अर्थशास्त्र

अर्थशास्त्र का अर्थ | अर्थशास्त्र की परिभाषा | अर्थशास्त्र की विशेषतायें

अर्थशास्त्र का अर्थ | अर्थशास्त्र की परिभाषा | अर्थशास्त्र की विशेषतायें

अर्थशास्त्र क्या है?- (अर्थशास्त्र का अर्थ)

अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, जिसमें मानव की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन होता है। इसमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से धन से सम्बन्धित क्रियायें (आर्थिक व अनार्थिक क्रियाएँ) शामिल होती हैं।

अर्थशास्त्र की परिभाषा-

अर्थशास्त्र दो शब्दों से बना है-अर्थ + शास्त्र । ‘अर्थ’ से तात्पर्य धन व ‘शास्त्र’ से तात्पर्य विज्ञान है। अतः अर्थशास्त्र का अर्थ ‘धन का विज्ञान’ है। इस प्रकार अर्थशास्त्र एक ऐसा विषय है, जिसमें धन की क्रियाओं का अध्ययन होता है।

  “अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है।”

प्रो. जे.बी. से के अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो धन का अध्ययन करता है।”

मार्शल की परिभाषा-

“अर्थशास्त्र जीवन साधारण व्यवसाय से मनुष्य मात्र का अध्ययन करता है वह व्यक्तिगत तथा सामाजिक कार्य के उस अश की परीक्षण करता है जो कल्याण के भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उपयोग से घनिष्ठ सम्बन्ध है।”

मार्शल की परिभाषा की विशेषतायें-
  1. अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों है। विज्ञान तथा कला में जो विशेषता पायी जाती है वह अर्थशास्त्र में पायी जाती है।
  2. अर्थशास्त्र में मानव जाति का अध्ययन प्रधान है। इसमें सामाजिक, वास्तविक तथा सामान्य मनुष्यों का अध्ययन किया जाता है।
  3. अर्थशास्त्र में मनुष्य के आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है तथा अनार्थिक क्रियाओं को छोड़ दिया जाता है।
मार्शल की परिभाषा की आलोचना –

मार्शल की परिभाषा की निम्नलिखित आलोचनायें की जाती हैं-

  1. क्रियाओं के वर्गीकरण की अस्पष्टता- मार्शल ने मनुष्य की केवल आर्थिक क्रियाओं का ही अध्ययन अर्थशास्त्र का विषय माना है। अनार्थिक क्रियायें अर्थशास्त्र के अध्ययन से परे हैं। राबिन्स ने इस विचारधारा ही आलोचना करते हुए कहा है कि मनुष्य की क्रियाओं का इस प्रकार वर्गीकरण त्रुटिपूर्ण है। इसमें मनुष्य की प्रत्येक क्रिया का अध्ययन करना आवश्यक है।
  2. भ्रमात्मक तथा विवादग्रस्त विचार- मार्शल की परिभाषा में साधारण जीवन सम्बन्धी क्रियायें वाक्यांश भ्रमात्मक तथा विवाद उत्पन्न करने वाले हैं।
  3. मार्शल की परिभाषा भौतिकता के भ्रम में फैली हुई है- मार्शल ने मनुष्य की केवल भौतिक क्रियाओं का ही अध्ययन अर्थशास्त्र में किया है। अभौतिक साधन अर्थशास्त्र के विषय क्षेत्र में नहीं आते हैं। राबिन्स के अनुसार, मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति में भौतिक तथा अभौतिक दोनों ही साधनों का महत्व है जैसे गायक तथा बढ़ई के कार्यों से मनुष्य को सुख प्राप्त होता है।

राबिन्स की परिभाषा-

राबिन्स ने सन् 1932 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “The Nature and Significance of Economic Science” में अर्थशास्त्र की परिभाषा नवीन दृष्टिकोण के आधार पर दी। उनका विचार है कि अर्थशास्त्र उन समस्याओं का अध्ययन करता है जो साधनों की सीमितता के कारण उत्पन्न होती है। प्रकृति प्रदत्त साधन मानव जाति की समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने में अपर्याप्त है इसीलिए, आवश्यकताओं और साधनों के चुनाव की समस्या का जन्म हुआ है।

