चीन गणराज्य में कार्यपालिका का गठन | चीन गणराज्य में कार्यपालिका के कार्य | चीन गणराज्य में कार्यपालिका की शक्तियाँ

चीन गणराज्य में कार्यपालिका का गठन | चीन गणराज्य में कार्यपालिका के कार्य | चीन गणराज्य में कार्यपालिका की शक्तियाँ

चीन गणराज्य में कार्यपालिका का गठन-

1949 में चीन में जनवादी गणतन्त्र की स्थापना की गई थी और 1954 में नवीन संशोधित संविधान को राष्ट्रवादी जन कांग्रेस द्वारा स्वीकार किया गया। इसके अनुसार चीनी गणतन्त्र की राज्य परिषद का अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होता है, जो शासन का अध्यक्ष भी होता है किन्तु राज्य का अध्यक्ष गणतन्त्र का चेयरमैन होता है। यह अध्यक्ष ही वहाँ की वास्तविक कार्यपालिकीय शक्तियों का प्रयोग करता है। इसकी नियुक्ति राष्ट्रीय जन कांग्रेस द्वारा 4 वर्ष के लिए की जाती है। चीन का कोई भी नागरिक, जिसकी आयु 35 वर्ष है, अध्यक्ष का चुनाव लड़ सकता है। अध्यक्ष के अतिरिक्त एक उपाध्यक्ष भी होता है।

चीन गणराज्य में कार्यपालिका के कार्य एवं शक्तियाँ-

चीन गणराज्य का अध्यक्ष राष्ट्रीय जनवादी कांग्रेस या उसकी स्थायी समिति के निर्णयों को क्रियान्वित करता है। वह प्रधानमन्त्री, उप प्रधानमन्त्री, मन्त्रियों समितियों के अध्यक्षों एवं मन्त्रिमण्डल के सचिवालय के प्रमुख की नियुक्ति करता है। उन्हें पदन्युत करने का अधिकार रखता है, वह उपाधियों, पदक अथवा राम्मान प्रदान करता है। युद्धावस्था अथवा मार्शल लॉ की घोषणा करता है। सामान्य सैनिक भरती के आदेश देता है, सामान्य क्षमादान देता है। विदेशों में चीनी राजदूतों की नियुक्ति करता है तथा विदेशों से आये राजदूतों का स्वागत करता है। वह चीन की सेना का सर्वोच्च सेनापति होता है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् का अध्यक्ष होता है। वह राज्य के सर्वोच्च सम्मेलन को बुलाता है तथा उसकी अध्यक्षता करता है। चीनी प्रधानमन्त्री की स्थिति चीनी अध्यक्ष की तुलना में गौण हैं |

राज्य परिषद-

इसका गठन केन्द्रीय शासन चलाने हेतु किया गया है। सामान्य भाषा में यह चीन का मन्त्रिमण्डल है। इसके सदस्य प्रधानमन्त्री, उपप्रधानमन्त्री, आयोगों के अध्यक्ष और सचिवालय के सदस्य होते हैं। प्रधानमन्त्री इसके कार्यों का संचालन करता है। उप- प्रधानमन्त्री उसकी सहायता करता है और विभागाध्यक्ष अपने-अपने विभागों की देखभाल करते हैं। प्रधानमन्त्री इसकी बैठक बुलाता है तथा अध्यक्षता करता है। राष्ट्रीय जन कांग्रेस को प्रधानमन्त्री तथा अन्य सदस्यों को पदच्युत करने का अधिकार है। यह परिषद राष्ट्रीय जन कांग्रेस के प्रति उत्तरदायी होती है।

कार्य और शक्तियाँ- राज्य परिषद के कार्य और शक्तियाँ निम्नलिखित प्रकार हैं:-

(1) प्रशासकीय मामलों को निर्धारित करना, आदेश एवं आज्ञाएँ निकालना तथा क्रियान्वयन का निरीक्षण करना।

(2) विधेयकों को राष्ट्रीय जन कांग्रेस या उसकी स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तुत करना।

(3) विभिन्न विभागों के कार्यों में समन्वय स्थापित करना तथा उनका मार्गदर्शन करना।

(4) विभिन्न मन्त्रियों, आयोगों एवं राज्य के स्थानीय शासन के अंगों के बीच सम्बन्ध स्थापित करना तथा उनके अनुचित आदेशों को संशोधित या समाप्त करना ।

(5) राष्ट्रीय आर्थिक योजना और बजट को क्रियान्वित करना।

(6) विदेशी और आन्तरिक व्यापार पर नियन्त्रण करना ।

(7) सांस्कृतिक, शैक्षणिक एवं स्वास्थ्यसम्बन्धी कार्यों का संचालन करना।

(8) राष्ट्रीयताओं से सम्बन्धित कार्यों का संचालन करना।

(9) विदेशों में बसे चीनियों से सम्बन्धित कार्यों का संचालन करना।

(10) राज्यहित एवं सार्वजनिक शान्ति तथा नागरिक अधिकारों की रक्षा करना।

(11) विदेशी मामलों का संचालन करना ।

(12) सशस्त्र शक्ति का निर्माण और संचालन करना।

(13) प्रशासकीय अधिकारियों को नियमानुसार नियुक्त और पदच्युत करना।

(14) स्वशासित जिलों, तहसीलों, नगरपालिकाओं के पद तथा कार्य-क्षेत्रों को मान्यता देना।

