा जाता है।

प्रतिस्थापन प्रभाव का अध्ययन निम्न दो स्थितियों में किया जा सकता है-

  • जबकि आपेक्षिक मूल्यों में परिवर्तन आए प्रभाव उत्पन्न न करें, और (2)जबकि सापेक्षिक मूल्यों में परिवर्तन से आय प्रभाव होता है और इसे समाप्त करने हेतु आय में क्षतिपूरकपरिवर्तन करना पड़ता है। प्रश्नोत्तर को संक्षिप्त एवं सरल रखने हेतु प्रतिस्थापन प्रभाव को केवल प्रथम स्थिति के संदर्भ में ही समझना अधिक उपयुक्त होगा।

सापेक्षिक मूल्य परिवर्तन (बिना आय प्रभाव)

मान लीजिए कि 2 वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों में परिवर्तन हो जाता है और एक वस्तु सस्ती तथा दूसरी वस्तु महंगी हो जाती है। यदि वस्तु X के मूल्य में कमी हो जाती है,तो दोनों वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों में परिवर्तन हो जाएगा; इसलिए हम यह मान लेते हैं कि वस्तु Y के मूल्य में इस प्रकार वृद्धि हो जाती है कि वह X-वस्तु के मूल्य में कमी के प्रभाव को पूर्णतयानष्ट कर देती है। इसका परिणाम यह होता है कि उपभोक्ता के कुल संतोष में स्थिरता बनी रहती है। अन्य शब्दों में कहा जाता है कि यहां वस्तुओं के मूल्यों में अपेक्षित परिवर्तन के परिणाम स्वरूप आयप्रभाव उत्पन्न नहीं होता है। उपभोक्ता के कुल संतोष में स्थिरता रहने का असर यह होता है कि उपभोक्ता अपनी  पुरानी तटस्थता रेखा पर यथावत बना रहता है। इस रेखा पर रहते हुए वह अपनी खरीद को पुनः व्यवस्थित करता है, अर्थात सस्ती वस्तु X को महंगी वस्तु Yके स्थान पर प्रतिस्थापित करता है। अन्य शब्दों में कहा जाता है कि उसी तटस्थता रेखा पर नीचे की ओर किसी अन्य बिंदु पर चला जाता है।

चित्र में मूल्य रेखा की प्रारंभिक स्थिति LM है और उपभोक्ता E बिंदु पर संतुलन की दशा में है। वस्तु X का मूल्य गिरने और वस्तु Y का मूल्य पर्याप्त बढ़ने (इतना की X के मूल्य में कमी का प्रभाव समाप्त हो जाय) के परिणाम स्वरुप मूल्य रेखा की नई स्थिति RS है और अब उपभोक्ता को उसी तटस्थता रेखा IC पर नीचे की ओर बिंदु Fपर संतुलन की दशा में पहुंच जाता है। उसने अपनी खरीद को पुनः व्यवस्थित कर लिया है अर्थात X वस्तु की खरीद में AB के बराबर वृद्धि कर दी और Y वस्तु की खरीद में CD के बराबर कमी कर ली है। अत: AB और  CD प्रतिस्थापन प्रभाव को दर्शाती है। साथ ही, उपभोक्ता का उसी तटस्थता रेखा पर E से F तक चलना प्रतिस्थापन प्रभाव का सूचक है।

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Pankaja Singh

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