राबिन्स की परिभाषा निम्नलिखित चार महत्वपूर्ण तत्वों पर आधारित है-

  1. साधनों की सीमितता- जहाँ एक ओर मनुष्य की आवश्यकतायें असीमित होती है वहीं दूसरी ओर आवश्यकताओं को पूरा करने वाले साधन सीमित होते हैं। यद्यपि मनुष्य आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु नये-नये साधनों के विकास में सतत् प्रयत्नशील रहता है लेकिन साधनों की तुलना में आवश्यकतायें अधिक तीव्रता से बढ़ती हैं जिसके फलस्वरूप सीमित साधनों से इन अनवरत् बढ़ने वाली आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ रहता है।
  2. साध्यों की असीमितता- राबिन्स के अनुसार, मनुष्य की आवश्यकतायें अनन्त हैं। और एक के बाद दूसरी आवश्यकता क्रमश: मनुष्य चाहे जिस आय वर्ग का हो, उसकी कुछ न कुछ आवश्यकतायें सदैव अपूर्ण रहती है जिनको सन्तुष्ट करने के लिए वह प्रयत्नशील रहता है।
  3. साधनों के वैकल्पिक प्रयोग- मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने वाले साधनों की जहाँ एक मुख्य विशेषता यह है कि वे सीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं वही उनकी एक अन्य विशेषता यह है कि वैकल्पिक प्रयोग होने वाले होते हैं। वास्तव में किसी भी साधन के प्रयोग से एक से अधिक आवश्यकताओं को सन्तुष्ट किया जा सकता है। इसलिए प्रत्येक साधन को एक से अधिक उपयोग में लगाया जा सकता है।
राबिन्स की परिभाषा की विशेषतायें –

राबिन्स द्वारा प्रस्तुत अर्थशास्त्र की परिभाषा में निम्नलिखित विशेषतायें है-

  1. रॉबिन्स के अनुसार, इनमें उन सब मानवीय क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो चुनाव की समस्या पर आधारित है।
  2. रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में अर्थशास्त्र को उद्देश्यों के प्रति तटस्थ माना है।
राबिन्स की परिभाषा की आलोचना –

राबिन्स ने अपनी परिभाषा में अर्थशास्त्र को दुर्बलता का केन्द्र बिन्दु माना है। परन्तु उसकी परिभाषा वर्तमान समय में अर्थशास्त्र की विषय सामग्री का प्रतिनिधित्व नहीं करती है, क्योंकि इन्होंने अपनी परिभाषा में राष्ट्रीय आय, रोजगार के निर्धारण, आर्थिक विकास आदि विषयों पर कोई चर्चा नहीं की है। जबकि वर्तमान में उक्त विषयों को सम्मिलित करना आवश्यक है।

मार्शल तथा राबिन्स के विचारों की तुलना-

समानतायें-

  1. रॉबिन्स के दुर्लभ साधन और मार्शल के भौतिक साधनों में मूल रूप में कोई अन्तर नहीं है।
  2. दोनों ही अर्थशास्त्र को एक विज्ञान मानते हैं।
  3. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों ही अर्थशास्त्र को एक मानवीय शास्त्र मानते हैं अन्तर केवल यह है कि मार्शल मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी के रूप में अध्ययन करते हैं जबकि रॉबिन्स ने प्रत्येक मानव की आर्थिक क्रिया का अध्ययन अर्थशास्त्र में किया है।

असमानतायें-

मार्सल का मत-

  1. मार्शल का अर्थशास्त्र एक सामाजिक शास्त्र है ।
  2. मार्शल की परिभाषा वर्ग-कारिणी है जिसमें भौतिक-अभौतिक, आर्थिक अनाथिक, साधारण-असाधारण आदि का वर्ग उपस्थिति किया है।
  3. मार्शल की परिभाषा व्यावहारिक है।

अर्थशास्त्र की विशेषतायें-

(1) धन की परिभाषा के अन्तर्गत ऐसे आर्थिक मनुष्य की कल्पना की गई जो स्वहितया स्वार्थ की भावना से प्रेरित होकर कार्य करता है।

(2) इसके अंतर्गत राष्ट्र की सम्पन्नता, व्यक्ति की सम्पन्नता पर निर्भर मानी गयी ।

(3) इसके अंतर्गत अर्थशास्त्र के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु धन को माना गया है।

(4) धन को समस्त समस्याओं के समाधान का साधन माना गया।

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Pankaja Singh

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