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जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक | Factors affecting population distribution in Hindi

जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक | Factors affecting population distribution in Hindi

जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

जनसंख्या का वितरण अनेक तथ्यों द्वारा निर्धारित/प्रभावित होता है जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं-

(A) भौगोलिक कारक- इनमें जलवायु, जल की पूर्ति और प्राप्ति, मिट्टी की उर्वरा शक्ति, समुद्र से किसी प्रदेश की ऊँचाई, स्थिति एवं प्राकृतिक संसाधन आदि सम्मिलित किये जाते हैं।

(B) सांस्कृतिक तथा अभौगोलिक घटक – इनके अन्तर्गत मानव की आर्थिकक्रियाएँ, उसकी समाज व्यवस्था, सरकार की आवास-प्रवास नीति, जनसंख्या सम्बन्धी नीति, सुरक्षा व्यवस्था, सामाजिक मान्यताएँ एवं प्रथाएँ आदि सम्मिलित हैं।

इन दोनों ही कारकों के मध्य सम्मिलित रूप से जटिल प्रतिक्रियाएँ होती हैं जो जनसंख्या के वितरण प्रारूप पर निरन्तर प्रभाव डालती है।

  1. स्वास्थ्यकर जलवायु- जनसंख्या के वितरण पर जलवायु का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। मनुष्य उन्हीं भागों में रहना पसन्द करता है जहाँ की जलवायु उसके स्वास्थ्य तथा उद्योग के लिए अनुकूल होती है। यही कारण है कि सबसे पहले मानव का विकास कर्क रेखा और 40 उत्तरी अक्षांशों के बीच के भागों में हुआ जो न तो अधिक गर्म है और न अधिक ठण्डे, जहाँ न अधिक वर्षा होती है और न सुखा पड़ता है तथा कार्य करने के लिए तापमान सदैव ही उपयुक्त रहता है। प्रो. हंटिंगटन का कथन है कि वर्तमान समय में जिन भागों में अत्यधिक ऊँची सभ्यता और आर्थिक उन्नति पायी जाती है। इसका एकमात्र कारण वहाँ पायी जाने वाली जलवायु ही है क्योंकि कुछ भागों में अस्वास्थ्यकर जलवायु ही मानव को आलसी, निर्बल और अकुशल बना देती है किन्तु दूसरे भागों के निवासी उत्तम जलवायु के कारण बड़े ही फुर्तीले, उत्साही तथा कार्य करने में अधिक दक्षम होते हैं। जलवायु के कारण ही शीतोष्ण तथा ध्रुव प्रदेशों के दक्षिणवर्ती भागों में गर्मी का मौसम पैदावार और व्यापार के लिए अत्यन्त सुविधाजनक होता है किन्तु कठोर ठण्ड का समय सुस्ती और व्यापार की मन्दी का समय होता है।
  2. भौतिक स्वरूप- भूमि की प्रकृति का भी जनसंख्या के वितरण पर अधिक प्रभाव पड़ता है। यह बात इसी से सिद्ध हो जाती है कि सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या का 1/10 भाग ही उच्च पर्वतीय व पठारी भागों में निवास करता है। मैदानों में जीवन-निर्वाह की सुविधाएँ सबसे अधिक पायी जाती है। विस्तृत भू-तल सपाट होने के कारण आवागमन के मार्गों की सुगमता और कृषि, पशुपालन तथा औद्योगिक सुविधाओं के कारण मैदानों में जनसंख्या का जमाव घना होता है। यही कारण है कि प्राचीन काल से नदियों के मैदानों में जनसंख्या अधिक पायी जाती रही है। विश्व की 90 प्रतिशत जनसंख्या एवं प्रायः सभी बड़े-बड़े नगर, औद्योगिक और व्यापारिक केन्द्र, जो वास्तव में घनी जनसंख्या के जमाव हैं, मैदान में स्थित हैं। विश्व के बहुत ही थोड़े नगर पहाड़ी भागों में बसे हैं। पहाड़ी प्रदेशों में मात्र भरण-पोषण की अर्थव्यवस्था वाले प्राथमिक उद्योग ही विकसित हो सकते हैं। अतः ऐसे व्यवसायों पर अधिक जनसंख्या निर्भर नहीं कर सकती, जबकि मैदानों में यदि भूमि उपजाऊ हो तो जनसंख्या घनी होती है क्योंकि वहाँ कृषि व्यवसाय तथा उनसे सम्बन्धित उद्योग विकसित हो सकते हैं और यातायात की सुविधा होने से व्यापार की उन्नति भी शीघ्रता से होती है।
  3. भूमि की उर्वरा शक्ति और जीवन-निर्वाह के साधनों की सुविधा-

