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बढ़ती हुई जनसंख्या पर्यावरण को किस प्रकार प्रभावित करती है? | How does increasing population affect the environment in Hindi

बढ़ती हुई जनसंख्या पर्यावरण को किस प्रकार प्रभावित करती है? | How does increasing population affect the environment in Hindi | (बढ़ती हुई जनसंख्या का पर्यावरण पर प्रभाव)

बढ़ती हुई जनसंख्या पर्यावरण को किस प्रकार प्रभावित करती है (बढ़ती हुई जनसंख्या का पर्यावरण पर प्रभाव)

जनसंख्या और पर्यावरण-

संसार में प्राकृतिक संसाधनों में कमी आ जा रही है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है, प्राकृतिक साधनों की खपत में वृद्धि हो रही है। जीवन का स्तर उन्नत बनाने के लिए लोग वस्तुओं का उपयोग अधिक मात्रा में कर रहे हैं। इसका दुष्परिणाम हुआ कि पर्यावरण पर पड़ रहा है। जैसे- (1) नगरीयकरण, (2 ) औद्योगीकरण, (3) उपभोग की वस्तुओं में वृद्धि। “समाज के लोग अब अधिक उन्नत जीवन जीना चाहते हैं। इसलिए अधिक से अधिक वस्तुओं का उपयोग किया जाता हैं इसका दुष्परिणाम स्वरूप यह होता है कि प्रदूषण में वृद्धि होती है।”

मानव ही नहीं पशु, पक्षी सभी अन्य जीव वस्तुओं का उपभोग करते हैं। इन सबकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक वस्तुओं का उत्पाद किया जाता है। जैसे- (1) रासायनिक खाद, (2) ईंधन के रूप में पेट्रोल आदि, (3) हानिकारक जन्तुओं को मारने के लिए औषधियाँ, (4) जल आदि। इन सभी से प्रदूषण बढ़ता है। शुद्ध जल का अभाव हो जाता है। सभी का सम्बन्ध जनसंख्या वृद्धि से है। व्यक्तिगत मलिनता और औद्योगिक मलिनता दोनों पर्यावरण को अशुद्ध बना देते हैं। देश में जनसंख्या की वृद्धि का अर्थ है- कूड़ा-करकट में वृद्धि। इसी से प्रदूषण में वृद्धि होती है।

वन महोत्सव पेड़-पौधों लगाने के कार्यक्रम प्रदूषण को कम करने का प्रयास हैं। राजमार्ग पर प्रदूषण कम करने के लिए वृक्षों का आरोपण किया जाता है। लघु-उद्यानों और भ्रमण स्थलों का विकास किया जाता है। इन प्रयासों को और गति देने की आवश्यकता है।

शहरीकरण-

विश्व में जहाँ औद्योगिक प्रगति हुई वहीं-वहीं अनेक देशों के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन कर शहरों की ओर जा रहे हें । विचारधारा वहां के निवासियों में बनी है कि शहरों में जीवनयापन के लिए यथेष्ट कार्य मिलता है। रहने खाने की अत्यधिक सुविधा है, मनोरंजन के भरपूर साधन हैं तथा परिवार के लोगों के लिए चिकित्सा सुविधाएँ, बच्चों को उचित शिक्षा उपलब्ध है। गाँवों में दिन प्रतिदिन बढ़ रहे अभाव, जीवन की असुरक्षा और संचार तथा यातायात के सीमित साधनों ने वहां के लोगों को शहर की ओर मोड़ा है। इस परिवर्तन ने कई पर्यावरणीय समस्याएँ खड़ी कर दी हैं एवं दो विभाजन हैं, प्रथम शहरी जो कस्बे अथवा शहर में रहते हैं (जिन्हें सामान्य भाषा में Towns के नाम से पुकारते हैं) और दूसरे ग्रामीण (Rural) जो गाँवों में रहते हैं। शहरों की परिभाषा अलग-अलग देशों में अलग-अलग हैं। कहीं केवल संख्या के आधार पर शहर कहलाते हैं, जैसे ग्रीन लैण्ड में 300 से अधिक आबादी वाला क्षेत्र है और कोरिया गणतन्त्र में एक लम्बे या शहर की जनसंख्या न्यूनतम 40,000 होनी चाहिए। कुछ अलग देश ऐसे हैं जहाँ आबादी के साथ कुछ अन्य आवश्यक शर्तों की पूर्ति अपेक्षित है। शहरीकरण की प्रवृत्ति ने भी पर्यावरण पर अपना प्रभाव डाला है।

पर्यावरण सम्बन्धी जो समस्याएँ हैं उनका सीधा सम्बन्ध वृद्धि से है। प्राकृतिक स्रोतों का उपयोग तभी अधिक होता है जब जनसंख्या अधिक होती है। जब, वायु, भूमि तथा ध्वनि प्रदूषण का सीधा सम्बन्ध जनसंख्या वृद्धि से है। पर्यावरण में संतुलन रखने और गुणवत्ता बनाये रखने के लिए जनसंख्या शिक्षा की नितान्त आवश्यकता है।

 जनसंख्या की वृद्धि से पर्यावरण में समस्याएँ

पर्यावरण की अधिकांश समस्याएँ जनसंख्या वृद्धि के कारण हैं। जनसंख्या की वृद्धि से पर्यावरण में निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। आर्थिक, कृषि एवं औद्योगिक विकास जनसंख्या की वृद्धि के कारण देश की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रही है –

  1. पर्यावरण की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
  2. भोजन तथा खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
  3. कृषि के उत्पादन के लिए रासायनिक खाद्यों का उपयोग करने तथा कृषि के पौधों की बीमारियों के लिए दवाओं का प्रयोग भी पर्यावरण में प्रदूषण करता है। अनेक प्रकार की बीमारियाँ फैलती हैं।
  4. जनसंख्या वृद्धि में नगरीकरण अधिक होता है अर्थात् नगरों तथा कस्बों का विस्तार होता है, जिससे जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा भूमि प्रदूषण अधिक होता है।
  5. औद्योगिक तथा तकनीकी का विकास ही देश की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है, परन्तु इनके विकास में भी पर्यावरण में जल, वायु, भूमि तथा ध्वनि प्रदूषण हो सकता है।
  6. जनसंख्या की वृद्धि से जीवन स्तर भी गिरता है और आर्थिक स्तर भी नीचा हो जाता है।
  7. उच्च शिक्षा की सुविधाओं में भी कमी आती है, क्योंकि जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। उस गति से शिक्षा की सुविधाओं में वृद्धि नहीं हो पा रह है । विद्यालयों, महाविद्यालयों पर जनसंख्या का दबाव दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। इसके अतिरिक्त व्यवसाय तथा तकनीकी संस्थाओं पर अपेक्षाकृत अधिक दबाव बढ़ रहा है, जिसके कारण छात्रों में असन्तोष बढ़ रहा है और अनुशासनहीनता भी बढ़ रही है।
  8. जनसंख्या वृद्धि कारण मानव की गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है। समाज में बुराइयों, भ्रष्टाचार तथा दोष बढ़ रह है राजनीति, धर्म, समाज तथा संस्कृति के क्षेत्र में भी मूल्यों का हास हो रहा है। इसलिए आज नैतिक शिक्षा, मूल्यों के शिक्षा की नितान्त आवश्यक है। मानव भी शारीरिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रदूषित हो रहा है, जिसका प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि ही है।
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Pankaja Singh

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