(15) राष्ट्रीय कांग्रेस या उसकी स्थायी समिति द्वारा सौंप गये अन्य कार्यों का सम्पादन करना।

(16) मन्त्री तथा समितियों के अध्यक्षों द्वारा किये जाने वाले आदेशों में संशोधन करना आदि।

प्रारम्भ में इसका एक सामान्य सम्मेलन होता है परन्तु परिषद के अधिवेशन सामान्यतया होते ही रहते हैं। इसका अपना सचिवालय होता है। इसका प्रमुख महासचिव होता है।

राष्ट्रीय रक्षा परिषद

सैनिक विषयों की देखभाल के लिये एक राष्ट्रीय रक्षा परिषद का निर्माण किया गया है। इसका अध्यक्ष चीनी गणतन्त्र का अध्यक्ष होता है। इसके 15 अन्य उपाध्यक्ष होते हैं जिनमें गणतन्त्र चीन के उपाध्याक्ष का स्थान प्रथम है। इसके 81 और साधारण सदस्य होते हैं। इस प्रकार इसके कुल 97 सदस्य होते हैं।

यह परिषद, राज्य परिषद से पृथक होती है तथा इसका प्रतिरक्षा मंत्रालय पर कोई प्रत्यक्ष नियन्त्रण नहीं होता। इसका प्रमुख कार्य सैनिक नीति का नियोजन एवं निर्धारण करना है। इसकी बैठकें बहुत कम होती हैं तथा देश के सर्वोच्च सेनापति इसके सदस्य होते हैं। गणतंत्र चीन का अध्यक्ष सशस्त्र सेनाओं का प्रधान सेनापति होता है।

सर्वोच्च राज्य सम्मेलन

राजनैतिक विषयों की देखरेख के लिए सीधे राष्ट्रपति के अधीन सर्वोच्च राज्य सम्मेलन की व्यवस्था की गई है। सर्वोच्च राज्य सम्मेलन एक प्रकार का तदर्थ निकाय है। इसके राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रीय जन कांग्रेस की स्थायी समिति का प्रधान, प्रधानमन्त्री तथा कोई ऐसा व्यक्ति, जिसे राष्ट्रपति सम्मेलन के लिये आमन्त्रित करता है, सदस्य होते हैं। किसी भी विवादास्पद और महत्त्वपूर्ण विषय पर विचार-विमर्श करने के लिये यह सम्मेलन बुलाया जाता है। राष्ट्रपति को इसकी बैठक बुलाने का अधिकार है। सम्मेलन का सभापतित्व स्वयं राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। उसके सम्मुख राष्ट्रपति अपने विचार रखता है तथा इसके निर्णयों को राष्ट्रपति जन कांग्रेस एवं उसकी स्थायी समिति तथा मन्त्रिमण्डल के पास विचारार्थ तथा सहमति के लिए भेज देता है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि सर्वोच्च राज्य सम्मेलन, शासन के विभिन्न विभागों के बीच उत्पन्न मतभेदों को दूर करने तथा आपसी सामंजस्य स्थापित करने का माध्यम है। इसके माध्यम से सभी विभागों को एक साथ मिलकर बैठने तथा विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर मिलता है।

अन्त में हम कह सकते हैं कि चीन में प्रधानमन्त्री शासन का अध्यक्ष नहीं होता और न ही सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त को मान्यता प्रदान की गई है। परिषद के सदस्य संसदीय सरकार की भाँति एक टीम की भाँति प्रधानमन्त्री का नेतृत्व स्वीकार नहीं करते और न ही उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं। सभी सदस्य साम्यवादी दल के प्रभावशाली सदस्य होते हैं। वास्तविकता यह है कि प्रधानमन्त्री और अन्य सभी मन्त्री साम्यवादी दल के शीर्षस्थ नेताओं के कहने पर कार्य करते हैं। चीन के शासन में लोकतांत्रिक केन्द्रीयकरण के सिद्धान्तों को मान्यता प्रदान की गई है। वहाँ लोकतन्त्र की अपेक्षा दलीय केन्द्रीयकरण की प्रबलता दिखाई देती है। व्यवहार में चीन में साम्यवादी दल का अधिनायकतंत्र है और संसदीय शासन लेशमात्र नहीं है। सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय साम्यवादी दल के पोलिट ब्यूरो द्वारा किये जाते हैं और शासन केवल उनको कानूनी रूप देता है।

उपराष्ट्रपति- कार्यपालिका का एक अंग उपराष्ट्रपति भी है। इसका चुनाव चार वर्ष के लिए राष्ट्रीय जन-कांग्रेस द्वारा किया जाता है। चीन का कोई भी नागरिक जिसकी आयु 35 वर्ष है तथा उसे चुनाव लड़ने तथा मत देने का अधिकार प्राप्त है, उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ सकता है।

यह अपने पद पर राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा नये उपराष्ट्रपति चुने जाने तक कार्य करता है।

यह राष्ट्रपति द्वारा सौंपे सभी कार्यों को करता है। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति उसके स्थान पर कार्य करता है तथा उन सभी अधिकारों और शक्तियों का उपभोग करता है जिनका उपभोग राष्ट्रपति करता। अचानक राष्ट्रपति के पद के रिक्त होने के समय यह नये राष्ट्रपति की नियुक्ति तक कार्य करता है।

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