(i) कृषि (Agrieulture) – भूमि की उर्वरा शक्ति भी किसी स्थान विशेष पर जनसंख्या को आकर्षित करती है। जिन भागों में भूमि उपजाऊ होती है, मनुष्य सघन कृषि एवं विकसित पशुपालन करके अपना जीवन-निर्वाह करते हैं। कृषि के द्वारा थोड़े ही परिश्रम से सफलतापूर्वक जीवन-निर्वाह हो सकता है। जितनी भूमि एक गाँव के निर्माण के लिए आवश्यक है उतनी भूमि पर अन्न उत्पन्न करने से आठ व्यक्तियों का पालन हो सकता है एवं एक या दो पशु पाले जा सकते हैं। किसान का अपनी भूमि से इतना निकट का सम्बन्ध होता है कि वह अपना भूमि को छोड़कर अन्यत्र नहीं जा सकता। खेती के लिए उपजाऊ भूमि यथेष्ट (उपयुक्त) जल और गर्मी की आवश्यकता होती है। परन्तु जिन प्रदेशों में ये तीनों ही बातें पायी जाती हैं. वहाँ कृषि कार्य अधिक हो सकता है। परिणामतः वहाँ जनसंख्या का जमाव भी अधिक होता है।

(ii) आखेट तथा लकड़ी काटना- खेती के अतिरिक्त मनुष्य अपने भरण- पोषण के लिए अन्य उद्योग-धन्धों में भी लगे हैं । लकड़ी चीरने, पशु चराने अथवा शिकार करनें में जो लोग लगे रहते हैं, वहाँ जनसंख्या का घनत्व बहुत कम होता है। वनों में प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या बहुत कम होती है, क्योंकि वहाँ शिकार के साधन सीमित होते जाते हैं। फिर एक स्थान के कन्द-मूल-फल समाप्त हो जाने पर भी उन्हें इधर-उधर घूमना पड़ता है। अतः उनके जीवन-निर्वाह के लिए लम्बे-चौड़े प्रदेशों की आवश्यकता पड़ती है। इन भागों में इनका मुख्य उद्यम पशु-पक्षियों का शिकार करना, मछलियाँ पकड़ना तथा जंगली फल-फूल, कन्द-मूल इकट्ठा करना ही है।

(ii) पशुपालन- शिकारियों की भाँति घुमन्तू पशु पालकों को भी अपने पशुओं के लिए अधिक लम्बे-चौड़े की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि यदि चरागाह अच्छे होते हैं तो यहाँ पशु चराने वाली जातियाँ स्थायी रूप से रहती है अन्यथा चारे की खोज में इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकना पड़ता है। परन्तु चरवाहे बहुत समय तक एक ही स्थान पर टिककर नहीं रह सकते। पहाड़ी ढालो अथवा घास के मैदानों में यही स्थिति होती है। आधुनिक युग की घूमन्तू पशुपालन क्रिया पूर्णतः अनार्थिक बनती जा रही है एवं इसका क्षेत्र भी तेजी से सिकुड़ता जा रहा है।

(iv) खानें खोजना एवं खोदना- किसी स्थान पर पाये जाने वाले खनिज पदार्थों अथवा शक्ति के साधनों के कारण भी वहाँ जनसंख्या का शीघ्र जमाव हो सकता है। जिन भागों में खनिज पदार्थ विशेषकर कोयला, खनिज तेल, ताँबा, सीसा, जस्ता और लोहा मिलता है, वहाँ क्रमशः जनसंख्या का जमाव होता है क्योंकि खानों में काम करने के लिए निकटवर्ती भागों से लोग आकर निवास करने लगते हैं। इन महत्त्वपूर्ण खनिजों की प्राप्ति के फलस्वरूप किसी स्थान पर कला-कौशल की भी उन्नति हो जाती है तथा सम्बन्धित उद्योग-धन्धों का भी तेजी से विकास होने लगता है। एक कारखाने में जितने मूल्य का माल तैयार होता है, उतने मूल्य की पैदावार हजारों एकड़ जमीन पर भी कृषि अथवा अन्य प्राथमिक व्यवसाय से अत्यन्त नहीं की जा सकती।

  1. आवागमन एवं संचार के साधनों की सुविधा- जीवन-निर्वाह के साधनों की उपलब्धता और जलवायु के उपरान्त जनसंख्या के वितरण पर परिवहन की सुविधाओं का भी प्रभाव पड़ता है। मानव प्रगतिशील होने से एक स्थान पर बँधकर नहीं रह सकता। उसे प्रसार और समागम के लिए अच्छे मार्गों की आवश्यकता होती है।
  2. सामाजिक कारक- जनसंख्या के घनत्व पर अनेक अभौगोलिक कारकों का भी प्रभाव पड़ता है। मानव के आर्थिक विकास के लिये जातीय गुण धार्मिक विचारधाराएँ, सामाजिक परम्पराएँ तथा शासन प्रणालियाँ भी प्रभाव डालती हैं। जहाँ जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा हो, शक्तिशाली और न्यायपूर्ण शासन-व्यवस्था हो, वहाँ जनसंख्या का जमाव अधिक होता है। मंगोलिया और मंचूरिया तथा भारत के पश्चिमी और पूर्वी सीमा के क्षेत्र जनसंख्या की दृष्टि से कम घने बसे हैं।

मानव का सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण भी किसी स्थान पर जनसंख्या को केन्द्रित करने अथवा बिखरे रहने में अधिक प्रभावी होता है।

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Pankaja Singh

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