पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत में मूल्य का निर्धाणन | Determination of price in full competition in Hindi
पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत में मूल्य का निर्धाणन –
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में दो प्रकार से कीमत का निर्धारण होता है-
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उद्योग में कीमत और मात्रा का निर्धारण–
उद्योग के अंतर्गत कीमत इस बिंदु पर निर्धारित होगी जहां की कुल मांग और कुलपूति बराबर हो। निम्नांकित चित्र (अ) मैं उद्योग के अंतर्गत मांग रेखा DD और पूर्ति रेखा SS एक-दूसरे को बिंदु E पर काटती है। अतः वस्तु की कीमत EQ( या PO) निर्धारित होगी और OQ मात्रा का उत्पादन किया जाएगा।
चित्र पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत एवं मात्रा का निर्धारण
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फर्म द्वारा कीमत एवं मात्रा का निर्धारण–
प्रत्येक फार्म उद्योग में निर्धारित वक्त कीमत (PQ या EQ) को स्वीकार कर लेगी अथवा दिया हुआ मान लेगी। अतः एक फर्म के लिए कीमत रेखा (Prise Line) या औसत आगम रेखा (AR – Curve) या मांग रेखा (Demand Curve) एक पड़ी हुई रेखा के रूप में होगी।
फर्म दी हुई कीमत (PO) पर वस्तु की कितनी भी मात्रा (P 1 ..q 2 ……) जो वह चाहे, भेज सकती है, अर्थात वह इस (दी हुई कीमत) पर अपने उत्पादन या विक्रय की मात्रा को समायोजित करती है। इस प्रकार, पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत एक फर्म वास्तव में ‘कीमत को ग्रहण करने वाली’ (Price taker) होती है, ‘कीमत को निर्धारित करने वाली’ (Price maker) नहीं। अन्य शब्दों में वह केवल ‘मात्रा को समायोजित करने वाली’ (Quantity adjuster) होती है।
पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत कीमत दी हुई (या समान) रहने के कारण फर्म को प्रत्येक अगली काई के बेचने से प्राप्त आगम या आय (अर्थात सीमांत आगम MR) उतनी ही प्राप्त होगी जितनी कि वस्तु की कीमत (अर्थात औसत आगम AR) है। अतः AR बराबर MR के। इसे एक पड़ी हुई रेखा के द्वारा दिखाया जाता है चित्र (ब)। जहां तक यह प्रश्न है कफर्म्म कितनी मात्रा में वस्तु का उत्पादन करेगी, यह मात्रा वह होगी जिस पर सीमांत आगम (MR) बराबर हो जाए सीमांत लागत (MC) के; अर्थात MR = MC, यह फर्म के संतुलन की दशा है। यदि MR अधिक है MC से, तो फर्म उस अतिरिक्त इकाई का उत्पादन उस समय तक बढ़ाती रहेगी जब तक की MR = MC के न हो जाए। जैसे ही फर्म MR = MC की दशा में पहुंचेगी, वह उत्पादन बढ़ाना बंद कर देगी, क्योंकि अब उत्पादन बढ़ाने में उसे कोई लाभ नहीं होगा।
उल्लेखनीय है कि फर्म के प्रति पक्ष पर AC और MC को दृष्टि में रखा जाता है। AC रेखा U – आकार की होती है और MC रेखा भी U -आकार की होती है। प्रारंभ में यह दोनों रेखाएं गिरती हुई होती हैं और रेखा के न्यूनतम बिंदु पर AC = MC के हो जाती है। तत्पश्चात AC और MC दोनों ऊपर को चढ़ती हुई रेखाएं होती हैं तथा MC रेखा AC रेखा के निम्नतम बिंदु गुजरती है जैसा कि उपरोक्त चित्र में दर्शाया गया है।
अल्पकाल–
एक फर्म के अल्पकाल में थोड़ा ‘लाभ’ हो सकता है, याद थोड़ी ‘हानि’ हो सकती है, उसे ‘सामान्य लाभ’हो सकता है। कारण अल्पकाल में समय इतना नहीं मिलता की मांग के बढ़ने पर उद्योग में नई फर्मे प्रवेश करके वस्तु की पूर्ति को बढ़ा सकें, और इस प्रकार लाभ समाप्त हो सके अथवा मांग के घटने पर कुछ पुरानी फर्मे उद्योग को छोड़कर चली जायेंताकि पूर्ति कम हो सके और इस प्रकार हानि समाप्त हो सके।
दीर्घकाल–
फर्म को दीर्घकाल में केवल सामान्य लाभ मिलेगा, अर्थात ना लाभ होगा और ना हानि ही होगी, क्योंकि इस काल में इतना समय मिल जाता है कि नई फर्मे उद्योग में प्रवेश करके पूर्ति को बढ़ा सकें या कुछ पुरानी फर्मे उद्योग को छोड़कर चली जाएं,ताकि पूर्ति कम हो सके पढ़ विराम दीर्घकाल में सामान्य लाभ होने का मतलब है कि AR(या कीमत) =AC (औसत लागत) के। यदि AR अधिक है AC से तो फर्मों को लाभ होगा, जिससे आकर्षित होकर नई फर्म उद्योग में प्रवेश करेगी पूर्ति बढ़ेगी और कीमत (AR) में कमी होकर वह ठीक AC के समकक्ष हो जाएगी और इस प्रकार लाभ की स्थिति समाप्त होकर केवल सामान्य लाभ मिलेगा। दूसरी ओर यदि AR कम है AC से तो, फर्मों की हानि होगी, जिससे निरुत्साहित होकर कुछ फर्मे उद्योग से निकलकर जाएंगी, पूर्ति कम होगी और कीमत (AR) में वृद्धि होकर वह AC की बराबरी में आ जाएगी। इस प्रकार हानि समाप्त होकर सामान्य लाभ मिलेगा। स्पष्ट है कि दीर्घकाल में फर्म द्वारा वस्तु की कीमत और मात्रा के निर्धारण हेतु (अर्थात फर्म के साम्य के लिए) दोहरी शर्त पूरी होना आवश्यक है। यथा-
- MR = MC (मात्रा निर्धारण के लिए) और
- AR = AC (सामान्य लाभ की प्राप्ति के लिए)। यह बात पूर्व पृष्ठांकित चित्र में दिखाई गई है। बिंदु R पर MR और MC रेखाएं एक-दूसरे को काटती है, जिससे MR = MC के। इसी बिंदु (R) पर AC रेखा स्पर्श करती है AR रेखा को। अतः यहां AR = AC के भी।
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